एक कुंवारी विधवा

श्रीमती प्रभा शर्मा

उनका नाम था पूर्णा । थी तो वह हमारे स्कूल में चपरासी, किन्तु सभी उनको पूर्णा मौसी बुलाते थे। वह स्कूल के आहते में बने क्वाटर में रहती थी। पूर्णा मौसी को स्कूल का सारा स्टाफ न सिर्फ बहुत प्यार करता था बल्कि सम्मान भी देता था । वह हमेशा हंसती रहती थी । कोई भी समस्या हो या कुछ काम हो उसको सुलझाना उनका स्वभाव था। पूर्णा मौसी हमारे स्कूल की कष्ट निवारक दवा थी। 
मेरी तो मानों बड़ी बहन थी। मेरे पतिदेव आफिस के काम से ज्यादातर बाहर टूर पर रहते थे, तब वह हमारे घर में ही  रहती थी। मेरे दोनों बच्चों की डिलेवरी में पूर्णा मौसी ने मुझे व घर को इतने अच्छे से सम्हाला, मानो वो मेरी माँ ही हो। दोनों बच्चो को भी वह नानी सा प्यार देती थी । बच्चे भी  देखते ही उनसे प्रसन्नता से लिपट जाते थे।  पूर्णा मौसी के कारण हमारा स्टाफ प्रसन्न रहता था। किसी के यहाँ कोई मेहमान आने वाला हो या कोई बीमार हो तो पूर्णा मौसी तुरन्त उस घर को अपना मान कर काम में जुट जाती थी।
एक दिन की बात है, पतिदेव बाहर टूर पर गऐ थे, तो मौसी हमारे घर पर ही थी । रात को अपना सारा काम निपटा कर वो मेरे पास बैठ गई । बच्चे अपने कमरे मे बैठ कर पढाई कर रहे। हम दोनों बातें करने लगे। बातों- बातों मे मैंने पूर्णा मौसी से उनके परिवार के बारे में पूछा । चूंकि वह हमेशा अकेली रहती थी, कभी कोई उनके यहां आता नहीं था, न कभी उनको कहीं जाते देखा था। किसी को भी उनके बारे मे कोई जानकारी भी नहीं थी । मौसी ने भी कभी अपने बारे में कुछ नहीं बताया था । मेरे अचानक उनके परिवार के बारे में पूछने पर पहले तो वह कुछ बोली नही। फिर थोडी देर मुझे देखा और बोली मैडमजी मैंने तो अपने बारे में सोचना ही छोड दिया था। आज आपने पूछा तो मुझे याद आया कि मेरा भी कभी परिवार हुआ करता था। मेरे पिताजी गांव से परिवार सहित यहां आ गए थे और एक कारखाने में नौकरी करते थे। हम तीन बहने व दो भाई  थे। पिताजी अच्छा कमा लेते थे, माँ भी बहुत किफायत से घर चलाती थी । हमारा परिवार अच्छे से रहता था। उस वक्त मैंने आठवीं की परीक्षा बहुत अच्छे नम्बरों से पास की थी। एक दिनअचानक कारखाने मे काम करते समय पिताजी के दोनों हाथ मशीन में आ गए और वे अपाहिज़ हो गए। घर मे जैसे भूकम्प आ गया । कारखाने के मालिक ने तो पिताजी की गलती बता कर कुछ भी पैसे नही दिऐ  । माँ ने ही अपने पास की जमा पूंजी से पिताजी का ईलाज करवाया किन्तु पिताजी को अपनी हालत व घर की परिस्थिति देख कर इतनी हताशा आ गई कि वे ज्यादा दिन जिन्दा नहीं रहे। पिताजी की मौत से हम सब बहुत घबरा गऐ और समझ नही पा रहे थे कि आगे क्या करना। गांव में भी कोई ऐसा रिश्तेदार नहीं था, जो हमारी मदद करता। हमारे घर से कुछ दूर सरकारी क्वार्टर थे । वहां लडकियों के स्कूल की एक प्रिसिंपल मैडम रहती थी । वह बहुत ही सरल स्वभाव की थी और अकेली ही रहती थी। कभी-कभी मैं उनके यहां चली जाती थी। वे भी मुझसे बहुत प्यार से बातें करती थी। पिताजी की मृत्यु के समय वे हमारे घर पर भी आई थी।  उन्होंने मॉ की मदद भी की थी। बाद में आर्थिक तंगी देखते हुए मॉ को अपने यहां खाना बनाने व घर के अन्य काम के लिए कहा । परंतु पिताजी की मौत के कारण मॉ कुछ महीने घर से बाहर नही  निकल सकी थी, इसलिए मॉ ने मुझे उनके यहां काम करने के लिए भेज दिया। कुछ दिनों में मैडम ने मुझे कई घरों मे काम दिलवा दिया। मॉ को घर के लिऐ पैसे मिलने लगे तो घर मे थोडी शान्ति आगई  , सब भाई बहन फिर से स्कूल जाने लगे। घर फिर व्यवस्थित रूप से चलने लगा।
