भगवान राम ने हनुमान पुत्र मकरध्वज को दिया था वरदान- कलयुग में तुम जागृत देव होंगे, इंदौर में हुआ 200 साल पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार

फोटो में.. आगे मकरध्वज और पीछे विराजे हैं भगवान हनुमानजी।

मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज

पृथ्वी पर भगवान हनुमान के पुत्र मकरध्वज के बहुत कम ही मंदिर है लेकिन धीरे-धीरे इनकी तरफ श्रद्धालुओं का रूझान बढ़ रहा है। भगवान श्रीराम ने मकरध्वज को वरदान दिया था कि कलयुग में तुम ही जागृत देव के रूप में भक्तों के संकट का निवारण करोगे और उनकी मनोकामनाएं पूरी होगी। इंदौर में भी एक मंदिर ऐसा है जहां भगवान हनुमान के साथ उनके पुत्र मकरध्वज की मूर्ति है। सरकारी रिकॉर्ड को ही देखें तो सन् 1835 के दस्तावेज में यह मंदिर बना हुआ था यानी इससे पहले से ही यह मंदिर बना है। खास बात तो यह है कि इस मंदिर का अब जीर्णोद्धार हो गया है। यह आयोजन 28 फरवरी को आयोजित किया गया जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हुए।

यह मंदिर प्राचीन श्री सिद्धेश्वर बालाजी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है जो वामन अड्डा कैलाश मार्ग मल्हारगंज में स्थित है। आज दोपहर 12 से 4 बजे तक हवन चला और फिर पूर्णाहुति हुई। इस मंदिर के बारे में यह बताया जाता है कि जिस जमीन को होलकर महाराज ने जागीरदार परिवार को दी थी उसमें यह मंदिर भी था। मंदिर में भगवान हनुमानजी विराजमान है और उनके कुछ दूरी पर आगे मकरध्वज विराजे हैं। किवदंती यह है कि पहले मकरध्वज से अनुमति लेकर भगवान हनुमान के दर्शन करें। जीर्णोद्धार करवाने वाले तोतला परिवार के सदस्य नितिन तोतला ने विहान हिंदुस्तान डॉटकॉम को बताया कि हमारी कई पुश्ते इस मंदिर में आ रही है। मैं खुद बचपन से यहां आ रहा हूं और मेरे मन में था जीर्णोद्धार कराऊंगा। भगवान की कृपा रही कि हम जीर्णोद्धार करा सके। बर्तन बाजार व्यापारी संघ के पंडित गोपाल शर्मा का कहना है मैं खुद बचपन से इस मंदिर में आ रहा हूं। यहां आकर असीम शांति का अहसास होता है। भगवान हनुमान व उनके पुत्र मकरध्वज से मांगी हुई इच्छाओं की पूर्ति भी होती है। कई लोग यहां आकर अपना जीवन संवार चुके हैं।

बहुत कम है मकरध्वज के मंदिर…

इंदौर में संभवत: यह मकरध्वज का इकलौता मंदिर है। वैसे भारत देश में ही काफी कम मंदिर है जहां मकरध्वज को पूजा जाता है। गुजरात में द्वारका के पास मंदिर है जहां भगवान हनुमान के साथ मकरध्वज विराजे हैं। मान्यता यह है कि इसी मंदिर के स्थान से भगवान हनुमान समुद्र में गए थे जहां उन्होंने अहिरावण का वध कर भगवान राम व लक्ष्मण को उनके चुंगल से आजाद कराया था। इसके अलावा राजस्थान के ब्यावर और म.प्र. के ग्वालियर (कहरिया के जंगल में) में भी मकरध्वज का मंदिर है।

ऐसे हुआ था मकरध्वज का जन्म…

मान्यता है कि जब सीता माता को रावण की लंका में भगवान हनुमान ढूढ़ने गए थे तब रावण ने उन्हें पकड़ लिया था और उनकी पूंछ में आग लगा दी थी। इस आग से भगवान हनुमान ने लंका जला दी थी। बाद में आग से राहत पाने के लिए भगवान हनुमान समुद्र में गए जहां उनके पसीने की एक बूंद मछली ने निगल ली थी और उसी से मकरध्वज का जन्म हुआ। मकरध्वज को रावण के भाई अहिरावण ने अपने पास रख लिया था। जब रावण युद्ध हारने लगा तब उसने अहिरा‍वण को मोर्चे पर भेजा। अहिरावण भगवान राम और लक्ष्मण का अपहरण कर उन्हें समुद्र में ले गया। समुद्र के द्वार पर उसने मकरध्वज को तैनात कर दिया। जब भगवान हनुमान श्रीराम व लक्ष्मण को लेने के लिए समुद्र में आए तो उन्हें मकरध्वज से युद्ध करना पड़ा। मकरध्वज भी काफी बलवान था जिसने अपने पिता से काफी देर संघर्ष किया। जब नतीजा नहीं निकल रहा था तब भगवान हनुमान ने मकरध्वज से पूछा तुम किसके पुत्र हो तो उन्होंने बताया मैं हनुमानजी का पुत्र हूं। मकरध्वज ने सारा वाकिया बता दिया। तब हनुमानजी ने बताया वे ही हनुमान हैं। तब मकरध्वज ने उनसे कहा आप मुझे जंजीरों से बांध दे और अंदर चले जाए। भगवान हनुमान ने ऐसा ही किया और वे अंदर गए और अहिरा‍वण की भुजाएं उखाड़ दी। वे भगवान राम व लक्ष्मण को लेकर बाहर आए और तब भगवान राम ने मकरध्वज को समुद्र का राजा बना दिया। तभी मकरध्वज को यह आशीर्वाद भी दिया था कि कलयुग में तुम ही जागृत देव के रूप में भक्तों के संकट का निवारण करोगे और उनकी मनोकामनाएं पूरी होगी।

You may have missed

ArabicChinese (Simplified)DutchEnglishFrenchGermanGujaratiHindiItalianMalayalamMarathiNepaliPortugueseRussianSpanishUkrainianUrdu

You cannot copy content of this page