..और मम्मी ने मेरी गोद में आखरी सांस ली

मैं, मम्मी (साधना मिश्रा) और पापा (विवेक मिश्रा) हमारा एक छोटा सा परिवार था। तीनों ही आपस में खूब एक-दूसरे को प्रेम करते थे। मम्मी मेरी मां तो थी ही लेकिन वह एक फ्रेंड की तरह भी थी। पापा मेरे माता गुजरी गर्ल्स स्कूल में फिजिक्स के टीचर थे और मम्मी हाउस वाइफ थी। कोरोना वायरस को लेकर हम पढ़ते थे और इस विषय पर हमारी काफी बाते भी होती थी। 1 अप्रैल 2021 का वह दिन जब हमारी परेशानियां शुरू हुई। मम्मी को मस्क्यूलर पेन हुआ तो हमने उन्हें डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने तीन दिन का कोर्स लिखकर दिया। तीन दिन बाद भी जब यह पेन गया नहीं तो डॉक्टर ने कोरोना टेस्ट के लिए कहा। टेस्ट कराया तो मम्मी पॉजीटिव निकली। तब तक मम्मी को सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी थी। पापा की भी तबीयत खराब हो रही थी तो मैंने उन्हें घर पर ही आराम करने को कहा। मैं मम्मी के लिए अस्पताल की व्यवस्था करने में जुट गई। कई घंटे अस्पतालों के चक्कर काटने के बाद सुयोग हास्पिटल में बैड मिल पाया। 7 अप्रैल को मम्मी को मैंने वहां भर्ती कराया। दो दिन तक मम्मी ठीक रही और मुझसे फोन पर बात भी करती रही। फिर एकाएक उन्हें आईसीयू में भर्ती कर दिया गया। डॉक्टर्स का कहना था उन्हें सांस लेने में बहुत दिक्कत हो रही है। इधर, पापा की तबीयत भी बिगड़ने लगी थी। मैं फिर उनके लिए अस्पताल देखने के लिए निकली। पापा के रिश्तेदार खंडवा में हैं तो लाकडाउन के कारण आ नहीं पा रहे थे और मौसी व मामा का परिवार खुद कोरोना पॉजीटिव था तो वे भी मदद के लिए नहीं आ सके। जो शहर में रिश्तेदार थे वे कोरोना नाम से ही घबरा रहे थे। मैं सबकुछ छोड़कर अस्पताल की व्यवस्था में लगी और स्कीम-140 में मॉस्क हास्पिटल में मुझे पापा के लिए बैड मिल गया। 14 अप्रैल को मैंने पापा को वहां भर्ती कराया। अब स्कीम-140 और टॉवर चौराहे के बीच मेरी दौड़ शुरू हुई क्योंकि एक जगह पापा तो दूसरी जगह मम्मी भर्ती थी। मम्मी की तबीयत ज्यादा ही खराब हो रही थी। डॉक्टरों ने मुझे रेमडिसिवर इंजेक्शन लाने के लिए कहा। बहुत मुश्किल से मैं ये इंजेक्शन जुटा पाई तो लगा अब सब ठीक हो जाएगा। मुझे अस्पताल में मम्मी से मिलने नहीं दिया जा रहा था और मैं उनसे मिलने के लिए तड़प रही थी। मैंने उनके लिए चिट्ठी लिखी। चिट्ठी में वहीं बातें थी जो हम दोनों आपस में किया करते थे। स्थिति यह थी कि मम्मी चिट्ठी भी नहीं पढ़ पा रही थी। वार्ड में एक स्टॉफ ने उन्हें मेरे द्वारा लिखी गई चिट्ठी पढ़कर सुनाई। मम्मी खूब रोई। मैं आईसीयू के बाहर खड़ी होकर सब देख रही थी। मैंने साइन लेंग्वेज में मम्मी को हंसाने का प्रयास किया जैसे मैं घर पर किया करती थी। वह मुझे देखकर कुछ ठीक महसूस करने लगी। लेकिन यह कुछ ही देर की बात थी। उनकी तबीयत लगातार खराब हो रही थी। मुझे जब मम्मी की हालत के बारे में पता चला तो मैं अंदर जाने की जिद करने लगी। डॉक्टर्स ने बड़ी मुश्किल से इजाजत दी। पीपीई किट पहनकर मुझे मम्मी से मिलने दिया गया। जब मैं उनके पास गई तो वे काफी कमजोर लग रही थी लेकिन वह मां थी न। वह जानती थी मेरे सामने यदि वह कमजोर दिखेगी तो मेरे ऊपर गलत असर होगा। वे कमजोर होते हुए भी स्वस्थ्य होने का नाटक कर रही थी। मैं सबकुछ समझ रही थी लेकिन मैंने भी उन्हें यह महसूस नहीं होने दिया। मम्मी को लग्स में 80 प्रतिशत इंफेक्श्न था। पापा को भी 40 प्रतिशत तक लग्स में कोरोना घुस चुका था लेकिन मैंने मम्मी को पापा की खराब हालत के बारे में नहीं बताया।


