अन्तर्मन…

बचपन में मुझे मेरी बडी मौसी के यहां जाना बहुत अच्छा लगता था। मौसी गांव मैं टीचर थी । वह स्वभाव से बहुत अच्छी थी । एक तो उनके घर का उन्मुक्त वातावरण, दूसरा उनका सरल स्वभाव, वे कारण थे जो मुझे उनके यहां जाना बहुत अच्छा लगता था । जब भी मौका मिलता मैं उनके यहां चली जाती थी । एक बार मौसी जी के यहां रह रही थी तो एक दिन उन्हें अचानक स्कूल के काम से बाहर जाना पड़ा। उन्हें सुबह जल्दी जाना और शाम को देर से आना था । ऐसे में वो मुझे अकेला छोड़ नहीं सकती थी। अतः उन्होंने उनके भतीजे ओमकार दादा के यहां मुझे छोडने का निर्णय किया। औंकार दादा के नाम से ही मैं बहुत घबराती थी । दादा का स्वभाव बहुत कड़क लगता था । कभी  मौसी जी मुझे कुछ काम के लिए उनके यहॉ भेजती तो उनकी आवाज से ही मेरी बोलती बंद हो जाती थी । वैसे उनका व्यक्तित्व बहुत आकर्षक था।। लंबा गोरा कद और बड़ी बड़ी आंखें उनके व्यक्तित्व को औरआकर्षक बनाती थी । वे पास के गांव के स्कूल में हेडमास्टर थे। वे सुबह स्कूल जाते  और दोपहर को घर आ जाते थे । उनकी पत्नी भी बहुत सुंदर थी, किंतु मैंने उन्हें कभी हंसते हुए और बात करते हुए नहीं देखा था । मैंने कई बार लोगों को कहते सुना था कि वह पागल है, पर मौसीजी इस बात को हमेशा गलत बताती थी।।

श्रीमती प्रभा शर्मा

मैंने दादा को हमेशा बैठक में पढ़ते  या लिखते देखा था और भाभी पीछे कमरे में काम करती रहती थी । मौसी जी ने मुझे सुबह दादा के घर छोड़ दिया । सुबह तो दादा थे नहीं,  मैं पीछे रसोई में भाभी के पास चली गई। वे उस हाथ की चक्की में आटा पीस रही थी। उन्होंने धीरे से मुस्कुरा कर मुझेअपने पास बिठा लिया और मुझसे मुस्कुरा कर पूछा कि क्या तुम्हारे  यहाँ भी आटा घर में ही पिसा  जाता है ? मैंने पहली बार उन्हें मुस्कुराते और बात करते देखा था। उनकी आवाज बहुत ही मधुर थी । मैंने उन्हें बताया कि  हमारे घर में बाहर चक्की से आटा पीसकर लाया जाता है। उनसे बातें करते हुए,  मुझे अपने आवाज फटे बांस की तरह लगी । मैंने उनसे कहा भी कि आपकी आवाज बहुत ही मधुर है और आपके सामने मुझे बोलने में शर्म आ रही है । इतना सुनकर वह हंसने लगी। उनको हंसता देख कर मुझे अच्छा लगा और मेरा डर भी कम हो गया ।  उन्होंने आटा पीसने के बाद खाना बनाना शुरू किया। जब उन्होंने आटा गुंदा तो मैं दंग रह गई। उन्होंने खुब गीला आटा गुंदा । उसमें ढेर सारा पानी डालकर रख दिया । यह देखकर मुझे लगा कि आज तो  इस आटे से रोटी  बनने से रही । आटा गूंदने के बाद भाभी पीछे बगीचे से गिलकी, हरी मिर्ची और धनिया तोड़ लाई। वह मुस्कुराते हुए बोली कि तुम्हें गिलकी पसंद है ना ? मैंने धीरे से सिर हिला दिया और मन ही मन सोचा कि आज तो अपने को भूखा ही रहना पड़ेगा । एक तो यह ढेर सारा गीला आटा, जिससे रोटी बनने से रही और गिलकी की सब्जी जो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं थी । भाभी का खाना बनाने का तरीका बहुत ही अलग था। उन्होंने सब्जी धो कर भरवा बनाने के लिए उसे काटा और सिलबट्टे पर प्याज के साथ मूंगफली के दाने और तिल्ली भी डाली । हमारे यहां तो सब्जी में दाना और तिल्ली कभी नहीं डालते थे । भाभी ने घर के पीछे लगे टमाटर और मीठा नीम लाकर दाल बघारी। हद तो तब हो गई जब उन्होंने  दूध में चावल पकाए । तो मैं चुप ना रह सकी और मैंने उन्हें बोला भाभी चावल तो पानी में पकाए जाते है । भाभी बोली हॉ हम भी चावल पानी मे ही पकाते हैं, किन्तु जब कोई खास मेहमान आते हैं तो तुम्हारे दादा उन्हें दूध में बनाए चावल ही खिलाना पसंद करते हैं । यह सुनकर मैं चौंक गई कि क्या कोई मेहमान आ रहा है ? मैंने भाभी से पूछा, वह मुस्कुरा दी। मैंने उनका यह अंदाज पहली बार देखा था ।  