नजरें अदिति कुमार पर….विभाग के ‘अंगदों’ पर शिकंजा कस पाएंगे या दबाव में काम करेंगे!
विहान हिंदुस्तान न्यूज
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सीएम पद की शपथ लेने के बाद से बदसलूकी करने वाले अफसरों व भ्रष्टाचार समाप्ति की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। वे लगातार प्रशासनिक फेरबदल भी कर रहे हैं ताकि जनता को बेहतर माहौल व सुविधाएं मिल सके। इसी प्रशासनिक सर्जरी के तहत स्थानीय निधि एवं संपरीक्षा का संचालक अदिति कुमार त्रिपाठी को बनाया गया है।
वित्त विभाग का अभिन्न अंग स्थानीय निधि एवं संपरीक्षा (ऑडिट) माना जाता है क्योंकि यहां से विभिन्न विभागों की फिजूलखर्ची को रोका जाता है। ऑडिट विभाग के पास से जब तक बिल पास नहीं होता तब तक विभाग खर्चे नहीं कर सकता है। …लेकिन स्थिति ऐसी है कि कुछ अफसरों की यहां तानाशाही है। वे अंगद की तरह पैर जमाकर बैठे हुए हैं। शासन एक स्थान पर किसी अधिकारी को करीब 3 साल तक पदस्थ रखता है उसके बाद वहां से हटा देता है लेकिन यहां कुछ संयुक्त संचालक पांच साल से ज्यादा समय से जमे हुए हैं। यही नहीं वे संयुक्त संचालक होकर नगर निगम में भी ऑडिट का काम कर रहे हैं जहां उनसे छोटे पद के डिप्टी डायरेक्टरों को बैठना है। असल में इसके पीछे कारण नगर निगम में होने वाले खर्चे हैं। अब तो नगर निगमों की दशा बदलने की बात भी कहीं जा रही है क्योंकि नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय विकास पुरुष हैं। वे ज्यादा से ज्यादा विकास कार्य कराएंगे जैसा उनका अब तक का कार्य बताता है। बताया जाता है जो भ्रष्ट अधिकारी है वह नगर निगम में हर बिल पर एक प्रतिशत तक शुभ-लाभ करता है। इंदौर नगर निगम में तो ऑडिट विभाग के एक अधिकारी के खिलाफ ठेकेदार लामबंद हो गए थे और उसके बाद तत्कालीन निगमायुक्त आशीष सिंह (वर्तमान में इंदौर कलेक्टर) ने उसकी रिपोर्ट बनाकर संभागायुक्त आकाश त्रिपाठी को सौंपी थी। आकाश त्रिपाठी ने तत्काल प्रभाव से उस अधिकारी को निलंबित कर दिया था लेकिन उसके बाद उसे वित्त विभाग ने बहाल कर दिया था। बात बदतमीजी की करें तो ऑडिट विभाग के एक अफसर की बदतमीजी भी खासी चर्चाओं में रहती है। यह अधिकारी महिला कर्मचारियों के साथ जिस तरह से पेश आता है वह आपराधिक कृत्य की श्रेणी में आता है लेकिन इस अधिकारी का दावा है कि वह सीधा उप मुख्यमंत्री व वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा से जुड़ा है। वैसे जानकारी यह आ रही है कि उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा के कार्यालय के किसी कर्मी से इसका जुड़ाव है न कि मंत्री महोदय से। विशेष बात तो यह है कि ये अपने दफ्तर शाम 6 बजे बाद जाता है जब तक कार्यालय बंद हो जाते हैं लेकिन मातहतो को इनका इंतजार करना होता है। बताया जा रहा है कि इस अधिकारी के घपलों की फाइल भी बन रही है ताकि सीधे उप मुख्यमंत्री के समक्ष रखी जा सके व बताया जा सके कि उनके नाम का कैसा गलत उपयोग किया जा रहा है। इंदौर के संयुक्त संचालक अनिल कुमार गर्ग के बारे में बताया जाता है कि वे अपने कार्यालय में सप्ताह में दो से तीन दिन ही रहते हैं।
अब सभी की निगाहें अदिति कुमार पर इसलिए हैं क्योंकि वे भोपाल के ही हैं हालांकि रहने वाले उत्तर प्रदेश से हैं। भोपाल में अदित कुमार के नाना का आर्य समाज व संघ परिवार में खासा प्रभाव है। खुद अदिति कुमार भी आर्य समाज से अपने किशोर काल से ही जुड़े हुए हैं। उन्हें सरकार के कामकाज की खासी समझ भी है। अब देखना होगा वे विभाग के अंगदों को किस तरह लेते हैं? मसलन फेरबदल करते हैं या फिर जैसा चल रहा है उसी में ‘सुधार’ करने के प्रयास करेंगे। संस्कृति विभाग में जरूर अदित कुमार को कुछ दिक्कतें हुई थी जिससे सीख लेते हुए वे यहां बेहतर काम करेंगे, ऐसा माना जा रहा है।