चार्ल्स शोभराज के साथ सेठ आबिद

बिकनी किलर चार्ल्स शोभराज फिर एक बार सुर्खियों में है। उनके सुर्खियों में होने के पीछे कारण नेटफ्लिक्स और बीबीसी की क्राइम सीरीज द सर्पेट का उन्हीं के जीवन पर आधारित होना है। शोभराज नेपाल की काठमांडू स्थित सुंधारा जेल में बंद हैं। जेल प्रबंधन ने एक जांच बैठाई है जिसमें शोभराज का इंटरव्यू विदेशी मीडिया में कैसे गया इसे लेकर जांच की जा रही है। शोभराज पर तो क्राइम सीरीज बन ही रही है लेकिन एक वेबसीरीज के लिए पाकिस्तान के गोल्डन किंग सेठ आबिद का नाम भी चर्चा में आ रहा है।
कहा जाता है सेठ आबिद ने सोने की स्मगलिंग में भारत के स्मगलरों के दबदबे को खत्म किया था। आबिद का भारत के साथ इंग्लैंड और मीडिल ईस्ट के देशों में भ्रमण लगातार चलता रहता था और उनका नेटवर्क इतना मजबूत था कि कई बार तो पाकिस्तान की विभिन्न सरकारें भी उनकी मदद लेने से नहीं चूकी। सेठ आबिद के बारे में कहा जाता है कि वे खुद भी कई पहेलियों को सुलझाने में अफसरों की मदद कर देते थे। एक मामला अप्रैल 1958 का है। लाहौर जाने वाले एक यात्री को कराची हवाई अड्डे पर रोका गया तो उस यात्री के पास से तीन हजार एक सौ तोला सोना बरामद हुआ। जब कराची कस्टम अधिकारियों ने प्रेस को बताया कि उन्होंने दो हजार तोला सोना जब्त किया है, तो पुलिस हिरासत में मौजूद उस यात्री ने उनकी गलती को सही किया और कहा कि यह दो हजार नहीं बल्कि तीन हजार एक सौ तोला सोना है। यह शख्स कोई और नहीं सेठ आबिद ही था। सेठ आबिद जल्द ही जेल से रिहा हो गया और केवल पांच महीने बाद ही वह कसूर के पास एक सीमावर्ती गांव में दिखाई दिया। वहां से उसे अमृतसर पुलिस से बचने के लिए 45 सोने की ईंटें छोड़ कर भागना पड़ा।
१964 में आबिद दिल्ली के चांदनी चौक में आया। दिल्ली पुलिस ने उसे गिरफ़्तार करने की कोशिश की जब वह मोती बाजार में एक व्यापारी के साथ सोने का सौदा कर रहा था। पुलिस को देखकर आबिद तो भाग गया लेकिन उसका एक साथी पकड़ा गया जिसके पास से सोने की 44 ईंटे बरामद की गई। आबिद भेष बदलने में माहिर माना जाता था और चालाकी तो उसमें कूट-कूटकर भरी थी। यही कारण था कि पाकिस्तान और इंटरपोल की सूची में उसका नाम शीर्षक्रम में रहता था। जब सेठ आबिद की मौत हुई तब उसकी उम्र 85 साल की थी। उसे पाकिस्तान में गोल्डन किंग के रूप में पहचान मिल चुकी थी और उसकी गिनती पाकिस्तान के सबसे अमीर लोगों में होती थी।
कलकत्ता में चमड़े का व्यापार करते थे
सेठ आबिद का जन्म और पालन-पोषण कसूर (पाकिस्तान) के सीमावर्ती क्षेत्र में हुआ था, जहां उसके कबीले के लोग भारत के विभाजन से पहले कलकत्ता से चमड़े का व्यापार करते थे। आबिद 1950 में कराची चला गया था जब उसके पिता ने कराची के सर्राफा बाजार में सोने और चांदी का कारोबार शुरू किया था। कुछ मछुआरों से मिलने के बाद, जो दुबई से कराची सोने की तस्करी करते थे, सेठ आबिद ने सोने की तस्करी की दुनिया में कदम रखा। 1950 के दशक के अंत तक उसने एक मछुआरे कासिम भट्टी के साथ मिल कर पाकिस्तान में सोने की तस्करी पर एकाधिकार स्थापित कर लिया था। कुछ समय बाद ही सेठ आबिद की गिनती उन तस्करों में होने लगी थी जो पाकिस्तान के संदर्भ में सोने की तस्करी और तस्करी की अर्थव्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण थे। उसकी ताकत कराची बंदरगाह, पंजाब की सीमा, सरकारी प्रशासन और राजनीतिक गलियारों में तो थी ही, वहीं सीमा के दूसरी तरफ और उससे भी आगे बहुत से काम करने लगा था।