पिताजी की मौत से, सिर्फ मैं अकेली थी, जिसकी जिंदगी बदल गई थी ।  सुबह जल्दी उठकर घर-घर जाकर काम करना पड़ता था और लगभग शाम तक यही चलता रहता था । शाम को जब मैं घर आती तो इतना थक जाती थी कि खाने का भी होश नहीं रहता था । मां मेरे बारे में चिंता करती थी पर कोई हल नहीं निकलता था। घर के खर्चे भी बहुत थे। मकान किराया ही मेरी कमाई का आधा हिस्सा ले जाता ।  कई बार सोचा कि कोई सस्ता मकान ले, किंतु बहुत कोशिश के बाद भी कोई मकान नहीं मिला । एक दिन गायकवाड मैडम मुझसे बोली कि पूर्णा हमारे स्कूल में एक चपरासी की जगह खाली हो गई है और उसमें रहने के लिए एक मकान भी मिलेगा।अपनी मां को पूछ कर बताना तो मैं तुम्हारा आदेश निकलवा दूंगी ।  मां तो यह खबर सुनकर खुशी के मारे पागल हो गई ।  तुरंत ही मेरी नौकरी लग गई। अब मुझे घर-घर जाकर काम करने से मुक्ति मिल गई । मैं सिर्फ अपनी गायकवाड मैडम के यहां काम करती थी ।  वह बहुत मना करती थी किंतु मुझे उनके यहां काम करने में आनंद आता था। उनका घर मुझे अपना घर सा लगता था ।
पूर्णा मौसी लगातार कहें जा रही थी। उनके चेहरे पर एक नई रौनक आ गई थी । वो बताने लगी कि नई नौकरी, नया घर हमें बहुत रास आया । नए घर में सभी प्रसन्न थे । मेरा वेतन भी बहुत अच्छा था । अब हमारे घर में खुशहाली आ गई थी।
अपनी जीवन गाथा सुनाते हुए पूर्णा मौसी का चेहरा अचानक गुलाबी हो गया। उन्होंने बताया कि हमारे स्कूल में ही एक चपरासी रामलाल भी था, जो स्कूल के पास में ही रहता था ।  उसका व्यवहार सबसे अच्छा था। दिखने में भी वह काफी अच्छा था । मुझसे बड़ा था, पर हमेशा मेरी मदद करता था । ना जाने कब हम एक दूसरे को चाहने लगे । एक दिन रामलाल की मां हमारे घर आई । वह अक्सर हमारे घर आती रहती थी। उस दिन वह आई तो मां के साथ मैं भी वही बैठ गई। रामलाल की मां थोड़ी देर इधर-उधर की बात करती रही, फिर वह मां से मेरे और रामलाल के रिश्ते के बारे में बोली । वह हम दोनों की शादी की बात कर रही थी । तभी मां बोली कि पूर्णा की शादी तो हो ही नहीं सकती, क्योंकि वह बाल विधवा है । यह सुनकर में वहां से उठकर जाने ही वाली थी कि फिर धम्म से वही बैठ गई। रामलाल की मां भी धीरे से उठ कर चली गई । मां के मुंह से यह बात सुनकर मेरे तो होश ही उड़ गए और मैं जोर जोर से रोने लगी कि मां ने इतना बड़ा झूठ क्यों बोला। रामलाल की मां के जाने के बाद मां मेरे पास बैठकर रोते-रोते मुझे ढांढस देने लगी तथा बोली बेटा मुझे माफ करना। मैं क्या करूं यदि तेरी शादी करती हूं तो यह घर फिर से बिखर जावेगा । आज तेरे कारण तेरे भाई बहन फिर से स्कूल जा रहे हैं। पढ़ लिखकर कुछ बन जाएंगे नहीं तो इनकी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी । मेरी बच्ची क्या तू चाहती है कि इनका भविष्य खराब हो । रामलाल बहुत अच्छा लड़का है और मैं भी चाहती हूं कि तेरे साथ उसकी