बांग्लादेश के विकास से सीख ले सकती है दुनिया

मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान

26 मार्च 202१ को बांग्लादेश अपनी आजादी की 50वीं सालगिरह मना रहा है। जब भारत और पाकिस्तान आजाद हुए थे तब बांग्लादेश का कोई वजूद नहीं था क्योंकि वर्तमान में जो बांग्लादेश है वह पहले पाकिस्तान के क्षेत्र में आता था। यानि भारत और पाकिस्तान से 24 साल बाद बांग्लादेश का उदय हुआ। वर्तमान में यदि बांग्लादेश की परिस्थितियों की तुलना भारत और पाकिस्तान से की जाए तो यह इन दोनों ही देशों से बेहतर स्थिति में विकास कर रहा है। किसी भी देश की तुलना के सबसे बेहतर माध्यमों में से एक होता है मुद्रा।
भारत से 24 साल छोटे बांग्लादेश की तुलना यदि मुद्रा में करेंगे तो पाएंगे भारत का एक रुपया बांग्लादेश के 1.17 टका (वहां की मुद्रा) के बराबर है। यानि भारत के रुपये पर 17 पैसे ही अधिक है। इसके विपरीत यदि पाकिस्तान के रुपये की तुलना जब बांग्लादेश की मुद्रा से की जाती है तो पाकिस्तानी शर्मसार हो जाते हैं। बांग्लादेश के एक टके पर पाकिस्तान को 84 पैसे ज्यादा देना पड़ते हैं यानि एक टके बराबर पाकिस्तान का 1.84 रुपया होता है। इससे देखा जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि बांग्लादेश ने इन दोनों देशों के मुकाबले कितनी बेहतर तरक्की की है। कुल मिलाकर बांग्लादेश से अन्य देशों को सीख लेना चाहिए।