शुरूआत में सिर्फ करीबी रिश्तेदारों के साथ मिलकर ही काम करता था जिसमें उसका भाई हाजी अशरफ शामिल था जो अरबी भाषा में धाराप्रवाह बात कर सकता था। उसका दामाद, गुलाम सरवर अक्सर दिल्ली आता-जाता था और सोने के तस्कर हरबंस लाल से संपर्क में रहता था। सेठ आबिद का नाम पहली बार मीडिया में तब आया जब सन् 1963 में एक अखबार ने खबर दी थी कि पाकिस्तान के ‘गोल्ड किंग’ का भारत में ‘कनेक्शन’ है और उसके बहनोई को दिल्ली में 44 सोने की ईंटों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया है। जब आबिद के तस्करी के कारोबार का विस्तार हुआ, तो उसने पंजाब के सीमावर्ती इलाकों के गांवों में रहने वाले कुछ एजेंटों को सोने की स्मगलिंग की फ्रेंचाइजी दी। काम बढ़ने पर आबिद के दर्जनों प्रतिद्वंद्वी भी खडेÞ हो गए थे लेकिन किसी के पास उसके जैसा कौशल, कनेक्शन और पूंजी नहीं थी। उसके कई प्रतिद्वंद्वियों के विपरीत आबिद पर उसके लंबे कैरियर के दौरान कभी भी आरोप तय नहीं किये जा सके हालांकि उसके खिलाफ कई एफआईआर दर्ज की गई थी।
तब छापा पड़ा और..
1970 के दशक में सेठ आबिद के कारोबार को तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार में कुछ रुकावटों का सामना भी करना पड़ा। इस दौरान उसकी कुछ संपत्ति जब्त कर ली गई। सन् 1974 में कुछ ऐसा हुआ जो किसी ने भी नहीं सोचा था। लाहौर शहर में सेठ आबिद के आवास पर एक बड़ी पुलिस छापेमारी में लगभग सवा करोड़ रुपये की पाकिस्तानी मुद्रा मिली। इसके साथ ही 40 लाख रुपये की कीमत का सोना और 20 लाख रुपये की कीमत की स्विस घड़ियां भी जब्त की गईं। इस छापेमारी में लाहौर पुलिस ने तीन गाड़ियां और एक दर्जन घोड़ों को भी अपने कब्जे में लिया जिन्हें अवैध सामानों को रखने और लाने ले जाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। यह पाकिस्तान में स्मगलिंग का सबसे बड़ा केस था। प्रधानमंत्री भुट्टो ने ‘सेठ आबिद अंतरराष्ट्रीय तस्करी मामले’ के लिए एक विशेष ट्रिब्यूनल की स्थापना की। इस ट्रिब्यूनल ने दर्जनों गवाहों के बयान दर्ज किए लेकिन सेठ आबिद कई चेतावनियों के बावजूद ट्रिब्यूनल के सामने पेश नहीं हुआ। सेठ की गिरफ्तारी का मुद्दा न केवल पाकिस्तानियों की रोजमर्रा की बातचीत का हिस्सा बन गया, बल्कि भुट्टो सरकार के लिए ‘स्टेट रिट’ का भी एक टेस्ट केस बन गया। पाकिस्तान में ‘मोस्ट वॉन्टेड’ व्यक्ति की तलाश के लिए देश के इतिहास में सबसे बड़ा आॅपरेशन लांच किया गया था जिसमें पाकिस्तान सेना, पुलिस, रेंजर्स और नेवल गार्ड की छापामार टीमें उसे ढूढ़ रही थी। कराची में सेठ आबिद के घर पर भी छापा मारा गया जहां से भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा और सोने की ईंटें बरामद की गईं। सन् 1977 में जब कराची कोस्ट गार्ड को यह सूचना मिली कि सेठ आबिद उत्तरी नाजिÞमाबाद में अपनी ‘प्रेमिका’ से मिलने आ रहा हैं तो वहां भी छापा मारा गया लेकिन उससे पहले सेठ आबिद वहां से फरार हो चुका था।
खुद मर्जी से आया सामने