शादी हो जाए, किंतु क्या करूं तेरी शादी से सब बिखर जाएगा । इसलिए मैंने यह झूठ बोला बेटा मुझे माफ कर दे । मां बहुत देर तक रोते-रोते मुझसे माफी मांगती रही पर मुझे अपनी मां से नफरत हो गई थी । मैं नफरत के साथ घर से निकलकर गायकवाड मैडम के घर चली गई । बस मुझे लग रहा था कि मां अपने स्वार्थ में कितनी आंधी हो गई कि उसे मेरा तनिक भी ख्याल नहीं है और उसने मेरी पूरी जिंदगी अंधेरे से भर दी । मैडम के घर गई तो वे अकेली उदास बैठी थी। मैं उनके पास जाकर फूट-फूट कर रोने लगी । वह घबरा गई। मैडम समझ नहीं पा रही थी कि हमेशा हंसने वाली पूर्णा को आज क्या हो गया । उन्होंने बड़े प्यार से हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास बिठाया और मेरे सर पर हाथ फेरने लगी । धीरे धीरे मेरी रुलाई कम होने लगी, तब उन्होंने मुझसे रोने का कारण पूछा तो मैं भी अपने मन का गुबार निकालना चाहती थी । उनका प्यार भरा स्पर्श पाकर मैंने सारी बातें उन्हें बताई और रोते रोते मां को भी खूब भला बुरा कहने लगी । सारी बातें सुनकर गायकवाड़ मैडम विद्रूपता से मुस्कुरा कर बोली पूर्णा यह तो होना ही था किंतु तुम अपनी मां को माफ कर दो । वह भी बेचारी क्या करें, अपनी एक लड़की की ख़ुशी के पीछे बाकी बच्चों को दुःख कैसे दें । तुम एक बार अपने आप को उसकी जगह रख कर देखो। क्या तुम उनकी जगह होती तो तुम भी ऐसा कुछ नहीं करती ? पूर्णा देखो अब मेरी बात ध्यान से सुनो और सोचो अपने लिए तो सभी जी लेते हैं, अपनी खुशी से हटकर औरों की खुशी ढूंढो । देखो पूर्णा मैं तुम्हें कोई बड़ा उपदेश नहीं दे रही हूं पर सोचो क्या तुम्हारे पास कोई दूसरा उपाय है । यदि आपके पास कोई अन्य उपाय नहीं है तो दूसरे की भलाई सोच कर ही जिंदगी गुजारना पड़ती है । सकारात्मक सोच से यह जिंदगी जी जा सकती है । शुरू में तो बहुत तकलीफ होती है किंतु, “भगवान की यही मर्जी है”,  इस सिद्धांत पर चलो तो जिंदगी थोड़ी आसान हो जाती है। देखो तुम्हारा दुख अभी नया-नया है किंतु धीरे-धीरे तुम्हें भी इसकी आदत हो जावेगी। फिर उनके आंखों में आंसू की धारा बह चली । गायकवाड़ मैडम रोते-रोते बोली कि कोई भी मां हो, अपने बच्चों के सुख के लिए, एक कमाऊ बच्चे की कुर्बानी दे ही देती है। तुम्हारी शादी की बात तो चली किंतु मेरे मां एवं पिताजी दोनों ने मेरी शादी की सोची ही नहीं और मेरे सामने मेरे ही पैसों से मेरे भाई और बहनों की शादियां कर दी । एक बार भी मेरी शादी की बात नहीं सोची फिर भी आज मैं जिंदा हूं और समाज में रह रही हूं । जानती हो यदि मैंने अपनी सकारात्मक सोच नहीं रखी होती तो मैं या तो पागल हो गई होती या मैंने आत्महत्या कर ली होती। हमारे समाज में धर्म इन सब के लिए एक अच्छा मरहम है जो कहता है कि हमेशा दूसरों के लिए जीने की प्रेरणा हमें नकारात्मक सोच से मुक्त करती है और गलत राह पर जाने से रोकती है। अब मैडम एकदम गंभीर होकर कहने लगी। उन्होंने मुझसे कहा कि पूर्णा एक बात हमेशा याद रखो कि तुम्हें अपनी मां को दोष देने की जरूरत नहीं है, बल्कि खुद से यह कहों कि मैंने वही किया जो भगवान करवाना चाहता था । भगवान का आदेश मानकर चलोगी तो तुम्हें कोई दुख नहीं होगा वरना जिंदगी भर मां और दूसरों को दोष देती रहोगी । और हाँ और एक बात ये भी ध्यान रखना कि तुम रो-रोकर जिंदगी जियोगी तो कोई भी तुम्हारा साथ नहीं देगा और यदि अपना गम भुला कर हंसकर और दूसरों की मदद करके जिंदगी जियोगी तो रास्ता आसान और साथियों के साथ भरा रहेगा। मैडम की बात मैं हमेशा ही ध्यान से सुनती थी और आज जब उन्होंने मुझे समझाया तो मेरा मां पर आया गुस्सा एकदम उतर गया ।  