साइकिल से आते थे साहब, आदिवासी क्षेत्र में खासे लोकप्रिय रहे…
तकरीबन 20 साल पहले इंदौर कलेक्टोरेट में एक अधिकारी ऐसे भी थे जो अपनी साइकिल से आफिस आते थे। इन अफसर महोदय को भी जीप मिली थी लेकिन जीप का उपयोग तभी होता था जब कहीं बाहर दौरे पर जाना हो। इंदौर में भी दौरे पर गए तो खुद की साइकिल का उपयोग होता था। ये अफसर थे आदिम जाति कल्याण विभाग के जिला संयोजक वसंत वावदे जो उस समय लोकमान्य नगर में निवास करते थे। ये समय पर आफिस आते और बाहर पेड़ से अपनी साइकिल बांध देते। कई कर्मचारी ऐसे भी थे जो टू-व्हीलर से आते थे लेकिन साहब की सादगी देख वे अपनी टू-व्हीलर दूर खड़ी करके आते थे। वावदे साहब का अधिकांश जीवन झाबुआ के आदिवासी क्षेत्रों में बीता। जो अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के होस्टल बनाए गए उसमें पौधे लगवाने में वावदे साहब अग्रिम पंक्ति में थे। सरकार का पैसा भी बहुत ही नपे-तुले तरीके से खर्च करते थे। जब ये रिटायर हुए तो इनके लिए झाबुआ के कट्ठीवाड़ा में ग्रामीणों ने बड़ा आयोजन रखा। इनसे मिलने उस समय हजारों की संख्या में लोग आए। इनके साथी बताते हैं हमने इनका फेयरवेल देखा तो ऐसा अहसास हो रहा था जैसे प्रदेश का सीएम गांव में आ गया हो। वावदे साहब ने आदिवासी क्षेत्रों में काफी काम किया था जिससे वहां के लोग इन्हें काफी मानते थे।