वह काम करती जा रही  थी और बात भी करती जा रही भी । बातों-बातों में उन्होंने बताया कि वे एम. ए. पास है।मैंने उनका यह अंदाज पहले कभी नहीं देखा था । वे अपने पिताजी की इकलौती संतान थी । उनके पापा शहर में कॉलेज में प्रिंसिपल थे । खाना बनाने के बाद आखिर में उन्होंने हलवा बनाया। यह देखकर मैं सोचने लगे कि मैं बेकार  ही यहां आई। वैसे भी मैं तो उनके यहां आना ही नहीं चाह रही थी किंतु मौसी जी ने मुझे जबरन यहां भेजा। अब उनके खास मेहमान आ रहे हैं । मुझे अपने पर शर्म आ रही थी, साथ में घबराहट भी हो रही थी । खाना बनने तक दादा भी आ गए और उन्होने आते ही भाभी को एक थैली थमा दी और कहा  कि नत्थू लाल के यहां गरम-गरम सेव बन रही थी इसलिए मैं लेता आया । गांव में नत्थू लाल कि सेव बहुत प्रसिद्ध थी । दादा ने मेरे सिर पर प्रेम से हाथ फेरते हुए कहा कि अच्छा तो लग रहा है ना । मैंने धीरे से सिर हिला दिया । दादा ने अपने कपड़े बदले और हाथ मुंह धो कर चौके में आ गए । उन्होंने चौके  में दो पाटले लगा फिर मेरी और हंसते हुए बोले आओ खाना खाते हैं । दादा के साथ खाना खाने के नाम से ही मैं डर के मारे पसीना पसीना हो गई । मैंने धीरे से दादा को बोला कि मैं भाभी के साथ खाना खा लूंगी, तब दादा ने हंसते हुए कहा हम शुरू करते हैं, भाभी भी आ जाएगी  । दादा ने हाथ पकड़ कर मुझे प्रेम से अपने पास पटिऐ पर बिठा दिया था । भाभी ने थाली परोस कर रोटियां उतारना शुरू कर दी । मैं यह देखकर दंग रह गई की भाभी ने उसी गीले आटे से फुली फुली नर्म रोटी इतनी तेजी से बनाई और रोटियां बहुत ही स्वादिष्ट थी। गिलकी की सब्जी का एक कौर जैसे ही मैंने मुंह में डाला ऐसा लगा कि जिस गिलकी से मैं इतनी नफरत करती थी ,  वह सब्जी भी इतनी स्वादिष्ट बन सकती है, मैं सोच ही नहीं सकती थी । दाल चावल हलवा यह सब इतने स्वादिष्ट बने थे और दादा बड़े प्रेम से मुझे एक एक चीज खाने का आग्रह कर रहे थे । खाते-खाते मैंने भाभी से पूछा आप के खास मेहमान तो अभी तक आए ही नहीं तो दादा हंसते हुए बोले, आए हैं ना। मैंने आश्चर्य से पूछा कि कौन?   दादा ने मुस्कुराकर मेरे गाल पर प्यार से हाथ फेरकर बोला कि आप हमारे लिए किसी खास मेहमान से कम है क्या।इतना सुनते ही मुझे बहुत शर्म आई।  खाना खाने के बाद दादा मुझे बैठक में ले गए व मुझे बच्चों की ढेर सारी नई किताबें दी । पलंग पर पास में बिठाकर सिन्दबाद और रामायण आदि की कहानियां बताने लगे । अब तक मेरा डर भी खत्म हो गया था । मैं दादा की बातों में आनंद लेने लगी थी । थोड़ी देर में भाभी भी आ गई और वह भी हमारी बातों में शामिल हो गई । हम तीनों बातों बातों में इतना मगन हो गए कि पता ही नहीं चला कि शाम कब हो गई और मौसी जी आ गई । मौसी जी जैसे ही आई तो दादा-भाभी के चेहरे ऐसे उतर गए जैसे उनसे कोई खजाना छीना जा रहा हो।