म.प्र. के बाद राजस्थान में भी अपने सांसदों को विधानसभा में झोंकेंगे मोदी, कैसे 2024 की लोकसभा में नए चेहरों के साथ बनाएंगे सरकार..

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज

विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी कही जाने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में इन दिनों काफी ऊहापोह की स्थिति है। ऊहापोह कार्यकर्ताओं की दृष्टि से है लेकिन पार्टी को चलाने वाले राष्ट्रीय संगठन की स्पेशल कोर टीम (अघोषित) पहले ही अपना मानस बना चुकी है। म.प्र. में जब 3 केंद्रीय मंत्रियों के साथ 7 सांसदों व एक राष्ट्रीय महासचिव को विधानसभा चुनाव में टिकट दे दिया तो बताते हैं म.प्र. के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान तक चौंक गए। संभव है अभी म.प्र. में कुछ अन्य सांसदों को भी मैदान दिया जाए। राजस्थान में भी पार्टी कुछ ऐसी ही योजना बना रही है। सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने सांसदों को जब विधानसभा में भेज देंगे तो उनके पास वे चेहरे कैसे आ जाएंगे जो लोकसभा जीत सके क्योंकि राज्यों में विधायक बनाने लायक ही टीम जब तैयार नहीं हो सकी तो लोकसभा जैसे बड़े चुनाव में एकाएक नेता कैसे पैदा होगा? बात यह आ रही है कि नरेंद्र मोदी को अपने दो कार्यकालों को लेकर इतना विश्वास है कि वे नए व युवा चेहरों के साथ जनता के बीच जाने की तैयारी कर रहे हैं। भाजपा की इस कोर टीम को मालूम है चुनाव आने तक विपक्षी गठबंधन इंडिया टूटकर चारों खाने चित हो जाएगा।

यह सवाल लगभग हर बुद्धिजीवी के जेहन में होगा। संभव है कुछ लोग इसे नरेंद्र मोदी, जे.पी. नड्डा, अमित शाह का अतिआत्मविश्वास भी मान रहे होंगे। खैर यह तो साल 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि किसके विश्लेषण में गलती हुई लेकिन पार्टी के इस कोर ग्रुप को पूरा विश्वास है कि वे ही फिर से सत्ता में काबिज होंगे। यह बात जरूर है कि यह टीम अब अपने जीते हुए या हाल ही में पराजित हुए राज्यों की स्थिति भी सुधारना चाहती है ताकि उन्हें अपने तिलस्म का उपयोग लोकसभा चुनाव में ही करना पड़े। अभी हो यह रहा है कि नरेंद्र मोदी व केंद्र सरकार के कार्यों पर विधानसभा में भी चुनाव लड़े जा रहे हैं जिसका खामियाजा भी पार्टी को भुगतना पड़ता है। कारण यह है कि जनता विधानसभा चुनाव के समय राज्य की सरकार के कामकाज को प्राथमिकता देती है और यही कारण है कि 2018 के चुनाव में राजस्थान, म.प्र. व छत्तीसगढ़ जैसे तीन महत्वपूर्ण राज्य भाजपा के हाथ से खिसक गए थे। संभवत: यही समय था जब से कांग्रेस मुक्त भारत का नारा भाजपा के गलियारों से भी समाप्त हो गया। इसके बाद भी भाजपा की हिमाचल प्रदेश-कर्नाटक सहित कुछ अन्य राज्यों में भी स्थिति खराब रही।

बात यह उठती है कि लोकसभा में साल 2014 के चुनाव के मुकाबले साल 2019 में भाजपा की ही सीटें बढ़ रही है तो फिर राज्य क्यों हाथ से निकल गए? विधानसभा के चुनाव में भी मोदी चेहरा क्यों चलाना पड़ रहा है? इसके पीछे बड़ा कारण स्टेट पॉलिटिक्स में संगठन का कमजोर होना है। भाजपा के राज्यों में भ्रष्टाचार का ग्राफ भी चरम पर जाने लगा है जिससे पार्टी की पाक साफ की छवि को भी यहां से धक्का लगता है। बात म.प्र. की करें तो यहां के कई विभागों में कमीशनखोरी-रिश्वतबाजी मानों किसी नियम की तरह घर कर गई है। संभवत: यही कारण है कि शिवराजसिंह चौहान सरकार को वे रेवडि़यां बांटनी पड़ रही है जो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पसंद नहीं है लेकिन जब अपने ही बेटे में खोट हो तो पिता की जुबां जाम तो होगी ही।