मैं मैडम के पैर छूकर धीरे-धीरे अपने घर आ गई । मुझे वापस घर आया देखकर मां ने भी शांति की सांस ली । मैं धीरे-धीरे अपने को समझाती रही और अपनी जिंदगी जीती रही । मेरे भाई-बहन बड़े हो रहे थे । मां ने दोनों बहनों की शादी कर दी । भाई भी पढ़ लिखकर अपनी नौकरी पर चले गए । मां ने उन दोनों की भी बाद में शादी कर दी । इन सब पर मेरे ही कमाए हुए पैसे खर्च हुए किंतु मैंने भी नियति का आदेश मानकर सब चुपचाप देखा और सहा । भाइयों ने बहुत कोशिश की कि वह मां को अपने साथ ले जाएं किंतु मां मुझे छोड़कर कभी भी कहीं भी नहीं गई । सभी भाई बहनों के यहां बच्चे भी हो गए । मुझसे छोटी बहन, जो मुझे बहुत प्यार करती थी, उसने अपना बड़ा लड़का मेरे पास रखा, जो मुझे मौसी कहा करता था । किंतु दो-तीन साल बाद ही उसके पिताजी आए और उसे अपने साथ वापस ले गए, कहा कि वह उसके बिना अच्छा महसूस नहीं कर पा रहे हैं । वे उसे ले गए किंतु मौसी शब्द यही रह गया और मैं सबके लिए पूर्णा मौसी बन गई ।
हम मां बेटी फिर अकेले रह गए । मैं तो अपनी नौकरी पर चली जाती किंतु मां घर पर अकेली रह जाती । अकेले में मां को मेरे प्रति किए गए अन्याय बहुत कचोटते थे । उन्हें मेरी बढ़ती उम्र की भी चिंता होती थी। उन्हें एक ही ख्याल आता था कि मैं बाकी जिंदगी कैसे निकाल लूंगी । उनकी हालत पागलों सी हो गई थी। वह अकेले में हमेशा बड़बड़ाती रहती थी । बार-बार मेरी शादी की बातें करती थी। हालत यह हो गई थी कि वह ना तो ढंग से खाना खाती और ना ही ढंग से सो पाती थी । मुझे भी तो अपनी ड्यूटी पर जाना होता था और मैं उन्हें अकेला भी नहीं छोड़ सकती थी । हारकर मैंने अपने भाइयों को बुलाया कि या तो कोई उन्हें अपने पास ले जावे या कोई एक यहां आकर मां के पास रहे । भाई नौकरी वाले थे । भाभियों बच्चों की पढ़ाई छोड़ कर यहां नहीं रह सकती थी । इसलिए भाई जबरन मॉं को अपने साथ ले गए । किंतु दो दिन बाद ही मां के मरने की खबर आ गई। पूर्णा मौसी ने लंबी सांस लेकर कहा कि मां के मरने के बाद भाइयों ने कभी पूछा भी नहीं कि दीदी तुम कैसी हो । बहने जरूर आती थी किंतु धीरे-धीरे उनका आना भी खत्म हो गया । वे भी अपने परिवार में रंग गई थी। मैंने गायकवाड मैडम की एक बात गांठ बांध ली थी कि यदि रोओगी तब भी जीना पड़ेगा और हंसोगी तो जीना आसान हो जाएगा । इसलिए मैं हमेशा हंसती रहती हूं। मेरे हंसते रहने से मुझे कोई बोझ भी नहीं समझता। वैसे भी अपना दुख तो हमेशा अपने को ही उठाना पड़ता है । कोई दुख बांटने नहीं आता । इसलिए मैं हमेशा सबकी मदद करके व अपना गम भूल कर जीती हूं। मैंने पूर्णा मौसी का यह रूप कभी भी नहीं देखा था इसलिए मैं एकदम सकपका गई थी । किंतु फिर भी मेरे मुंह से निकल गया कि मौसी रामलाल का क्या हुआ । मौसी ने एक सांस भरकर कहा रामलाल ने अपना तबादला दूर