मैं जब पापा से मिलने जा रही थी तभी मम्मी के अस्पताल से फोन आया कि वे घर जाने की जिद पकड़कर बैठ गई है। मैं तुरंत ही मम्मी के पास पहुंची। उस समय मैंने मम्मी का एक नया रूप देखा। वह इतनी जिद कर रही थी कि मुझे घर ले चल, मैं अस्पताल में नहीं तेरे सामने ही मरना चाहती हूं, घर पर मरना चाहती हूं। काफी समझाने के बावजूद जब वे नहीं मानी तो मैंने घर पर आक्सीजन मशीन व सिलेंडर की व्यवस्था करवाई। मम्मी को मैं घर ले गई। करीब तीन दिन हम दोनों मां-बेटी फिर साथ में रहे। मैंने मम्मी को उनकी पसंद का खाना बनाकर खिलाया। लेकिन मम्मी की हालत थी कि बिगड़ती जा रही थी। मैं मम्मी को देखकर एक समय तो टूट गई। मैंने उनसे कहा मम्मी मुझसे अब नहीं हो रहा है। मम्मी ने मुझे हिम्मत बंधाई। वह मेरे लिए हमेशा एक गाना गाती थी। बचपन से वह मुझे यह गाना सुनाती थी। वह उस समय मेरे लिए गाने लगी.. चांद-तारे तोड़ लाऊं, सारी दुनिया पर मैं छाऊं, बस इतना सा ख्वाब है..। फिर कहने लगी तू तो मेरी शेरनी है। तू कभी हारेगी नहीं। मुझे उस समय मम्मी ने ढांढस बंधाया। लेकिन वे धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही थी। मम्मी की हालत देखकर मैं बहुत घबरा रही थी। मैंने देवास में रहने वाली मेरी मीना मौसी व उनके बेटे अर्पित भैया को फोन लगाया। उन्होंने देवास के एक अस्पताल में बैड रिजर्व कराया और मुझसे कहा मम्मी को यहां ले आओ हम यही देख लेंगे। मैंने एंबुलैंस की व्यवस्था की। मैं मम्मी को देवास लेकर निकली लेकिन लगा उनकी तबीयत ज्यादा ही बिगड़ रही है। मैं बांबे हास्पिटल पहुंची। बहुत हाथ-पैर जोड़े कि मम्मी को बचा लो। ..लेकिन उन्होंने मम्मी को भर्ती नहीं किया। मैं बार-बार आगे देख रही थी कि कब देवास आए और मैं मम्मी को अस्पताल में भर्ती कराऊं। मेरी नजर कभी आगे तो कभी मम्मी पर थी। मम्मी मुझे एकटक देखे जा रही थी। वे कुछ बोल नहीं पा रही थी लेकिन मैं जानती थी वह मेरे लिए भगवान से प्रार्थना कर रही थी। शिप्रा आया तब तक वे मेरा साथ छोड़कर जा चुकी थी। दूर..बहुत दूर। उन्होंने मेरी गोद में ही अंतिम सांस ली। मैं देवास तो पहुंची लेकिन मम्मी के बगैर।