ऐसे फिर एक बार साल 2024 में सरकार बना सकते हैं मोदी..कुछ खास बिंदु –

-कोर टीम ने विधानसभा चुनावों के साथ ही लोकसभा चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी है। विभिन्न समीकरणों को लेकर पार्टी आगे बढ़ने लगी है जिसमें पसमांदा मुसलमान भी एक कड़ी है। मुस्लिमों के प्रभाव वाली 67 लोकसभा सीटें हैं जिसे साधने में पार्टी जुट गई है। संभव है इस बार कोई मुस्लिम महिला सांसद भी भाजपा के खेमे से लोकसभा में बैठे। जहां मुस्लिम वोट पर नजर है तो वहीं ओबीसी वोट पर पूरी तरह कब्जा जमाना चाहती है भाजपा। 2014 के चुनाव में भाजपा को 34 प्रतिशत तो 2019 के चुनाव में 44 प्रतिशत ओबीसी वोट पार्टी ने जुटाएं।

– पाकिस्तान के पास कश्मीर का जो हिस्सा है उसपर भारत की पकड़ काफी तगड़ी हो गई है। संभावना तो यह भी जताई जा रही है कि साल 2024 के चुनाव से पहले खुद ये कश्मीरी खुद ही भारत में विलय कर लें जिसे भारतीय सेना का सपोर्ट होगा। यह मोदी सरकार के लिए तुरुप का पत्ता होगा और भाजपा के घोषणा पत्र का भी यह हिस्सा है।

-चुनाव से कुछ पहले सरकार डॉलर पर नियंत्रण करना चाहेगी। आज एक डॉलर की वैल्यू 83.27 रुपये है। फिलहाल तो हम अफगानी मुद्रा से भी नीचे आ गए हैं। एक अफगानी रुपये पर भारत को 1.07 रुपये देने पड़ रहे हैं। डॉलर का मूल्य कम होने से भारत पर काफी वित्तीय भार कम होगा हालांकि भारत ने ही अन्य देशों को व्यापार करना सिखाया है यानी उसे ईरान से तेल लेना था तो दोनों देशों के बीच उनकी मुद्रा में व्यापार हुआ न कि अमेरिकी डॉलर से। भारत को देखकर अन्य देश भी इस तरह से व्यापार करने लगे हैं जो अमेरिका को खल भी रहा है। पेट्रोल-डीजल के दाम भी नियंत्रित करेगी सरकार।

-भारत की विदेश नीति जिसमें कनाडा से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध तक को देखें तो भारत महाशक्ति बनकर उभरा है। इसका फायदा भी लोकसभा चुनाव में मिलेगा क्योंकि विदेशों में फंसे भारतीय स्टूडेंट्स या अन्य लोग सुरक्षित स्वदेश लौटे।

-जम्मू-कश्मीर में धारा-370 हटाने के बाद वहां जिस तरह से विकास कार्य चल रहे हैं उसने न सिर्फ पर्यटन को बढ़ाया है बल्कि दुश्मन देशों के मुंह भी बंद कर दिए हैं। देशभर में सड़क नेटवर्क या रेल नेटवर्क की मजबूती भी मोदी सरकार के लिए फायदेमंद साबित होगी।

-प्रधानमंत्री आवास योजना सहित कई अन्य ऐसी योजनाएं हैं जिसका फायदा आम नागरिक को सीधे-सीधे मिल रहा है। यह बात अलग है कि इस योजना से बने आवासों पर राज्य सरकारों ने सही मॉनिटरिंग नहीं की जिससे कई जगह ये सही गुणवत्ता नहीं दे सके।

-भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहली मुलाकात अमेरिका में हुई थी तब जयशंकर वहां राजदूत थे। तब से ही मोदी ने उन्हें पार्टी में शामिल करने का मन बना लिया था। आज जयशंकर की तारीफ हमारे दुश्मन देशों के साथ पूरा विश्व कर रहा है। संभावना जताई जा रही है कि 2024 के चुनाव में कुछ ब्यूरोक्रेट्स, खिलाड़ी, सेना के अधिकारी या उद्योगपति भी पार्टी का हिस्सा बनकर मतदाताओं के पास जाएंगे। भाजपा का कोर ग्रुप मतदाताओं को पार्टी से जोड़ना चाहता है जिससे वह घर-घर तक किसी तरह पहुंचना चाहता है।

-पैराशूट उम्मीदवारों के आने से पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं पर प्रभाव पड़ता है जिससे मेहनती कार्यकर्ताओं को भी सीधे लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा। इसका फायदा पार्टी को यह होगा कि उसके जमीनी कार्यकर्ताओं में नई शक्ति आएगी और वे अपना प्रभाव पार्टी में बढ़ाना चाहेंगे। इससे लंबे समय से जमे हुए बड़े नेताओं का बोलबाला स्वत: समाप्त हो जाएगा। जो वरिष्ठ नेता विधानसभा के लिए भेजे गए हैं वे जीते भी तो राज्य में रहेंगे और हारेंगे तो उनका करियर स्वत: ही अंतिम पड़ाव पर पहुंच जाएगा।

-बात रिर्जव बैंक से निकाली गई अतिरिक्त राशि पर भी होगी। यह राशि निकलने से पहले भारत के पास अपनी सुरक्षा के लिए सेना के लड़ने की क्षमता मात्र 10 दिन की थी जो अब बढ़कर 40 दिन की हो गई है।

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