सीएम डॉ. मोहन यादव राजस्थान के सीएम भजनलाल शर्मा से 8 प्रतिशत पीछे हो गए…

म.प्र. के सीएम डॉ. मोहन यादव व राजस्थान के सीएम भजनलाल शर्मा

मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज

म.प्र. के सरकारी कर्मचारी आज सुबह जब उठे तो उन्हें एक विश्वास था कि आज सरकार कम से कम 4 प्रतिशत महंगाई भत्ता (डीए) तो बढ़ा ही देगी क्योंकि आज कैबिनेट की बैठक जो होना थी। सरकार ने इस मामले को नजरअंदाज कर दिया लेकिन शाम को खबर आई कि राजस्थान की सरकार ने 4 प्रतिशत डीए बढ़ाकर केंद्र सरकार के बराबर 50 प्रतिशत डीए कर दिया। इसके बाद तो म.प्र. के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की तुलनाओं के दौर शुरू हो गए। तुलना करते हुए ये बात भी आई कि म.प्र. के सीएम डॉ. मोहन यादव राजस्थान के सीएम भजनलाल शर्मा से 8 प्रतिशत पीछे हो गए। राजस्थान के लोगों के लिए एक खुशखबर यह भी है कि उनके प्रदेश में पेट्रोल डीजल पर वैट 2 प्रतिशत कम कर दिया गया है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 रुपये प्रतिलीटर डीजल व पेट्रोल के भाव भी कम कर दिए हैं जो कुछ राहतभरी खबर है। किसी भी प्रदेश में या कंपनी-संस्थान का आंकलन का एक बिंदु कर्मचारी को मिलने वाले वेतन व सुविधाओं से भी होता है।

म.प्र. के कर्मचारियों को सीएम डॉ. यादव से उम्मीद थी कि वे केंद्र सरकार के बराबर 50 प्रतिशत डीए तो नहीं दे पाएंगे लेकिन 4 प्रतिशत देकर कम से कम केंद्र के कर्मचारियों के करीब तो आ ही जाएंगे लेकिन उनकी उम्मीदों पर कैबिनेट की बैठक समाप्त होते ही पानी फिर गया। नरेंद्र मोदी सरकार ने हाल ही में अपने कर्मचारियों का डीए 4 प्रतिशत बढ़ाते हुए 50 प्रतिशत कर दिया था। म.प्र. में डीए नहीं बढ़ाने के पीछे बड़ा कारण सरकार की माली हालत दयनीय होना है। उसे हर महीने की 10 तारीख को लाड़ली बहना योजना के लिए बड़ा फंड रिलीज करना पड़ता है जिसने बची-खुची आर्थिक व्यवस्था भी ध्वस्त कर दी है। स्थिति तो यह हो गई है कि जिन बच्चों के पिता नहीं है उन्हें सरकार 4000 रु. प्रति माह देती थी उस तक को कई बार कुछ महीने रोक दिया जाता है लेकिन लाड़ली बहना योजना का पैसा जरूर डाला जाता है। लोकसभा के चुनाव तक तो यह राशि हर माह डाली ही जाना है। सरकारी कर्मचारियों की स्थिति तो यह है कि उन्हें अब डीए के बारे में सोचना ही छोड़ देना चाहिए और सोच यह होना चाहिए कि सरकार उन्हें हर माह वेतन समय पर दे दें। आज जब म.प्र. के कर्मचारियों के बीच मैसेज के दौर शुरू हुआ तो कर्मचारियों की नाराजगी फूट-फूटकर सामने आ गई। लगभग हर कर्मचारी ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी नाराजगी दिखाई। हालांकि सरकारी कर्मचारियों को अब यह पता चल चुका है कि उनसे बड़ा वोट बैंक लाड़ली बहनाओं का है जिसे संभालनेभर से ही सरकार चुनाव के नतीजों को उलटने की ताकत रखती है जिससे उनके आंदोलन-प्रदर्शन का इरादा भी बन नहीं पा रहा है। दूसरा यह भी है कि सरकारी कर्मचारियों के नेता भी दमदार नहीं रहे जो सरकार के सामने खड़े होने की हिम्मत कर पाए। कुछ नेता तो पिछले दरवाजे से सरकार या अधिकारियों से अपना निजी काम करवाने में ही मशगुल देखे जाते हैं। कुल मिलाकर सरकारी कर्मचारियों के लिए सरकार की तरफ आस लगाना ही बेईमानी है। पेंशनरों का तो छोड़ ही दो उन्हें तो कर्मचारियों के साथ डीए मिल जाए वहीं उनके लिए खुशखबर जैसा होता है।

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