परमात्मा और व्यक्ति के बीच का जो जोड़ है वह जोड़ ही गुरू है
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गुरू पूर्णिमा पर विहान हिंदुस्तान के पाठकों के लिए निधि परमार के विचार…
आज आषाढी पूर्णिमा अर्थात गुरू पूर्णिमा है। आज बहुत से मैसेज आयेगे जिनमें जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से क्या सीख मिली और जिससे मिली उसे गुरू रूप में प्रणाम करेंगे। अतः ऐसे मैसेज से बचे क्योंकि ऐसे मैसेज हमारी गुरू परम्परा की गंभीरता को खत्म करते है।
व्यवहारिक रूप में जिससे सीख मिलती है वह शिक्षक तो हो सकता है पर गुरू नहीं क्योंकि जहां गुरू आ जातें है वहां सीख की आवश्यकता ही नहीं रह जाती। कारण…गुरू के जीवन में प्रवेश करते ही व्यक्ति के चारों और प्रकाश ही प्रकाश हो जाता है। ऐसा प्रकाश जिससे सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों जीवन दिखाई देने लगते है और सत्संगी प्रकाश के माध्यम से गुरू सांसारिक नदी और भव सागर पार करने के लिये मार्ग प्रशस्त करते हैं। वह दोनों मार्ग पर बिना ठोकर खाये चलने के लिये हाथ पकड़ लेते है। गुरू बतातें हैं कि गोविन्द को कैसे पाया जाये, गृहस्थी में रहते हुये कैसे गृहस्थी की नाव से भव सागर पार किया जाया। गुरू कुछ भी छुड़वाते नही है बल्कि अपने आत्मिक प्रवचन से परमात्मा से व्यक्ति को जोड़ देते है। परमात्मा और व्यक्ति के बीच का जो जोड़ है वह जोड़ ही गुरू है।
गुरू का जीवन में प्रवेश ही व्यक्ति को उन्नति के मार्ग पर ले जा सकता है। गुरू का जीवन में होना ठीक उसी तरह आवश्यक है जैसे बच्चों का विद्यालय जाना। जैसे विद्यालय में एडमिशन हुये बिना बच्चों को सर्टिफिकेट नही मिलता, चाहे बच्चे ने 12वीं तक की किताब याद कर ली हो। जब तक एडमिशन नहीं होगा सब कुछ व्यर्थ है। इसी प्रकार गुरू का जीवन में होना आवश्यक है। गुरू व्यापक ब्रहाण्ड में अपनी तपस्या के माध्यम से व्यक्ति की ईश्वर आराधना को ईश्वर तक पहुंचाने का सरल मार्ग बनाते है।
यदि गुरू नहीं है तो सोचिये ईश्वर के एक-एक रोम में असंख्य ब्रहाण्ड है। ऐसी खरबों पृथ्वीयां है और उन पृथ्वी पर करोड़ो मनुष्य है। .. और ईश्वर का एक दिन ही हजारों चतुर्युग के बराबर है अर्थात जितना एक मनुष्य का जीवन काल है वह ईश्वर का निमिष मात्र से भी कम है। ऐसे में भगवान तक पहुंचना कितना दुर्गम है। इसी दुर्गमता को गुरू सुगम बनाते है। अपनी सारी तपस्या को शिष्य को मंत्र रूप में प्रदान कर देते है और उस मंत्र रूपी रॉकेट में बिठाकर गुरू हरि से मिलन करा देते है। अतः निवेदन है कि बिना गुरू को जाने सतही मैसेज करके गुरू की गुरूता को लघु न करें। गुरू परम्परा हम सनातनियों के अक्षय वट वृक्षरूपी धर्म की जड़ है। जड़ों को पहचाने और अपने गुरू रूपी जल से सिंचित कर अक्षय वट वृक्ष को मजबूत बनायें।
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