30 साल पहले महाभारत सीरियल से मशहूर हुए भीम आज मुश्किल दौर में
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विहान हिंदुस्तान न्यूज.
करीब 30 साल पहले दूरदर्शन पर चले लोकप्रिय सीरियल महाभारत में भीम का किरदार निभाने वाले प्रवीण कुमार सोबती को कौन नहीं जानता। इस सीरियल का क्रेज उस दौर में ऐसा रहा कि सीरियल आने के वक्त घर, चौराहे, गलियां और नुक्कड़ों पर भीड़ इकट्ठा हो जाया करती थी। इसके बाद इसे पिछले लॉकडाउन में भी लोगों ने खूब देखा। छह फीट लंबे भीम का किरदार भी इसमें कोई नहीं भुला सकता है। एक्टिंग के साथ उन्होंने अपने समय में खेल में भी अपना परचम लहराया है। 76 साल के हो चुके प्रवीण सोबती ही माली हालत फिलहाल ठीक नहीं है और वे किसी तरह से अपना जीवन गुजर-बसर कर रहे हैं। उन्होंने अपने आगे के गुजारे के लिए सरकार से पेंशन की गुहार लगाई है।
प्रवीण कुमार सोबती का खेल के मैदान में भी कोई सानी नहीं था। दो बार ओलंपिक, फिर एशियन, कॉमनवेल्थ में कई गोल्ड, सिल्वर मेडल हासिल कर चुके प्रवीण 1967 में खेल के सर्वोच्च पुरुस्कार ‘अर्जुन अवॉर्ड’ से नवाजे गए। खेल के शिखर से फिल्मी ग्लैमर का कामयाब सफर तय कर चुके ‘भीम’ उम्र के इस पड़ाव पर आर्थिक मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। प्रवीण कुमार सोबती ने बताया कि कोरोना ने सभी रिश्तों को बेनकाब कर दिया। सब रिश्ते खोखले हैं। इस मुश्किल वक्त में सहारा देना तो दूर अपने भी भाग जाते हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं 76 साल का हो गया हूं। काफी समय से घर में ही हूं। तबीयत ठीक नहीं रहती है। खाने में भी कई तरह के परहेज हैं। स्पाइनल प्रॉब्लम है। घर में पत्नी वीना देखभाल करती है। एक बेटी की मुंबई में शादी हो चुकी है। उस दौर में भीम को सब जानते थे, लेकिन अब सब भूल गए हैं।’ प्रवीण कुमार सोबती पंजाब के अमृतसर के पास एक सरहली नामक गांव के रहने वाले हैं। उनका जन्म 6 सितंबर 1946 को हुआ था। बचपन से ही मां के हाथ से दूध, दही और देसी घी की हैवी डाइट मिली तो शरीर भी भारी-भरकम बन गया। उनकी मां जिस चक्की में अनाज पीसती थी, प्रवीण उसे उठाकर ही वर्जिश करते थे। जब स्कूल में हेडमास्टर ने उनकी बॉडी देखी तो उन्हें गेम्स में भेजना शुरू कर दिया। वो हर इवेंट जीतने लगे। साल 1966 की कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए डिस्कस थ्रो के लिए नाम आ गया। ये गेम्स जमैका के किंगस्टन में था। सिल्वर मेडल जीता। साल 1966 और 1970 के एशियन गेम्स, जो बैंकॉक में हुए। दोनों बार गोल्ड मेडल जीतकर लौटा। 56.76 मीटर दूरी पर चक्का फेंकने में मेरा एशियन गेम्स का रिकॉर्ड था। इसके बाद अगली एशियन गेम्स 1974 में ईरान के तेहरान में हुईं, यहां सिल्वर मेडल मिला। करियर एकदम परफेक्ट चल रहा था, फिर अचानक पीठ में दर्द की शिकायत रहने लगा। प्रवीण कुमार ने कहा, ‘जब साल 1972 में जर्मनी के म्यूनिक शहर में ओलंपिक्स हो रहे थे, मैं भी हिस्सा लेने पहुंचा था। ये वही ओलंपिक्स हैं, जिनमें फिलिस्तीन के एक आतंकी संगठन ने ओलंपिक्स में भाग लेने आए इजराइली ग्रुप के 11 प्लेयर को बंधक बनाकर मौत के घाट उतार दिया था। ये खेलों के इतिहास का सबसे खौफनाक चेहरा था। मैं उसी स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में था। जब नाश्ते के लिए डाइनिंग एरिया की तरफ जा रहा था। गोलियां चलने की आवाजें सुनाई दीं। कुछ देर बाद पता चला कि आंतकियों ने हॉकी टीम को मौत के घाट उतार दिया है। ये मेरे लिए न भूलने वाला वाकया है।’ प्रवीण कुमार ने बताया कि उन्हें बीएसएफ में डिप्टी कमांडेंट की नौकरी भी मिल गई थी। एशियन गेम्स और ओलंपिक्स से इतना नाम हो गया था कि 1986 में एक दिन मैसेज मिला कि बीआर चोपड़ा महाभारत बना रहे हैं और वो भीम के किरदार के लिए चाहते हैं। उनसे मिला। देखते ही बोले भीम मिल गया। यहीं से बुलंदी का एक और रास्ता खुला। भीम का किरदार इतना पॉपुलर हुआ कि बॉलीवुड फिल्में भी मिलने लगीं। करीब 50 से ज्यादा फिल्मों में रोल मिले। उस समय पॉपुलर टीवी सीरीज चाचा चौधरी में साबू का रोल मिला। उनका कहना है कि पंजाब की जितनी भी सरकारें आईं। सभी से उनकी शिकायत है। जितने भी एशियन गेम्स या मेडल जीतने वाले प्लेयर थे, उन सभी को पेंशन दी, लेकिन उन्हें वंचित रखा गया, जबकि सबसे ज्यादा गोल्ड मेडल जीते। वो अकेले एथलीट थे, जिन्होंने कॉमनवेल्थ को रिप्रेजेंट किया। फिर भी पेंशन के मामले में उनके साथ सौतेला व्यवहार हुआ। अभी तो बीएसएफ से मिल रही पेंशन से ही जैसे तैसे खर्चा चल रहा है।
अभिनेता ने अपने प्यार को लेकर भी राज खोला है। उन्होंने बताया कि स्कूल टाइम में एक लड़की थी। उससे आत्मीय लगाव था, लेकिन उसको लेकर वो लापरवाह थे, क्योंकि उनका फोकस स्पोर्ट्स पर था। काफी समय तक दोनों एक-दूसरे को न जानते थे, न पता ठिकाना था। बाद में पता चला उनके घर से लड़की का घर 4 किलोमीटर दूर गांव में है। एक दिन लेटर आया। लिखा था, मिलना चाहती हूं, आती हूं आपके पास, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाती हूं। उसके बाद उनका दूर से मिलना-जुलना हुआ। गेम्स में बाहर जब भी जाते थे, कई तरह के गिफ्ट लाकर देते थे। लेटर से ही संवाद होता था। फिर प्रवीण की शादी हो गई। करीब डेढ़ साल बाद एक लेटर और एक बड़ा सा डिब्बा पार्सल आया। खोलकर देखा तो उसमें वो सारे गिफ्ट थे, जो कभी उन्होंने उस लड़की को लाकर दिए थे। उसने आखिरी लेटर में लिखा था, ‘मेरी भी शादी हो चुकी है, अब आपको लेटर लिखने की जरूरत नहीं, अपना ख्याल रखना।’ उसके बाद दोनों कभी नहीं मिले।