मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान
लगभग पूरे देश में कोरोना वायरस का प्रकोप है। सालभर में यह दूसरी लहर है जिसने देश को हिलाकर रख दिया है। यह लहर मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर सहित अन्य शहरों में भी जमकर अपना तांडव दिखा रही है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के इस सपनों के शहर में आम के साथ खास आदमी भी तिल-तिल करके दम तोड़ते जा रहे है। जो जिंदा हैं उनके हौंसले जरूर टूट गए हैं। अब यह बात लोग बोलकर ही नहीं लिखकर भी बयां कर रहे हैं। बोलकर बयां करना कुछ आसान होता है लेकिन लिखकर जो अपना संदेश भेजे उसकी बात कुछ ज्यादा दमदार हो जाती है शायद यहीं कारण है की आत्महत्या के बाद पुलिस सुसाइड नोट पहले ढूढ़ती है।
कोरोना वायरस के बीच इंदौर में लोगों की मदद के लिए दो जनप्रतिनिधि मुख्य रूप से मैदान में लगे हुए हैं जिनके पास सरकार का पैसा नहीं है लेकिन वे अपनी मेहनत से या संबंध से जनता की मदद कर रहे हैं। पहले बात करेंगे सीनियर नेता की जो भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय हैं और फिर आएंगे विधायक व कांग्रेस नेता संजय शुक्ला पर। कैलाशजी ने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में जमीनी रूप से काफी मेहनत की है और उनकी खूबी यह है कि वे सभी को साथ लेकर चलते हैं। आज शिवराज सरकार में उनकी क्या स्थिति है यह किसी से छुपी नहीं है लेकिन उनके निजी संबंध इतने हैं कि वे अपने आप में एक सरकार हैं। उनके पास भले ही सरकार का कोई बड़ा पद नहीं हो लेकिन लोग उनके यहां इस उम्मीद से जाते हैं कि काम हो जाएगा। उनके पास जाने से व्यक्ति को हिम्मत मिलती है, उसे लगता है अपना कोई मददगार है। इंदौर में आक्सीजन और रेमडेसीवर इंजेक्शन की कमी सरकार अपनी तरफ से पूरी नहीं कर पाई लेकिन कैलाश विजयवर्गीय के दोस्ताना संबंध सरकार से ज्यादा बलवान साबित हुए। एक साल पहले जब शिवराजसिंह चौहान ने फिर से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तब कोरोना वायरस का प्रदेश में आगमन ही हुआ था। तब की लहर को यह कहते हुए सरकार ने अपना बचाव किया था कि कमलनाथ सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। कमलनाथ सरकार के ‘नौ रत्नों’ व एक बाजूबंद के साथ ही शिवराज अपनी सरकार चला रहे हैं तो उन्हें अब जनता को जवाब देना होगा? वे इस बात से भी बच नहीं सकते कि कोरोना संक्रमित जिलों में कलेक्टर हाल ही में बनाए हैं क्योंकि हर जिला कलेक्टर को छह माह या उससे ज्यादा समय तो पद संभाले हो ही गए हैं। कोरोना की दूसरी लहर आने को लेकर भी चेतावनी देशभर में पहले से ही गूंज रही थी उसके बाद भी हमारे प्रदेश के अस्पतालों में मरीजों के लिए सुविधाएं क्यों नहीं हुई यह जनता का बड़ा सवाल है जिसका जवाब प्रदेश के मुखिया को देना होगा। मध्यप्रदेश में यदि कोई आक्सीजन न मिलने के कारण दम तोड़ दे तो यह ज्यादा शर्मनाक है। इंदौर में आक्सीजन का ट्रक आया तो एक मंत्री से उस ट्रक का पूजन कराया गया जो हास्यास्पद है। इस बारे में मंत्री को भी खुद सोचना चाहिए।


बात हम दूसरे मददगार नेता संजय शुक्ला की करें तो वे इंदौर में एक नए नेता के रूप में उभरकर आ रहे हैं। जब तकरीबन हर नेता घर में बैठा है या घोंसले से मुंह निकालकर सिर्फ यह बता रहा है कि मैं भी हूं, उस समय संजय शुक्ला का पीड़ितों के बीच जाकर उनकी मदद करना सराहनीय कार्य है। वे श्मशानघाट व कब्रिस्तान भी जा रहे हैं जहां जाने से लोग बच रहे हैं। आक्सीजन व अन्य मदद के लिए वे आर्थिक मदद भी कर रहे हैं जिसकी तारीफ हर जगह हो रही है। उनका दुख यह है कि प्रशासन उनकी सुन नहीं रहा है तो यहां वे गलत हैं। उन्हें प्रशासन की मजबूरी समझना चाहिए कि उसके पास मदद देने के लिए कुछ है ही नहीं तो वह विधायक महोदय की क्या सुनेगा। कई भाजपा नेताओं और संजय के विरोधियों का आरोप है कि संजय शुक्ला वाहवाही बटोरने के लिए मैदान पकड़कर बैठे हैं। इन लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि जो दुख में लोगों के साथ खड़ा है वह उनका नेता है। कोरोना वायरस ने अपने सगों को उनसे दूर कर दिया और ऐसे में कोई नेता वाहवाही लूटने भी यदि किसी के कंधे पर हाथ रख रहा है तो वह सीधे उसके दिल में उतर रहा है। इसे अब नेतागिरी की परिभाषा बदलना भी माना जा सकता है। नेताओं को यह नहीं सोचना चाहिए कि चुनाव के समय वे अपने हिसाब से लोगों को समझा लेंगे क्योंकि इस वायरस से फेफड़े जरूर कमजोर हो रहे हैं लेकिन दिल मजबूत हो रहा है और दिमाग साफ होता जा रहा है।

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