शिया देश खत्म या यहूदी…सऊदी अरब की कूटनीति पर चल रहे कई सुन्नी मुस्लिम देश

मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज

करीब 10 दिन पहले इजरायल में सुन्नी मुस्लिमों के फिलिस्तीन समर्थित संगठन हमास ने जो हमले किए उसने गाजा पट्टी में निवास कर रहे लोगों को परेशानी में डाल दिया है। बदला लेने के लिए इजरायल लगातार यहां बम गिरा रहा है हालांकि इजरायल पर अभी भी हमास रॉकेट दाग रहा है। हमास के पक्ष में ईरान, सीरिया, लेबनान और अब इराक ही बोल रहे हैं जो शिया बहुल देश हैं। इराक की भी सरकार नहीं बल्कि वहां के शिया नेता बोल रहे हैं। सवाल यह उठ रहा है कि सऊदी अरब, तुर्किये, संयुक्त अरब अमीरात, कतर जैसे बड़े सुन्नी बहुल देश चुप्पी क्यों साधे हुए हैं या सधे हुए ही बयान क्यों दे रहे हैं? क्या 57 मुस्लिम देश मिलकर इजरायल पर हमला नहीं कर सकते? एक ध्यान देने वाली बात यह है कि इजरायल के गाजा पट्टी पर हमले से कोलंबिया देश नाराज है और उसने इजरायल के राजदूत को अपने यहां से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। कोलंबिया मु​स्लिम देश नहीं बल्कि रोमन कैथोलिक बहुल देश है जिसके खुलकर सामने आने से ईरान को कुछ राहत मिली है।

जब से ऑटोमन साम्राज्य का पतन हुआ था तब से सऊदी अरब ही मुस्लिम देशों का नेतृत्वकर्ता बन गया है। वैसे भी जिस देश के पास पवित्र स्थान मक्का-मदीना हो उस देश को ही मुखिया कहा जाता है। ईरान ने मक्का व मदीना पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए काफी प्रयास किये और कर भी रहा है लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही है। पिछले कुछ सालों में उसने सऊदी अरब से यह स्थान छीनने के लिए कई रणनीति अपनाई है और हमास-इजरायल की जंग भी उसका ही एक प्रयास है। एक समय इजरायल और ईरान की काफी गहरी दोस्ती थी लेकिन जब से यह दोस्ती टूटी है ईरान उसका जानी दुश्मन बन गया है। बात यदि हमास की मदद न करने को लेकर करें है तो आपको बता दें सऊदी अरब-यूएई जैसे देश फिलिस्तीन की स्वतंत्रता के लिए काम कर रहे फतह संगठन को मदद करते हैं। कुछ समय पहले सऊदी अरब-यूएई की इजरायल से दोस्ती शुरू हुई तो ईरान को यह नागवार गुजरा। उसने हमास के जरिए जिस तरह से इजरायल पर हमला कराया उसे लेकर ईरान को मुस्लिमों से काफी मदद की उम्मीद थी। ईरान को उस समय धक्का लगा जब अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन व इटली जैसे ईसाई बहुल देश न सिर्फ इजरायल के साथ खुलकर खड़े हो गए बल्कि अमेरिका ने तो अपनी कुछ सेना भी इजरायल भेज दी। अब तो अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन खुद इजरायल आ रहे हैं। ईरान चाहता है इजरायल पर हमास का हमला धर्म युद्ध बन जाए लेकिन इसमें उसे बड़े मुस्लिम देशों का साथ नहीं मिल रहा है। यदि यह युद्ध धर्म युद्ध में बदल गया तो ईरान का मुस्लिम देशों पर दबदबा बढ़ जाएगा और सऊदी अरब यहीं नहीं चाहता है। भविष्य में ईरान पवित्र मक्का-मदीना पर नियंत्रण भी कर लेगा। सऊदी व उसके दोस्त देश फिलिस्तीन के लोगों को अपनी तरह से मदद दे रहा है। हमास द्वारा गाजा पट्टी को खाली नहीं करने देने के पीछे भी ईरान की ही चाल है यानी गाजा पट्टी खाली हो गई तो हमास पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। कुछ फिलिस्तीनी तो हमास के साथ है लेकिन कुछ इसे ईरान की राजनीति बताकर फिलहाल शांति चाहते हैं। ये लोग चाहते हैं सऊदी अरब-यूएई मिलकर शांति का प्रयास करें और फिलिस्तीन को स्वतंत्र करवाए।

बात करें सऊदी अरब की तो उसके अब तक के बयान कूटनीति का हिस्सा रहे हैं। अमेरिका के मैदान में आने से चीन-रूस अलग हो गए है जिससे सऊदी अरब खुलकर हमास के सपोर्ट में उतर भी नहीं सकता है। वैसे भी उसे ईरान का हमास को सपोर्ट होने से ये अरब देश चुप हैं। सऊदी अरब के लिए जितना शिया बहुल ईरान दुश्मन है उतना ही यहूदियों के देश इजरायल पर भी उसे ज्यादा भरोसा नहीं है। इस युद्ध में यहूदियों का देश खत्म हो या शियाओं के देश (ईरान, इराक, सीरिया, लेबनान) फायदा सऊदी को ही होना है। वैसे आपको बता दें इराक व लेबनान में शियाओं की आबादी सुन्नी मुस्लिमों से थोड़ी ही ज्यादा है लेकिन यहां चलती शियाओं की ही है।

हमास के सफाए के साथ ही खत्म हो जाएगा युद्ध, नजर ईरान पर

यह देखा जा रहा है कि अमेरिका लगातार इस युद्ध पर नजर रखे है। वह मिडिल ईस्ट पर काफी पहले से नियंत्रण कर रहा है और अभी भी वह इसे नियंत्रण से बाहर नहीं होने देना चाहता है। चीन-रूस की घुसपैठ से वह कुछ कमजोर हुआ है। अमेरिका ने कुवैत को बचाने के लिए इराक पर हमला किया, आईएसआईएस को खत्म करने के लिए सीरिया पर बम गिराए, तालिबान-अल कायदा को हटाने के लिए अफगानिस्तान में सेना भेजी और अब ईरान पर नियंत्रण के लिए उसने इजरायल के कंधे पर हाथ रखा है। ईरान पर किसी समय अमेरिका का नियंत्रण था लेकिन साल 1980 की धार्मिक क्रांति के बाद से वह ईरान पर फिर से नियंत्रण के लिए बहाना ढूढ़ रहा था। आपको बता दें ईरान में तेल के अलावा गैस के भी भंडार है जिससे अमेरिका यहां अपनी सरकार बैठाने के लिए लालायित है। संभव है इसी युद्ध से अमेरिका के निशाने पर ईरान आ जाए। बात यदि इजरायल-हमास युद्ध की करें तो हमास के सफाए या कमजोर हो जाने के बाद यह हमला बंद हो सकता है और इसमें सऊदी अरब की भूमिका विशेष हो सकती है। लेबनान का हिजबुल्लाह संगठन भी अमेरिका के निशाने पर है जिसका खात्मा भी उसकी लिस्ट में है। वैसे ईरान पर नियंत्रण के साथ ही हिजबुल्लाह खत्म हो जाएगा लेकिन बात यह उठती है कि ईरान पर निशाना कब तक साधा जाएगा।

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