उच्च शिक्षा विभाग का एक आदेश बना प्राचार्यों के लिए फांस, जेब से जमा कराना होगी बड़ी राशि
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मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज
उच्च शिक्षा विभाग का एक बड़ा आदेश जारी हुआ है जो सरकारी कॉलेजों के प्राचार्यों के लिए फांस बनकर उभरा है। इस आदेश के तहत प्राचार्यों को जनभागीदारी समिति और ओल्ड स्टूडेंट यूनियन का रजिस्ट्रेशन फर्म्स एंड सोसायटी में कराना आवश्यक है। यही नहीं इसका वार्षिक शुल्क भी जमा करना है। चूंकि जनभागीदारी समिति और ओल्ड स्टूडेंट यूनियन का रजिस्ट्रेशन पहले से ही अधिकांश कॉलेजों में किया हुआ है जिससे इनका ऑडिट कराकर पुरानी राशि जमा करना टेड़ी खीर होगा। जब से यह राशि जमा नहीं हुई है तब से ही यह राशि जमा कराना है और विशेष बात यह है कि यह राशि छात्रों से मिली फीस से जमा नहीं होगी जिससे इसका वहन प्राचार्यों को ही करना पड़ सकता है।
उच्च शिक्षा विभाग के आयुक्त कर्मवीर शर्मा ने एक आदेश जारी किया है जो प्राचार्यों के लिए दिशा-निर्देश भी है। आयुक्त के आदेश के तहत 31 मार्च 2023 तक जनभागीदारी समिति और ओल्ड स्टूडेंट यूनियन दोनों ही समितियों का ऑडिट कराकर उसकी वार्षिक फीस जमा करना है। आयुक्त का यह आदेश सामान्य नहीं है क्योंकि इसमें एक बड़ी राशि खर्च होना है। असल में प्रदेश के अधिकांश कॉलेजों में ये दोनों समितियां रजिस्टर्ड तो है लेकिन इनका रिन्यूअल प्रतिवर्ष किया नहीं जाता है। यह रिन्यूअल प्रतिवर्ष फर्म्स एंड सोसायटी एक्ट 27 एवं 28 के तहत होना आवश्यक है। यह बात हाल ही में उच्च शिक्षा विभाग द्वारा दिए गए प्रशिक्षण में प्राचार्यों व जनभागीदारी अध्यक्षों को बताई भी गई। जनभागीदारी समिति दिग्विजयसिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए बनी थी यानी ये समितियां भी करीब दो दशक पुरानी हो चली है।
तो भुगतान का दायित्व किसका रहेगा…
बात यह उठ रही है कि जनभागीदारी समिति और ओल्ड स्टूडेंट एसोसिएशन का वार्षिक शुल्क वर्तमान कार्यकाल से जमा करना तो ठीक है लेकिन इसके पहले की राशि कौन जमा करेगा? यदि किसी कॉलेज का 20 साल से यह शुल्क जमा नहीं है तो छात्रों की इसमें क्या गलती है क्योंकि उनसे जमा राशि से वार्षिक शुल्क जमा होना था। यह शुल्क कॉलेज ने खर्च कर दिया तो उक्त राशि प्राचार्य के खाते से जमा होगी। जो प्राचार्य रिटायर हो गया है तो उससे वसूली भी नहीं की जा सकती। ऐसे में वर्तमान प्राचार्य उक्त भुगतान क्यों करेगा यह बड़ा सवाल है।