आडिट विभाग में ‘शहद’ के लिए अफसर छोटा पद लेने को हो रहें हैं बेकरार….
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लोकल फंड आडिट विभाग में कुछ अफसर ‘शहद’ के लिए छोटे पदों पर भी भिनभिना रहे हैं। यदि खुद नहीं बैठ रहे तो अपने चेलों को उस पद पर बैठा रहे हैं भले ही वह उस पद के लिए पात्र ही न हो। यह ‘शहद’ विशेष रूप से नगर निगम में मिलता है जहां बड़े खेल होते हैं। वैसे आडिट विभाग का काम है सरकारी धन के दुरुपयोग को बचाना लेकिन यदि सही जांच हो तो यहां बड़े-बड़े घपले सामने आएंगे।
तकरीबन सभी विभागों में कोई पद रिक्त होने पर उसकी जिम्मेदारी अफसर अपने मातहतों को सौंपता है लेकिन आडिट विभाग है कि यहां अफसर खुद विराजित हो जाता है। यानि कोई घपला करें तो जांच भी खुद ही के जिम्मे आएगी। ऐसा इंदौर, भोपाल, उज्जैन आदि संभागों में हो रहा है। भोपाल संभाग के संयुक्त संचालक आर.के. सोनी, उज्जैन संभाग के संयुक्त संचालक दीपक परिहार और इंदौर संभाग के संयुक्त संचालक अनिल कुमार गर्ग तीनों ही नगर निगम के रिक्त पड़े उपसंचालक के पद पर भी आसीन हैं। इन तीनों ने सिर्फ नगर निगम का ही पद अपने पास रख रखा है, अन्य का नहीं जिसमें मंडी, विकास प्राधिकरण, विश्वविद्यालय आदि शामिल है। नगर निगम में ही इन अफसरों का विशेष ध्यान रहता है। इसके पीछे कारण स्मार्ट सिटी, अमृत योजना सहित कई विशेष प्रोजेक्ट्स पर काम किया जाना है।
हर बिल पर बड़ा कमीशन
यह बात सामने आ रही है कि आडिट विभाग में हर बिल को पास किए जाने पर बड़ा कमीशन का खेल चलता है। इंदौर नगर निगम में तो डेढ़ साल पहले तत्कालीन निगमायुक्त आशीष सिंह ने आडिट विभाग के असिस्टेंट डायरेक्टर शरद कतरोलिया के खिलाफ संभागायुक्त आकाश त्रिपाठी को लिखित में शिकायत की थी। शिकायत में निगमायुक्त ने कतरोलिया द्वारा बिल पास करने के एवज में कमीशन लेने की बात कहीं थी। इस शिकायत की संभागायुक्त ने जांच कराई और जांच में कतरोलिया दोषी भी पाए गए थे जिसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया था। एक बात ध्यान देने योग्य है कि कतरोलिया असिस्टेंट डायरेक्टर के पद पर थे लेकिन उन्हें एक पद ऊपर की जिम्मेदारी दी गई थी जो नियमों के विरुद्ध है। उस दौरान इंदौर में डिप्टी डायरेक्टर के होते हुए भी उन्हें चार्ज नहीं दिया गया था।