..तब भगवान गणेश ने कहा – मैं तुम्हारा नाम अपने नाम के आगे लगाकर बल्लाल विनायक कहलाऊंगा
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विहान हिंदुस्तान धर्म कथाएं
त्रेता युग में सिंधु देश के पाली ग्राम में बल्लाल नाम का एक बालक था। वह भगवान गणेश का पक्का भगत था। उसके पिता कल्याण नाम के शख्स थे जो एक व्यवसायी थे। बल्लाल की माता का नाम इंदुमति था। बचपन से ही बल्लाल भगवान गणेश की पूजा करते थे। वे छोटे-छोटे पत्थरों को भी भगवान मानकर पूजते थे।
एक बार गांव के बच्चे समीप ही खेलने गए। उन्हें वहां एक पत्थर दिखाई दिया। बल्लाल के कहने पर बच्चों ने उस पत्थर की गणेश के रूप में पूजा करना आरंभ कर दिया। वे सभी पूजा में इतने मग्न हो गए कि उन्हें भूख-प्यास और रात दिन का ध्यान ही नहीं रहा। उन बच्चों के माता-पिता अपने-अपने घर पर उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे लेकिन जब बच्चे समय पर नहीं आए तो ये सभी बल्लाल के घर चले गए। इन सभी लोगों ने कल्याण सेठ से शिकायत की कि बल्लाल के कहने पर बच्चे गांव के बाहर गए। कल्याण सेठ अब नाराज होकर उस स्थान पर पहुंचे जहां बल्लाल व उसके दोस्त भगवान गणेश के पूजन-अर्चन में लीन थे। कल्याण सेठ को देखकर बल्लाल के दोस्त तो वहां से भाग गए लेकिन बल्लाल पूजन में लीन ही रहा। उसके पिता ने उसका हाथ पकड़ा और पिटना शुरू कर दिया। वे अपने पुत्र को तब तक मारते रहे जब तक उसके शरीर से खून नहीं आ गया। इसके बाद बल्लाल को उन्होंने समीप ही एक पेड़ से बांध दिया। साथ ही पूजा की सामग्री को नष्ट करके उस पत्थर को भी फेंक दिया जिसे बच्चे गणेश के रूप में पूज रहे थे। कल्याण सेठ यह कहते हुए घर लौट गए कि अब देखता हूं तेरी रक्षा कौन सा भगवान करता है।
बल्लाल ने विनायक से प्रार्थना करना शुरू कर दी। उसे अपनी पिटाई या खुद को पेड़ से बांधे जाने का दु:ख नहीं था लेकिन अपने मंदिर और मूर्ति को फेंके जाने वह क्रोधित था। उसका शरीर भी दर्द कर रहा था और उसे भूख व प्यास भी लगी थी लेकिन वह लगातार भगवान गणेश का नाम जपता रहा। भगवान का नाम जपते-जपते वह बेहोश हो गया।
इस बालक की भक्ति देखकर भगवान गणेश काफी प्रभावित हो गए। उन्होंने ब्राह्मण का वेष धारण किया और बल्लाल के सम्मुख जा पहुंचे। इस ब्राह्मण ने जैसे ही बल्लाल को स्पर्श किया वैसे ही बल्लाल के शरीर में एक नई ऊर्जा आ गई और उसके घाव भी भर गए। भूख-प्यास भी उसकी तुरंत ही मिट गई। बल्लाल भी तुरंत ही समझ गया कि ब्राह्मण के वेष में स्वयं भगवान गणेश उसके पास आए हैं। वह तुरंत ही झुका और भगवान के पैरों में लेट गया और उन्हें प्रणाम किया। उसने भगवान की पूजा की। भगवान गणेश ने उसे एक वरदान मांगने को कहा। बल्लाल ने कहा – मेरा आपमें अटूट विश्वास बना रहे। आप यहीं निवास करके अपने पास आने वाले भक्तों के कष्टों का निवारण करते रहें। गणेशजी बोले मैं यहां अपने आंशिक रूप में निवास करूंगा। मैं तुम्हारा नाम अपने नाम के आगे लगाकर बल्लाल विनायक कहलाऊंगा।
इसके बाद भगवान गणेश ने बल्लाल को गले लगा लिया और निकट स्थित एक पत्थर में समा गए। पत्थर की वह मूर्ति ही बल्लालेश्वर कहलाती है। जिस पत्थर को बल्लाल के पिता ने फेंक दिया था उसे धुंधी विनायक कहा जाता है। यह एक स्वयंभू मूर्ति है। इसे बल्लालेश्वर से भी पहले पूजा जाता है। यह मंदिर वर्तमान में महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले में पाली नामक शहर में स्थित है। यह मंदिर अष्ट विनायक में से एक मंदिर है।