बड़ा फैसला : ऑपरेशन के दौरान यूरोलॉजिस्ट को नहीं रखा, बॉम्बे हॉस्पिटल सहित डॉ. नीरजा पुराणिक व अन्य पर 6 लाख रुपये दंड

मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज

एक महिला के पेट में दर्द हुआ। वह इंदौर स्थित बॉम्बे हॉस्पिटल पहुंची जहां ऑवस्ट्रेट्रीशियन तथा गायनाकालॉजिस्ट डॉ. नीरजा पुराणिक व सर्जन डॉ. आशुतोष सोनी ने उनका इलाज किया। दर्द के कारणों का पता लगाने के लिए डॉक्टर ने कुछ टेस्ट कराए और उन टेस्टों के आधार पर बाद में ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन के दौरान यूरोलॉजिस्ट को नहीं रखा गया और यही कारण रहा कि मरीज को बाद में काफी परेशानी उठाना पड़ी। मरीज ने अस्पताल प्रबंधन सहित डॉक्टरों को न्यायालय में चुनौती दी। इस तरह के तकनीकी प्रकरण को लेकर न्यायालय ने हर पहलु पर अध्ययन किया और मरीज के पक्ष में फैसला दिया।

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग क्रमांक-2 में सुने गए इस प्रकरण पर अध्यक्ष सरिता सिंह व सदस्य शैलेंद्र सिंह ने आज फैसला सुनाया। उन्होंने परिवादी श्रीमती माया नायर के पक्ष में फैसला देते हुए डॉ. नीरजा पुराणिक, डॉ. आशुतोष सोनी, बॉम्बे हॉस्पीटल आदि पर लापरवाही बरतने के आरोप में 6 लाख रुपये परिवादी (पीडि़त पक्ष) को अदा करने के आदेश दिए। साथ ही मानसिक त्रास की राशि के रूप में 50 हजार रुपये तथा 10 हजार रुपये प्रकरण व्यय भी अदा करने के आदेश दिए हैं। यह राशि 30 दिनों के अंदर देने की बात फैसले में कही गई है। माया नायर का ऑपरेशन मार्च 2007 में हुआ था। उन्होंने यह मामला 13 मार्च 2009 को लगाया था जिसकी अंतिम सुनवाई 18 जनवरी 2023 को हुई। 21 फरवरी 2023 को जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष ने अपना फैसला सुनाया।

यह है मामला

माया नायर को पेट में तेज दर्द हुआ तो वे 20 मार्च 2007 को डॉ. नीरजा पुराणिक को दिखाने गई। डॉ. पुराणिक ने कुछ जांचे लिखी जो मरीज ने करवाई। 27 मार्च 2007 को डॉ. नीरजा पुराणिक और डॉ. आशुतोष सोनी ने मरीज को बॉम्बे हॉस्पिटल इंदौर में भर्ती रहने के दौरान उनका ऑपरेशन किया। ऑपरेशन के दौरान मरीज की दोनों ओवरी और अपेन्डिक्स निकाला गया। 31 मार्च 2007 को जांच के उपरांत मरीज को डॉक्टर ने डिस्चार्ज करने की सिफारिश की। इसी दिन मरीज के जख्मी टांको में से अचानक लिक्विड फ्लूड बाहर आने लगा तो डॉ. पुराणिक ने मरीज को सिर ऊपर रखकर लेटे रहने को कहा। बाद में मरीज के दो टांके निकाले गए ताकि फ्लूड बाहर निकल जाए। स्थिति अनुकूल नहीं होने पर मरीज को मुंबई स्थित बांबे हॉस्पिटल भेजा गया जहां इलाज के दौरान उसकी समस्या का समाधान हुआ।

मरीज का आरोप था कि उसकी दाहिनी ओवरी में सिस्ट होने से उसे ही ऑपरेशन कर निकालना था लेकिन उसकी बाई ओवरी तथा अपेन्डिक्स को भी उनकी बगैर सहमति के निकाल दिया गया। साथ ही यह भी बात आई कि जब इंदौर में ऑपरेशन किया जा रहा था तब यूरोलॉजिस्ट को भी टीम में रखा जाना था। न्यायालय ने सभी पक्षों को सुनने के साथ पुराने प्रकरणों का भी अध्ययन किया जिसके बाद अपना फैसला सुनाया। मरीज की बाई ओवरी तथा अपेन्डिक्स निकाले जाने को ऑपरेशन के दौरान जरूरी माना गया। हालांकि न्यायालय ने यूरोलॉजिस्ट का ऑपरेशन के दौरान न होना लापरवाही पाया।

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