सितंबर 1977 में आबिद ने अपनी मर्जी से जिÞया-उल-हक की सैन्य सरकार के सामने समर्पण किया। इसके बाद अपनी जब्त संपत्ति की वापसी के लिए बातचीत की। उस साल दिसंबर में सैन्य सरकार की प्रेस ने बताया कि आबिद ने जिन्ना पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल सेंटर अस्पताल (जेपीएमसी) की निर्माण परियोजना और अब्बासी शहीद अस्पताल के बर्न वार्ड के लिए लेफ्टिनेंट जनरल जहांनजेब अरबाब को एक लाख 51 हजार रुपये का अनुदान दिया था। इसके बाद आबिद अब एक व्यावसायिक अपराधी नहीं था बल्कि एक पक्का देश भक्त बन चुका था जो देश और समाज की भलाई के लिए उदारता से दान कर रहा था। आबिद की यह प्रसिद्धि तब और बढ़ गई जब उसका नाम देश के परमाणु कार्यक्रम में भी सामने आया।
28 साल बाद सोना भी मिल गया
सेठ आबिद इंटरनेशनल स्मगलिंग केस पर सन् 1985-86 में पाकिस्तान की संसद में बहस हुई थी और इसके बाद चौधरी निसार अली की अध्यक्षता में नेशनल असेंबली की विशेष समिति (एससीएनए) ने इस केस की जिÞम्मेदारी उठाई। सन् 1986 में पाकिस्तान सेंट्रल बोर्ड आॅफ रेवेन्यू ने तीन हजार एक सौ तोले सोने की वापिस करने की अनुमति दे दी जिसे सन् 1958 में कराची हवाई अड्डे पर सेठ आबिद से सीमा कस्टम अधिकारियों ने जब्त कर लिया था। बहरे और गूंगे बच्चों के लिए काम करने वाले हमजा फाउंडेशन जैसे मानवीय संगठनों की स्थापना के अलावा सेठ आबिद ने लाहौर के शौकत खानम कैंसर अस्पताल सहित बहुत सी कल्याणकारी संस्थाओं को वित्तीय सहायता भी प्रदान की।
आखिर गेंद पर छक्का मारने वाला मियांदाद का बल्ला खरीदा
आबिद ने अपने पूरे जीवन में प्रचार से परहेज किया लेकिन फिर भी उसे खूब शोहरत मिली। उसका नाम राष्ट्रीय स्तर पर उस समय मशहूर हुआ जब उसने एक टीवी शो में नीलामी के दौरान अपने बेटे के लिए पांच लाख का बल्ला खरीदा था। यह बल्ला जावेद मियांदाद का था जो उन्होंने शारजाह की पारी में इस्तेमाल किया था। इस बल्ले से ही मियांदाद ने चेतन चौहान की मैच की अंतिम गेंद पर छक्का मारकर पाकिस्तान को जीत दिलाई थी।
रोमांटिक भी था आबिद
आबिद पर वेब सीरीज बनाने को लेकर इसलिए भी बात चल रही है क्योंकि उसके कैरियर में वह सभी बातें शुमार थी जो एक फिल्म या वेब सीरीज में होना चाहिए। स्मगलर से बड़ा दानदाता बनने के साथ ही आबिद रोमांटिक व्यक्ति भी था। उसके रोमांस के भी कई किस्से हैं। आबिद ने एक संपादक पर तब नाराजगी व्यक्त की थी जब उस अखबार ने आबिद को कुख्यात गोल्डन तस्कर के रूप में पेश किया। आबिद ने संपादक से कहा मैं गरीब परिवारों को सस्ता सोना देने में मदद करता हूं ताकि वे अपनी बेटियों का निकाह कर सके। आबिद के लिए बुरे दिन तब थे जब उनके बेटे सेठ हाफिज अयाज अहमद की हत्या कर दी गई। अपने अवैध व्यापारिक कैरियर के दौरान आबिद की कई भूमिकाएं थीं जिसमें तस्कर, सोना व्यापारी, स्टॉक मार्केट एक्सचेंजर, परोपकारी और सबसे बढ़कर रियल स्टेट कारोबारी। 1990 के दशक तक वह लाहौर के विभिन्न हिस्सों में सर्वाधिक प्रॉपर्टी रखने वाला व्यक्ति बन चुका था। कराची में भी उसकी कई संपत्तियां थीं और पनामा लेक में नाम आने के बाद उसने अपनी संपत्ति ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में ट्रांसफर कर दी थी।

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