उन्होंने भारी मन से मुझे विदा किया । मैंने जो प्यार उनसे पाया वह जिंदगी का अनमोल तोहफा था और वह मै कभी भूल नहीं सकती थी । घर आकर मैंने मौसी जी को बताया कि भाभी ने कितना स्वादिष्ट खाना बनाया था और दादा से मैं इतना डरती थी उन्होंने कितने प्यार से मुझे अपने पास बिठाकर खाना खिलाया । मौसी जी भी उनकी खूब तारीफ करती रही । दूसरे दिन मैं वापस अपने घर  आ गई । कुछ ऐसा हुआ कि कई सालों तक मैं मौसी जी के यहां जा नहीं पाई । इसी बीच मौसी जी का देहांत हो गया और फिर दादा-भाभी से मेरा मिलना नहीं हो पाया । थोड़े दिनों में मेरी पढ़ाई पूरी हो गई और मेरी शादी भी हो गई । मैं अपने ससुराल आ गई । मेरा बेटा 3 साल का हुआ तो उसको स्कूल में भर्ती करा दिया गया । पहले दिन मैं उसको स्कूल छोड़ने गई तो वहां एक सुंदर सी टीचर जो मेरे बेटे की क्लास टीचर थी । उनको देखा तो लगा कि मैं उनसे पहले भी मिल चुकी हूं । ध्यान से देखा तो अरे यह क्या यह तो औंकार दादा वाली भाभी है । मैंने जैसे ही उन्हें भाभी कह कर बुलाया तो पहले तो वह चौकी फिर मुझे ध्यान से देखते हुए बोली तुम मनु हो ना, क्योंकि घर में सब मुझे मनु ही कहते थे, मैंने हंसते हुए बोला हां और यह मेरा बेटा हैं। उन्होंने बड़ी प्रसन्नता से मेरे बेटे को गोदी में ले लिया और थोड़ी देर में उन दोनों  में खूब दोस्ती भी हो गई । मैंने दादा के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्होंने यही ट्रांसफर करवा लिया और अब वे दोनों यहीं रहते हैं। मैंने उन को अपना पता लिखवाया और शाम को घर आने का पक्का वादा लिया।शाम को दादा-भाभी दोनों आए दोनों को देखकर मेरी  खुशी का ठिकाना नहीं रहा । मैंने अपने सास-ससुर, पतिदेव सब से उन्हें मिलवाया और  सब बात करने  लग गए। बातों बातों में दादा ने बताया कि शहर आने का कारण और भाभी की नौकरी करने का श्रेय पूरी तरह से मनु को जाता है । मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि मेरे से कैसे?  तब उन्होंने बताया कि तुम्हें याद है कि तुम हमारे घर आई थी,  पूरा दिन हमारे साथ रही और हमने साथ खाना भी खाया था। मैंने कहां हां, वह मैं, कैसे भूल सकती हूं, वह दिन तो मेरा सबसे खुशी का दिन था और इतना अच्छा खाना मुझे आज तक याद है । मैंने इतनी कोशिश की पर आज तक इतना अच्छा खाना नहीं बना सकी। तब दादा बोले हां यही मैं बता रहा हूं ।जब तुम आई थी तो मीना तेरी भाभी इतनी प्रसन्न हुई कि इतना प्रसन्न तो मैंने उन्हें शादी के बाद कभी देखा ही नहीं था । तो मैंने सोचा ऐसा क्या हुआ जो आज यह इतनी प्रसन्न है । मैंने अपने ससुर जी, जो साइकोलॉजिस्ट भी है, उनको बताया। तो उन्होंने बोला देखो तुम्हारे यहां बच्चे नहीं है। इस कारण गांव के लोग मीना को बार-बार ताना देते हैं  और उसका अपमान भी करते रहते हैं। इसलिए वह मायूस हो,हीन भावना से भर गई है। एक दिन कोई बच्चा तुम्हारे साथ रहा तो तुम दोनों ही खुश हो गए इसलिए तुम्हें अपना स्थान बदलना चाहिए क्योंकि गांव के वातावरण में मीना की मन:स्थिति खराब हो रही है । तुम शहर आ जाओ, मीना को मान्टेसरी की ट्रेनिंग दिलवा देते हैं । फिर इसकी नौकरी किसी स्कूल में लगवा देंगे, तो यह स्कूल में बच्चों के साथ रहेगी और प्रसन्न रहेगी । इसलिए मैंने अपना तबादला यहां शहर में करवा लिया और इसने स्कूल में नौकरी ली है। नौकरी करने से यह बहुत प्रसन्न रहती है और शहर में एक अच्छी बात है कि कोई किसी की पर्सनल बातों में दखल नहीं देता है। बहुत देर बैठने के बाद दादा-भाभी चले गए। परंतु उनके जाने के बाद मैं सोचने रही कि क्या एक बच्चा किसी की जिंदगी को इतना बदल सकता है?  

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