गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस छोड़ी, खुद की बनाएंगे पार्टी, भाजपा को मिली एनर्जी
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मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के मुख्य नेता गुलाम नबी आजाद ने आज कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। अब वे खुद की पार्टी बनाने जा रहे हैं। आजाद ने ऐसे समय इस्तीफा दिया व पार्टी बनाने की बात कही जब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तैयारी अंतिम चरणों में है। आजाद के कांग्रेस छोड़ने से पार्टी भले ही दुखी हो न हो लेकिन इससे भाजपा को जरूर एनर्जी मिल गई क्योंकि उसे घाटी में विधायक बढ़ाने में इससे काफी मदद मिलेगी।
गुलाम नबी आजाद करीब 49 साल तक कांग्रेस से जुड़े रहे। वे केंद्रीय मंत्री भी रहे और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री का दायित्व भी कुछ समय संभाल चुके हैं। पिछले कई सालों से उनकी और राहुल गांधी की पटरी बैठ भी नहीं रही थी। जब से भाजपा जम्मू-कश्मीर में सक्रिय हुई है तब से आजाद को कुछ नया स्कोप भी वहां दिख रहा था। 9 फरवरी 2021 को जब गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा में अंतिम दिन था उस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आंसुओं के साथ उनके सम्मान कहे गए कुछ शब्दों ने राजनीति की नई इबारत तो लिखी ही साथ ही आजाद को भी इससे कुछ प्रेरणा मिली। आजाद की कश्मीर ही नहीं जम्मू में भी एक अच्छी इमेज है जिसका फायदा उन्हें मिलेगा भी सही। नई पार्टी बनाकर चलाना कठिन जरूर है लेकिन उन्हें नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के बगावती हो रहे कार्यकर्ताओं का भी साथ मिल सकता है।
भाजपा को फायदा यह होगा कि उसकी जम्मू में तो जबरदस्त पैठ है लेकिन उसे कश्मीर में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में कश्मीर में ज्यादा पार्टियों के होने से वोटरों के लिए किसे चुनना या न चुनना कठिन होगा। ऐसे में वोट बटेंगे और किसी एक पार्टी को ज्यादा सीटे नहीं मिलेगी। भाजपा को पूरी उम्मीद है कि वह जम्मू की 43 सीटों में से 35 से 38 सीटों पर वह विजय प्राप्त कर लेगी। कश्मीर में उसे कम से कम 10 से ज्यादा सीटे चाहिए जो वर्तमान स्थिति को देखकर काफी मुश्किल लगता है। पहली बार कश्मीर में कुछ सीटे एसटी वर्ग के लिए आरक्षित की गई है। इन सीटों पर भाजपा की निगाहें जरूर है लेकिन कितनी कामयाबी उसे यहां मिलती है फिलहाल कहना मुश्किल है। भाजपा को बड़ी दिक्कत यह है कि उसके पास कश्मीर घाटी में स्टार प्रचारकों की कमी है। उसके अधिकांश स्टार प्रचारक हिंदूवादी छवि के हैं जिन्हें घाटी में प्रचार के लिए भेजना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। ऐसे में उसे चतुराई से ही काम करना होगा और ऐसी तैयारी करना होगी जिससे नेशनल कांफ्रेंस-पीडीपी को ज्यादा सीटे न मिले। भाजपा को रोकने के लिए नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, कांग्रेस तो मिलकर ही चलेंगे यह तय माना जा रहा है। ऐसे में यदि छोटे दलों को कुछ सीटे मिल जाए तो उनके भाजपा के साथ आने की संभावना ज्यादा होगी। भाजपा को सरकार बनाने में यदि कुछ सीटे कम पड़ जाए तो ये छोटे दल उसके लिए सहयोगी की भूमिका निभा सकते हैं। अब देखना यह है कि गुलाम नबी आजाद की नई पार्टी भाजपा के लिए कितनी कारगर साबित होगी। यह बात इसलिए भी कहना जरूरी है क्योंकि पंजाब में कांग्रेस से बाहर आकर पार्टी बनाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह के हाल सभी देख चुके हैं जिन्हें पंजाब की जनता ने नकार दिया और हानि भाजपा को भी सहनी पड़ी।