धारी देवी का चारधाम से संबंध
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भारत के उत्तराखंड में स्थित धारी देवी का मंदिर विश्व में एक अलग स्थान रखता है । अलकनंदा नदी के किनारे श्रीनगर और रुद्रप्रयाग जैसे शहरों के बीच में यह मंदिर स्थित है । गढ़वाल क्षेत्र में बदरीनाथ और केदारनाथ के लिए जाने वाले मुख्य मार्ग से मात्र 15 किलोमीटर दूर यह मंदिर बना हुआ है । इस मंदिर की दो विशेषताएँ हैं पहली माॅ धारी को उत्तराखंड की रक्षक के रूप में जाना जाता है एवं दूसरा यह कहा जाता है कि चमत्कारिक रूप से इस मंदिर में मूर्ति दिन में तीन बार रूप बदलतीे है ।
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धारी माता के इस मंदिर में जो मूर्ति स्थापित है उसके बारे में मान्यता है कि इसका ऊपरी हिस्सा माँ धारी का है जो यहाँ स्थित है जबकि निचला हिस्सा कालीमठ में स्थापित है, जहाँ इनकी पूजा माँ काली के रूप में की जाती है । यहाँ ऐसी मान्यता है कि कालीमठ मंदिर से ही मूर्ति का सिर वाला भाग बाढ़ में अलकनंदा नदी में बहकर धारी गाँव नामक स्थान पर आ गया था, जहाँ स्थानीय लोगों ने मिलकर सिर वाले भाग को समीपवर्ती ऊँची चट्टान पर स्थापित कर दिया । यहाँ प्रचलित मान्यताओं के अनुसार माँ धारी देवी प्रतिदिन तीन रुप बदलती है, यह प्रातःकाल कन्या, दोपहर में युवती और शाम को वृद्धा का रूप धारण करती है । हर साल चैत्र व शारदीय नवरात्र में हज़ारों श्रद्धालु अपनी मनौतियों के लिए इस मंदिर में पहुँचते हैं ।
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माँ धारी देवी को चार धाम की रक्षक भी कहा जाता है । वर्ष 2013 में यह मंदिर यहाँ से हटाया गया था, माना जाता है कि इसी कारण केदारनाथ में त्रासदी आयी थी ।अलकनंदा नदी पर स्थापित की जाने वाली 330 मेगावाट की पनबिजली परियोजना के कारण इस मंदिर को यहाँ से कुछ दूरी पर स्थानांतरित किया गया था । स्थानीय लोगों ने इसका बहुत विरोध किया, लगभग 3 माह तक यह आंदोलन चला । जून 2013 में केदारनाथ की त्रासदी हुई उसके बाद इस मंदिर को पुनः उसी स्थान पर कुछ ऊँचाई पर स्थापित कर दिया गया । लगभग कुछ इसी तरह वर्ष 1882 में स्थानीय राजा ने इस मंदिर को यहाँ से हटाने की कोशिश की थी इतिहास कहता है कि उस समय भी केदारनाथ में त्रासदी हुई थी, अतः तब भी मंदिर को पुनः वहीं स्थापित किया गया था । वर्तमान में माँ धारी के मंदिर को पुनः उसी स्थान पर नदी की बाढ़ से बचाते हुए एवं पनबिजली परियोजना की आवश्यकताओं को देखते हुए खम्बों की सहायता से कुछ ऊँचाई पर स्थापित कर दिया गया है । मंदिर का विकास कार्य जारी है ।