चॉकलेट की इस प्रसिद्धी से पापड़ों को बुरा लग सकता है

मुकेश नेमा की व्यंगात्मक कलम से

मुकेश नेमा

हम हिंदुस्तानियों को चॉकलेट्स की क़ीमत आमतौर पर दो ही वक्त पता चलती है । पहली बार तब जब कोई कन्या चॉकलेट्स लेने को राज़ी दिखे और दूसरी बार तब जब खुद की औलादों चॉकलेट्स खाने लायक़ बड़ी हो जायें । चॉकलेट का इतना भर उपयोग था हमारे जीवन में । पर अब जाकर, जब मैं चॉकलेट्स ख़रीदने की दोनों अवस्थाएं पार कर चुका, यह पता चला है कि चॉकलेट कोरोना से भी बचा सकती है । चॉकलेट की इस प्रसिद्धी से पापड़ों को बुरा लग सकता है। पर जब भी किसी समझदार आदमी से इन दोनों में से एक चुनने को कहा जाये तो निश्चित रूप से वो मीठी चॉकलेट्स को ही चुनेगा ।
चॉकलेट्स हमेशा से मीठी थी नही । चार हज़ार साल पहले जब ये आई तो तीखी ही थी । चूंकि दुनिया तीखी चीजों और तीखी बातों से अनमनी होती है ऐसे में बाद में इसे मीठा करने के उपाय किये गये ।
स्‍पेन के राजा मान्‍तेजुमा ने इसके कड़वे स्‍वाद की वजह से इसे सूअरों के पीने लायक ड्रिंक करार दिया था। पर जैसी की आम बात है राजा और प्रजा कभी एक राय नहीं होते, स्पेन के बड़े लोग इसे चोरी छुपे पीते रहे । और फिर सन 1848 में ब्रिटिश चॉकलेट कंपनी जे.एस फ्राई एंड संस ने पहली बार इसमे दूध और शक्‍कर डाली और इसे मीठा कर दिया ।
सैकड़ों साल तक लोग चॉकलेट को पीते ही रहे, फिर एक अंग्रेज डॉक्‍टर सर हैंस स्‍लोने ने खाने वाली चॉकलेट की रेसिपी तैयार की। चूंकि ये डॉक्टर ने बनाई इसलिये दुनिया के तमाम डॉक्टरों ने यह बात मशहूर कर दी कि ये दिल की सेहत के लिये अच्छी है। दिल के बहाने चॉकलेट खाती रही दुनिया को अब जाकर यह बात पता चली है कि चॉकलेट दिल के मामले तो सुलझा ही सकती है ये हमे कोरोना से भी बचा सकती है ।
चॉकलेट से कोरोना ठीक होने वाली बात भी एक डॉक्टर ने ही बताई है तो इसे मानने में ना नुकर करना, उनकी कही बात में कीड़े निकालना तो बेवकूफी ही हुई। हो सकता है कोरोना को शुगर हो या मीठा पसंद ही ना उसे । ऐसे में चॉकलेट्स खाने की यह सलाह मानने लायक़ है ।
सोच कर देखे । अस्पताल मे हैं आप । चॉकलेट्स के पैकेट्सो से घिरे हुए हैं । आसपास भर्ती प्रोढ सुंदर ललनाए मुस्कुराती हुई उम्मीद भरी निगाहों से तक रही है आपको । ऐसे मे आप व्हाया चॉकलेट्स भरे बुढ़ापे मे, आपदा में अवसर तलाश सकते है । चॉकलेट्स खाने का यह अतिरिक्त फ़ायदा है ।
ख़तरा इतना भर है कि ये भी ऑक्सीजन और इंजेक्शनों की तरह ब्लैक ना होने लगे । हमारे यहां के चतुर लोग चॉकलेट की आड़ में चॉक पाउडर या गुड ना बेचने लग जाये । इसलिये क़ायदे की दुकान से ख़रीदे इन्हें । डार्क चॉकलेट ही चुनें । पड़ोस की किराना दुकान का गिरा शटर खटखटा कर देखें । वहां ना मिले तो ऑन लाईन मंगवा लें । ब्लैक में मिलने की नौबत हो तब भी आना कानी ना करें । चॉकलेट कितनी भी क़ीमती हो जान से ज़्यादा क़ीमती नहीं हो सकती ।
बेमतलब के तर्क देने से बचें । नीम हकीम ख़तरा ए जान वाली कहावत को भी दिल से निकाल दें फौरन । चॉकलेट की तरफ़दारी करने वाला पढ़ा लिखा, डिग्री धारी डॉक्टर है । उनकी बातें सर माथे लें । दाल रोटी और सेव संतरे जैसी फ़ालतू चीजो से बाज आयें । चॉकलेट ही खायें अब । यदि चॉकलेट्स खाने के बाद भी मर गये हम लोग तो भी इसमें परेशान होने जैसा कुछ है नही । निराशा भरे दिमाग़ और कड़वाहट भरे मन के बजाय मीठी डार्क चॉकलेट खाकर, मीठे हुए मुंह के साथ मरना एक बेहतरीन विकल्प है ।

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