भाजपा की पसमांदा मुसलमानों पर बात लेकिन म.प्र. में मुस्लिम नजरअंदाज…ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशियों पर निर्भरता बढ़ी

मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज

म.प्र. विधानसभा चुनावों में 17 नवंबर को मतदान तो हो गया जिसके नतीजे 3 ​दिसंबर को आना है। प्रदेश में इस बार मतदान प्रतिशत 77.15 रहा जो 2018 के चुनाव के मतदान प्रतिशत 75.05 के मुकाबले 2.10 प्रतिशत ज्यादा है। बढ़े हुए मतदान का फायदा किसे होगा इसे लेकर भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने दावे कर रहे हैं। पिछली बार की तरह ही नतीजे आते हैं और शुरुआती दो पार्टियों में सीटों की संख्या में अंतर कम रहता है तो फिर एक बार सरकार की स्थि​रता पर संशय की स्थिति बन जाएगी। इस चुनाव में कौन किसके साथ रहा इस पर तो बहस छिड़ी है लेकिन मुस्लिम मतदाताओं पर बहस का कोई कारण नहीं है। अधिकांश लोग यही कह रहे हैं कि मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस को फिर एक बार साथ दिया। सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद परमांदा मुसलमानों को जोड़ने की बात करते रहते हैं तो फिर भाजपा म.प्र. में इससे अलग क्यों चली? भाजपा मुस्लिमों को तो साध न सकी लेकिन उसकी नजर असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम पार्टी पर रही। ओवैसी खुद की पार्टी को मुस्लिम हितैषी पार्टी बताते हैं जिससे उनकी पार्टी कांग्रेस के मुस्लिम वोटबैंक में सेंध लगा देती है।

म.प्र. विधानसभा को देखें तो मुस्लिम मतदाता 47 सीटों पर अपना महत्व रखते हैं लेकिन 22 सीटें ऐसी है जहां वे​ निर्णायक साबित हो सकते हैं इनमें से भोपाल की तीन और इंदौर की दो सीटे भी शामिल हैं। इंदौर में विधानसभा-1 और विधानसभा-5 में मुस्लिम मतदाताओं का प्रभाव काफी ज्यादा है। मिली जानकारी के अनुसार विधानसभा-5 में एक लाख से ज्यादा मुस्लिम वोटर्स हैं जबकि विधानसभा-1 में मुस्लिम वोटर्स की संख्या लगभग 50 हजार मानी जाती है। विधानसभा-1 में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव व कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय चुनाव लड़ रहे हैं जिनके सामने कांग्रेस से मेहनती नेता संजय शुक्ला है। कहा तो यह जा रहा है कि यह चुनाव काफी करीबी हो सकता है। ऐसा यदि हुआ तो मुस्लिम वोटरों की भूमिका मायने रखेगी, साथ ही यह भी देखना होगा कि एआईएमआईएम का प्रत्याशी यासिर पठान कितने वोट ले जाता है। जिस सीट पर कश्मकश के चुनाव होते हैं वहां मुस्लिम वोटर्स काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं जिसे देखकर यह कहना मुनासिब होगा कि 22 सीटों के नतीजे कांटे के चुनावों में सरकार बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। खास बात तो यह है कि 17 नवंबर को जिस दिन मतदान हुआ उस दिन शुक्रवार था जिससे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मतदान भी ज्यादा हुआ। बात यह भी आ रही है कि जब मुस्लिम वोटर्स इतने महत्वपूर्ण है तो भाजपा ने इन्हें साधने की कोशिशें क्यों नहीं की? इस प्रश्न का उत्तर कुछ लोगों को नागवार भी गुजरेगा लेकिन यह कहा जा रहा है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के प्रत्याशियों के खड़े होने से भाजपा को कुछ राहत महसूस होती है। बुरहानपुर में महापौर पद पाने वाली भाजपा को एआईएमआईएम का कितना सहारा मिला यह नतीजे देखकर स्पष्ट हो जाता है। यहां भाजपा की महापौर प्रत्याशी माधुरी पटेल 542 वोट से जीती थी जिन्हें 52,823 मत मिले जबकि कांग्रेस प्रत्याशी को 52,281 वोट प्राप्त हुए। एआईएमआईएम का प्रत्याशी 10,274 वोट ले गया जिसका नुकसान कांग्रेस को भुगतना पड़ा।

 इंदौर के बंबई बाजार में 1967 से भाजपा की टेबल लगा रहा एक मुस्लिम परिवार

इंदौर शहर की बात करें तो यहां मुन्नू इक्का हुआ करते थे जो ख्यात पहलवान रहने के साथ-साथ जनसंघ से जुड़े थे। मुन्नू इक्का पहलवान ने जनसंघ के लिए काफी काम किया और बाद में भाजपा पार्टी के गठन होने पर वे इसमें शामिल हुए। कुछ सालों पूर्व मुन्नू इक्का पहलवान का निधन हो गया जिसके बाद से उनके पुत्र फारूक राईन भाजपा की टेबल यहां लगाते हैं। विहान हिंदुस्तान डॉटकॉम ने इस विधानसभा चुनाव में जब बंबई बाजार का दौरा किया तो वहां भाजपा की टेबल लगाए फारूक राईन मिले। फारूक ने बताया कि उनके पिता 1967 से यहां जनसंघ व भाजपा के लिए टेबल लगा रहे हैं। भाजपा के नेता यहां खैर-खबर लेने आते हैं? यह पूछने पर यह मुस्लिम भाजपा नेता बताता है कि पंडित श्रीवल्लभ शर्मा आया करते थे लेकिन उसके बाद से नेताओं का चुनाव मतदान के समय आना बंद हो गया। भाजपा ने आपके पिता या आपको कोई पद दिया तो उनका कहना था हमने कभी पद के लिए काम नहीं किया लेकिन पार्टी ने भी इस तरफ नहीं देखा। उधर, अन्य मुस्लिम नेता भी भाजपा से छिटकते जा रहे हैं जिसमें पार्षद उस्मान पटेल सहित कई नाम है। ऐसे में पसमांदा मुसलमानों से म.प्र. में भाजपा की करीबी होने की बात दूर की कौड़ी दिखती है लेकिन भाजपा को यह भी समझना होगा कि वह एआईएमआईएम के साथ कांग्रेस को भी आसानी से कुछ सीटे दे रही है। यह भी कहा जाता है कि भाजपा ने यदि मुस्लिमों को पकड़ा तो उसके हाथ से हिंदू वोट बैंक टूट सकता है जिसके डर के कारण वह इस तरफ हाथ नहीं डाल रही है।

शुक्रवार को हुए मतदान के दौरान बंबई बाजार में भाजपा की टेबल लगाए फारूक राईन (पीला कुर्ता)

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