उच्च शिक्षा : एजीपी, अर्जित अवकाश नगदीकरण, परीवीक्षा अवधि के साथ वरिष्ठ प्राध्यापक को प्राचार्य बनाने की मांग

विहान हिंदुस्तान न्यूज

म.प्र. सरकार के उच्च शिक्षा विभाग में प्राध्यापकों-सहायक प्राध्यापकों की काफी समस्याएं हैं जिनके निराकरण को लेकर समय-समय पर आवाज उठती तो है लेकिन निराकरण नहीं होता। समस्याओं में एजीपी का मामला, अर्जित अवकाश के नगदीकरण का मसला, परीवीक्षा अवधि की समय सीमा का ध्यान न रखने से लेकर वसूली व वरिष्ठ प्राध्यापकों को नजरअंदाज कर कनिष्ठ प्राध्यापकों को प्राचार्य बनाने जैसे अनेक मामले हैं।

प्रांतीय शासकीय महाविद्यालयीन प्राध्यापक संघ ने इन मामलों को लेकर प्रमुख सचिव, उच्च शिक्षा विभाग को पत्र लिखा है। संघ के प्रांताध्यक्ष प्रो. कैलाश त्यागी द्वारा भेजे गए मांग पत्र में 9 बिंदु है। उन्होंने लिखा है प्रदेस में प्राध्यापकों को एजीपी रुपये 10,000 का लाभ दिए जाने के दो साल बाद बिना कैबिनेट एवं बिना विभागीय मंत्री के अनुमोदन के विभागीय अधिकारियों का नया आदेश जारी किया गया था जिसमें आदेश वापस लेने की बात कही गई थी। यह बिजनेस रूल एवं यूजीसी के प्रावधानों के विरुद्ध होने के कारण माननीय न्यायालय द्वारा अपास्त कर दिया गया लेकिन विभाग इसे प्रतिष्ठा का विषय बनाकर अनावश्यक अपील में जाकर प्रकरण का निराकरण नहीं करना चाहता है। यही नहीं प्रदेश के शिक्षकों की एजीपी की राशि की रिकवरी पर माननीय न्यायालय के निर्णय अनुसार ब्याज की वसूली नहीं ​की जाना है जिससे शासन ब्याज न वसूले। आर्थिक मामलों से संबंधित एक अन्य मामले का भी यहां जिक्र किया गया है। इसके तहत प्रदेश के शासकीय महाविद्यालयों में पदस्थ राजपत्रित अधिकारियों के जीआईएस के भुगतान के अधिकार भी तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों के समान प्राचार्यों को दिए जाने की मांग भी की गई है।

एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि कई कॉलेजों में वरिष्ठ प्राध्यापक होने के बावजूद मंत्रालय एवं संचालनालय स्तर पर कनिष्ठ प्राध्यापक को प्राचार्य पद का प्रभार दे दिया गया। इस बात का विरोध करते हुए संघ ने स्पष्ट किया कि वरिष्ठ प्राध्यापक को ही प्राचार्य पद का प्रभार सौंपा जाए। नवनियुक्त सहायक प्राध्यापकों, क्रीड़ा अधिकारियों एवं ग्रंथपालों की परीवीक्षा इनके दो वर्ष के गोपनीय चरित्रावली देखकर ही समाप्त की जाए। वर्तमान में विभाग द्वारा इनके सभी दस्तावेजों का नियुक्ति के समय सत्यापन किए जाने के बाद भी पुन: सत्यापन कर परीवीक्षा समाप्ति पर जानबूझकर विलंब किया जा रहा है। संघ का कहना है यदि यूजीसी के नियमानुसार परीवीक्षा अवधि समाप्ति की तिथि से 45 दिन की अवधि में इनके परीवीक्षा अवधि समाप्त किए जाने के आदेश अनिवार्य रूप से जारी किए जाने चाहिए। प्रांतीय शासकीय महाविद्यालय प्राध्यापक संघ की मांग में सेवानिवृत्ति के समय शिक्षकों के अर्जित अवकाश नगदीकरण में आ रही समस्याओं को भी उठाया गया है। संघ का कहना है उस समय उत्पन्न होने वाले गतिरोध को तुरंत समाप्त किया जाए। इसके निराकरण के लिए आयुक्त को अर्जित अवकाशों के सभी आदेशों का कार्योत्तर अनुमोदन कर दिया गया है जबकि इसे सभी शिक्षकों के लिए लागू किया जाना था। संघ ने एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे को फिर से उठाया है जिसमें साल 2004 एवं 2005 के नियुक्त बैकलॉग सहायक प्राद्यापकों की परीवीक्षा नियुक्ति दिनांक के 2 साल बाद समाप्त की जाने की बात कही है। कई शिक्षकों को अब तक परीवीक्षा अवधि समाप्त होने का इंतजार है। परामर्शदात्री समिति की बैठक प्रत्येक 3 माह में आयोजित किए जाने की मांग फिर एक बार संघ ने उठाई है। सामान्य प्रशासन विभाग के नियम के तहत ये बैठक 3-3 माह में होना चाहिए ताकि कर्मचारियों की मांगों या परेशानियों का निराकरण समय पर हो सके।

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