शाम के सात बजे थे जब मम्मी ने अंतिम सांस ली। मेरी मौसी के परिवार ने मेरे साथ मिलकर मम्मी का अंतिम संस्कार कराया। मैं बहुत टूट चुकी थी। उस रात मैं सो नहीं पाई। मेरे सामने मम्मी पूरे समय थी। अगले दिन सुबह मास्क अस्पताल से फोन आया। पापा नहीं रहे। मैं अब पूरी तरह से टूट चुकी थी। मेरे हाथ-पैर काम नहीं कर रहे थे। मेरे पापा और मम्मी के बीच बहुत प्यार था। पापा का जन्म 2 दिसंबर 1965 का था और मम्मी का जन्म 3 दिसंबर 1965 का। मम्मी की डेथ 17 अप्रैल 2021 को शाम 7 बजे हुई और पापा की 18 अप्रैल 2021 को सुबह 7 बजे। मेरे पापा-मम्मी में एक बात बहुत अच्छी थी कि उन्होंने रिश्ते काफी अच्छे बनाए। पापा के दोस्त नेमिष रावल और जयदुर्गेश जोशी अंकल ने ही उन्हें पूरी तरह संभाला। मैंने कभी भगवान को तो नहीं देखा लेकिन रावल अंकल को देखकर लगा भगवान ऐसे ही होते होंगे। वे पापा को अस्पताल के अंदर तक खाना भी देने जाते थे और इंजेक्शन के साथ-साथ मेरी फाइनेंशियल मदद भी उन्होंने पूरी की। मैं देवास में थी लेकिन इन लोगों ने पापा का अंतिम संस्कार किया। अंतिम समय तो मैं अपने पापा को देख भी नहीं पाई। पापा की पूरी देखभाल इन लोगों ने ही की। जब पापा-मम्मी भर्ती थे तब कालोनी के लोगों ने मेरी खूब मदद की खासकर संगीता नामदेव आंटी ने। इंदौर में राकेश मामा ने भी मेरी खूब सहायता की। अभी भी पापा के फिजिक्स टीचर्स का ग्रुप मेरे साथ है। मैं अभी 21 साल की हूं। इस उम्र में जब पापा-मम्मी की जरूरत और बढ़ जाती है तब मैंने उन्हें खो दिया। लेकिन मैं शेरनी हूं और मेरे मम्मी-पापा के सपनों को कभी टूटने नहीं दूंगी। जिन लोगों ने मेरी बुरे समय में मदद की उनकी मैं आभारी हूं। मैं भी किसी के बुरे वक्त में काम आऊं तो यह मेरे लिए सौभाग्य होगा हालांकि भगवान से मैं प्रार्थना करती हूं कि किसी का बुरा वक्त न आए। मेरे मम्मी-पापा माताजी के भक्त थे। माताजी ने नवरात्र में ही उन्हें अपने पास बुलाया।

–यशा साधना विवेक मिश्रा,आईटी स्टूडेंड (सिक्थ सेम) वैष्णव विद्यापीठ विश्वविद्यालय, इंदौर

कोरोना महामारी में कई लोग परेशान हुए हैं। इसने कई हंसते-खेलते परिवारों को तोड़ दिया है। लोगों के सामने जो दिक्कतें हैं उसे आपस में ही एक-दूसरे की मदद करके हमें बांटना होगा। विहान हिंदुस्तान डॉट कॉम हमेशा परेशान व दुखी लोगों के साथ खड़ा है। हम उन लोगों के दुख या परेशानी यहां सांझा करने का प्रयास कर रहे हैं जिससे अन्य लोगों को या आने वाली नस्लों को इस विभीषिका के बारे में पता चले। इतिहास इसलिए होता है क्योंकि भविष्य इससे सीख लें। जो बातें हम कॉलम में लिखेंगे वह पीड़ित द्वारा बताई गई ही हैं। -मुनीष शर्मा, एडिटर इन चीफ विहान हिंदुस्तान डॉट काम

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