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विवादों से दूर, विकास का मॉडल बना
बांग्लादेश भी भारत और पाकिस्तान की तरह ही है जहां विभिन्न संप्रदाय के लोग निवास करते हैं। बांग्लादेश में भी जातीय हिंसा एक समय चरम पर थी लेकिन कुछ साल पहले से यह काफी कुछ बंद हो गई है। 2011 की जनसंख्या के अनुसार 16.4 करोड़ की आबादी वाले बांग्लादेश में 90.5 प्रतिशत मुस्लिम है तो 8.5 प्रतिशत हिंदू निवास करते हैं। बौद्ध व ईसाई धर्म के लोग भी यहां है जिनकी संख्या काफी कम है। कुछ अन्य इस्लामिक देशों की तरह बांग्लादेश में भी चरमपंथ को सक्रिय किए जाने की कवायद हुई थी लेकिन यहां की जनता ने ही इसे पसंद नहीं किया। समय रहते चरमपंथियों को रोकने से बांग्लादेश का काफी विकास हुआ। पाकिस्तान के कई बुद्धिजीवी आज बांग्लादेश का उदाहरण देकर अपनी सरकार को निशाने पर लेते हैं।
गांव-गांव तक रोजगार देने से मिली सफलता, कपड़ा उद्योग में भारत से निकला आगे
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में 2004 के बाद से जो बदलाव हुआ वहीं इस देश की वर्तमान खुशहाली का टर्निंग पाइंट था। तब से बांग्लादेश की जीडीपी दर की वृद्धि में तेजी देखी जा रही है। बांग्लादेश की सफलता के पीछे कारण उसका निर्यात आधारित उत्पादन है जिससे उसके यहां रोजगार में भी वृद्धि हुई है। उसने सामाजिक संकेतकों, आय स्तर और ग्रामीण इलाकों में उद्यमिता के स्तर में भी उल्लेखनीय वृद्धि की है। विश्व बैंक के वर्ष 20१4 के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि बांग्लादेश को माइक्रो क्रेडिट कार्यक्रमों से कफी लाभ मिला है। इससे पता चलता है कि माइक्रो क्रेडिट कार्यक्रमों से ग्रामीण परिवारों की आय में वृद्धि हुई। इसके कारण वर्ष 2000 से 20१0 के दौरान कुल गरीबी १0 फीसदी से ज्यादा कम हो गई। लघु कर्ज कार्यक्रमों द्वारा निचले स्तर के लोगों के आर्थिक और सामाजिक विकास की दिशा में प्रयास के लिए 2006 में ग्रामीण बैंक और उसके संस्थापक मोहम्मद युनूस को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था। बांग्लादेश के माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं के काम में महिलाएं आगे रही। विश्व बैंक की 20१9 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश ने लैंगिक समानता के कई पहलुओं में सफलता हासिल की है। इसमें महिलाओं के लिए जीवन के हर क्षेत्र में अवसर पैदा हुए हैं। इससे प्रजनन दर में कमी आई है और स्कूलों में लैंगिक समानता में वृद्धि हुई है। कुल मिलाकर बांग्लादेश ने अपनी आबादी पर भी कंट्रोल किया। यदि हम १95१ की जनगणना देखेंगे तो पाएंगे जहां बांग्लादेश है उस समय वह पूर्वी पाकिस्तान कहलाता था। तब पूर्वी पाकिस्तान की आबादी 4.2 करोड़ थी। वर्तमान पाकिस्तान में तब आबादी 3.37 करोड़ थी लेकिन जब हम वर्तमान स्थितियों को देखें तो पाकिस्तान की आबादी 20 करोड़ के पार पहुंच गई है जबकि बांग्लादेश १6.5 करोड़ पर है।
कपड़ा उद्योग की यदि बात करें तो बांग्लादेश ने आॅटोमेटेड मशीनों के कारण वैश्विक बाजार में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। कपड़ा निर्यात में यदि विश्व की स्थिति देखे तो चीन के बाद बांग्लादेश का दूसरा स्थान आता है। बांग्लादेश में कपड़ों का निर्यात १5 से १7 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। हर साल तकरीबन 45 अरब डॉलर का कपड़ा निर्यात बांग्लादेश कर रहा है जो 202१ तक 50 अरब डॉलर का किए जाने का लक्ष्य है। बांग्लादेश ने भारत को कपड़ा उद्योग में पीछे धकेला है उसके पीछे भारत की कुछ नीतियां भी उसे ले डूबी, हालांकि बांग्लादेश उसका फायदा उठाने में नहीं चूका। भारत में नोटबंदी ने कपड़ा उद्योग पर शिकंजा कसा तो जीएसटी लगने से यह बाजार टूट सा गया।
एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ गुजरात में ही ११8 मिले थी जो सूती वस्त्र उत्पादन करती थी वे बंद हो गई। बांग्लादेश ने इसे भांपते हुए कपड़ा निर्यात में वृद्धि की जिसका उसे बेतहाशा फायदा मिला। उसने ग्लोबल वेल्यू चेन (जीवीसी) एकीकरण पर बल दिया जिससे उसके कपड़े की ग्लोबल ब्रांडिंग भी हुई। बांग्लादेश ने भारत के साथ चीन में भी कपड़ा उद्योग में घुसपैठ की। असल में चीन और अमेरिका के बीच जो ट्रेड वॉर चला उसमें चीन ने भारी उद्योगों पर ध्यान केंद्रित किया। ऐसे में चीन से कपड़ा क्षेत्र में जो स्थान रिक्त हुआ उसे बांग्लादेश ने झपट लिया। कोरोना के कारण जब चीन से कंपनियों ने पलायन शुरू किया तो उसे भी बांग्लादेश ने अपनी तरफ आकर्षित करने में सफलता हासिल की। लगभग 25 कंपनियां चीन से बांग्लादेश में आई है। बांग्लादेश में करीब एक करोड़ लोगों को कपड़ा उद्योग से ही रोजगार मिल रहा है। निर्यात में यहां रेडीमेट कपड़ों का 80 फीसदी योगदान है। यहां वालमार्ट से लेकर प्यूमा तक जैसे तमाम सुपर ब्रांड्स के रेडिमेट गारमेंट्स बनते हैं। यहां मजदूरी सस्ती है इसलिए भी विदेशी कंपनियां यहां आकर्षित हो रही है। यहां मजदूरों को हर घंटे के 20 रुपये तक ही मजदूरी मिलती है। किसी टीशर्ट की बनवाई का मेहनताना एक से डेढ़ रुपये तक ही है जो अन्य देशों की तुलना में काफी सस्ता है।

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