पूरा हो सकता है मोदी का यह सपना, अमेरिकी अध्ययन में दावा

विहान हिंदुस्तान न्यूज.
भारत यदि 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय बिजली क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य हासिल कर लेता है तो यहां बिजली की लागत को 8 से 10 प्रतिशत तक कम किया जा सकेगा। इसमें शर्त यह है कि अक्षय ऊर्जा और बैटरी भंडारण की कीमतों में गिरावट बनी रहे। इस तरह का अध्ययन किया है अमेरिकी ऊर्जा विभाग से जुड़े कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की ओर से प्रबंधित विज्ञान प्रयोगशाला लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी ने।
अध्ययन में बताया गया है कि इससे भारत 2020 के स्तर पर 2030 तक अपनी बिजली आपूर्ति की कार्बन उत्सर्जन तीव्रता को 43% से 50% तक कम करने में सक्षम होगा। अध्ययन के मुताबिक अगर भारत 2030 तक 500 गीगावाट रिन्यूबल एनर्जी स्थापित करने के अपने लक्ष्य को पूरा करता है तो प्रदूषणकारी कोयला और गैस आधारित बिजली संयंत्रों को बंद किए बिना अपनी दोगुनी बिजली की मांग को पूरा करने और उत्सर्जन को कम करने में सक्षम होगा। यह नया अमेरिकी अध्ययन गुरुवार को जारी किया गया। यह अध्ययन हाल ही में ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा की लागत-प्रभावशीलता को मान्यता देता है कि भारत 2030 तक 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित कर लेगा। भारत ने 2022 तक 175 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया है, जो वर्तमान में 100 गीगावॉट से बढ़कर 2030 तक 500 गीगावॉट हो जाएगा। अध्ययन से पता चलता है कि यदि भारत 2030 के लक्ष्य को प्राप्त करता है, तो उसकी बिजली आपूर्ति का 50% कार्बन मुक्त स्रोतों से आ सकता है, जबकि 2020 में यह केवल 25% था।

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