भगवान श्री नरसिंह की पतली कलाई और प्रलय की भविष्यवाणी

श्री नरसिंह मंदिर उत्तरांचल के जोशीमठ में स्थित है । इसे श्री बदरीनाथ धाम का प्रथम एवं अंतिम दर्शन स्थल माना जाता है । कहा जाता है कि नरसिंह मंदिर के दर्शन से ही बदरीनाथ धाम की यात्रा प्रारंभ होती है एवं दर्शन करने के पश्चात एक बार फिर भगवान नृसिंह के दर्शन करने पर ही श्री बद्रीनाथ धाम की यात्रा सफल मानी जाती है ।
श्री नृसिंह मंदिर गंधमादन पर्वत के प्रवेश द्वार पर स्थित है । यह वही पावन स्थली है जहां भक्त प्रह्लाद की प्रार्थना से ही भगवान श्री नरसिंह ने अपना उग्र रूप त्यागकर सौम्य रूप का दर्शन दिया था । साथ ही इसी स्थान पर श्री जगद्गुरु शंकराचार्य ने भगवान नरसिंह को प्रतिष्ठापित कर उपासना की थी जिससे उन्हें चारधाम का भान हुआ । पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री बदरीनाथ की शीतकालीन षट् मासिकी नर पूजा इसी स्थान पर होती है अर्थात भगवान बदरी विशाल शीतकाल में छह माह के लिए बदरीनाथ धाम के बजाय यहां जोशीमठ में इसी नरसिंह मंदिर में विराजते हैं ।

जोशीमठ (उत्तराखंड) स्थित प्रसिद्ध श्री नरसिंह मंदिर


भगवान श्री नरसिंह का यह मंदिर एक विशाल कैंपस में बसा हुआ है । मंदिर प्राचीन उत्तर भारतीय शैली में काफ़ी बड़ा बना हुआ है ।
इस मंदिर की सबसे अद्भुत बात भगवान नरसिंह कि वह छोटी सी मूर्ति है जिसमें भगवान श्री नरसिंह का बायाँ हाथ कलाई से एकदम बारीक़ हो गया है । यहाँ के पुजारी इस बात को तथ्य रूप में बताते हैं कि जिस दिन भगवान नरसिंह कि यह पतली हुई कलाई टूट जाएगी उसी दिन पृथ्वी पर प्रलय आएगा एवं पृथ्वी ख़त्म हो जाएगी । भगवान की इस अत्यंत पतली कलाई को प्रातः काल के दर्शन में ही देखा जा सकता है । वहां उपस्थित समस्त श्रद्धालुओं को मंदिर के पुजारी बड़े ही चाव एवं भक्तिमय माहौल से उस मूर्ति को उठाकर उस एकदम पतली कलाई को लगभग सभी को पास में ले जाकर दिखाते हैं, किन्तु यह दर्शन सुबह मात्र छह से साढ़े छह बजे के बीच में ही करवाए जाते हैं । पुजारी एवं स्थानीय श्रद्धालुओं का कहना है कि वे पिछले कई वर्षों से इस कलाई वाले हिस्से को लगातार पतला होते देख रहे हैं ।

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