करवा लिया। बाद में पता चला कि उसकी मां ने उसकी शादी करवा दी थी। मैंने पूछा कि इतने सालों में वह कभी तुम्हें मिला क्या? पूर्णा मौसी ने एक लंबी सांस लेकर कहा अभी कुछ दिन पहले वह अचानक मेरे घर आ गया था उसे देखकर पहले तो बहुत ही सकुचाई किंतु फिर उसकी बातों से पता चला कि वह रिटायर हो गया है और उसने यही इसी शहर में मकान ले लिया है। उसका एक लड़का है जो विदेश में रहता है। रामलाल की पत्नी का देहांत हो चुका है । थोड़ी देर बैठने पर उसने पूछा कि मैं कब रिटायर हो रही हूं और मैंने अपने लिए कोई मकान खरीदा कि नहीं? मैंने कोई मकान नहीं खरीदा, यह जानने पर उसने मुझसे कहा कि हम शादी कर के साथ रह सकते हैं ? किंतु मैंने उसे मना कर दिया और बोल दिया कि इस उम्र में तो मैं ऐसा नहीं करूंगी। अगले जन्म के लिए भगवान से प्रार्थना जरूर करूंगी कि हम एक हो जाएं। मैंने उससे यह भी कह दिया कि आगे से वह मुझसे नहीं मिले । यह कह कर मौसी उदास होकर बैठ गई । थोड़ी देर बाद बोली मैडम बहुत देर हो गई है, अब आप सो जाओ और वह अपने बिस्तर में सो गई। पूर्णा मौसी की कहानी सुनकर मैं अंदर तक हिल गई । हमेशा हंसने वाली मौसी दिल में इतना दर्द छुपा कर बैठी है, यह सोच कर ही मुझे बहुत रोना आया । मैं पूरी रात सो नहीं पाई। रात को कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। सुबह जब नींद खुली तो देखा मौसी पूरा काम करके जा चुकी थी ।
आज पूर्णा मौसी का स्कूल में आखिरी दिन था । आज वह सेवानिवृत्त होने वाली थी । हम सब उनकी विदाई की तैयारी कर रहे थे। शाम को एक बड़ा जलसा भी रखा था। कई बड़े-बड़े लोग आने वाले थे । जिलाधीश महोदय जिला शिक्षा अधिकारी महोदय और भी कई लोग। हम सबको सिर्फ एक ही चिंता थी कि रिटायर होने के बाद पूर्णा मौसी कहां जावेगी, क्योंकि उन्होंने कोई मकान नहीं खरीदा था । वह सब को कहती थी कि उन्हें एकदम तो कोई निकालेगा नहीं, बाद में एक कमरा किराए पर ले लेंगे। आखिर वह शाम आ ही गई सभी स्टाफ वहीं मौजूद था। सभी मौसी की दिल से तारीफ कर रहे थे। जैसा कि होता है सबने मौसी के बारे में अच्छी बातें की और आखिर में वह कार्यक्रम पूरा हो गया । मौसी जाने के लिए खड़ी हुई कि अचानक वह गिर पड़ी। उन्हें उठाकर सोफे पर लिटाया गया । डॉक्टर आए उनकी जांच हुई तो पता चला कि उनकी मौत हो चुकी थी। उस कार्यक्रम में एक ऐसा भी आदमी था जिसे हमने पहले कभी भी नहीं देखा था । परंतु मौसी बार-बार उसे देख रही थी । जब उसने मौसी की मौत की खबर सुनी तो दुख की लहर मैंने उसके चेहरे पर साफ-साफ देखी । मैंने उसके पास जाकर पूछा कि आप ही रामलाल है ना, तो उन्होंने चौक कर मुझे देखा और धीरे से सिर हिला कर हां कह दिया । मौसी का अंतिम संस्कार कल होगा, इसलिए मार्चुरी में उनका शव रखवाना था। उसकी पूरी जवाबदारी रामलाल ने निभाई । सुबह जब मौसी का अंतिम संस्कार हुआ तो मुझे पता चला कि रामलाल का भी उसी रात को देहांत हो गया । उनके रिश्तेदार भी रामलाल का शव वही लाए थे। मैंने सोचा कि जिंदा रह कर तो वह लोग नहीं मिल सके किंतु अंतिम समय पर वह दोनों ही साथ चले गए, अपनी अगली जिंदगी के लिए ।
श्रीमती प्रभा शर्मा 

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