नगर निगम : जनवरी में डिवाइडर्स की रिपेयरिंग, सितंबर तक हो गए बर्बाद…कमीशन का खेल!
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मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज
इंदौरवासियों के टैक्स के पैसों का नगर निगम कैसे दुरुपयोग कर रहा है इसके जीते-जागते उदाहरण देखना हो तो पूर्वी रिंग रोड के डिवाइडरों पर नजर दौड़ा दें। पिपल्याहाना ब्रिज उतरकर यदि आप आईटी पार्क चौराहे तक ही जाएंगे तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। डिवाइडरों पर लगी सीमेंट झर-झरकर गिर चुकी है और जहां बची भी है वहां से आइल पेंट गायब हो चुका है। आपको हम सितंबर 2023 की बात बता रहे हैं। हम आपको यह भी बता दें कि इन डिवाइडरों को जनवरी 2023 में लगभग नया रूप दिया गया था यानी सीमेंट-रेत से बाकायदा इसपर प्लास्टर किया गया था और फिर आइल पेंट लगाया गया था। हम आपको जनवरी 2023 में लिया गया और सितंबर 2023 में लिया गया वीडियो बता रहे हैं ताकि आप खुद तय कर लें आपके द्वारा टैक्स के रूप में जमा की जाने वाली राशि को किस तरह उड़ाया जा रहा है। घोटाले की राशि क्या है इसपर नगर निगम के जिम्मेदारों को जवाब देना चाहिए। वे जांच कराए और जनता को बताए इस मामले में उन्होंने क्या कदम उठाए।
जनवरी 2023 में जहां इन्वेस्टर्स समिट के नाम पर पूरे शहर को सजाया गया था उसमें अलग-अलग सड़कों के डिवाइडर भी शामिल थे। विदेशी मेहमानों की आगवानी में सजे इस शहर पर करोड़ों रुपये खर्च हुए थे। रुपये खर्च होना कोई गलत नहीं है, एक जरूरत है लेकिन काम ऐसा होना चाहिए था कि अगले दो-चार साल तो कम से कम देखना न पड़े। ..लेकिन हुआ कुछ अलग ही है क्योंकि कुछ महीनों में ही बर्बादी दिखने लगी है। शहर की कई सड़कों के डिवाइडर्स फिर से रंगे जा रहे हैं जबकि अभी बारिश का दौर जारी है।
विहान हिंदुस्तान डॉटकॉम ने कलेक्टोरेट के सामने हाल ही में रंगे गए डिवाइडर्स को लेकर काम कर रहे कर्मचारियों से बात की थी। उनका कहना था जो आइल पेंट लगाया जा रहा है वह पांच साल तक चलेगा। इसपर बारिश का पानी असर नहीं डालेगा, मतलब ये चमचमाते रहेंगे। हालांकि इस सड़क के डिवाइडर पर जनता नजर रखेगी लेकिन कई अन्य डिवाइडर ऐसे हैं जहां जनवरी में किया गया पेंट निकल चुका है। खास बात तो यह है कि जिम्मेदार अधिकारी मौन रहते हैं जबकि उन्हें अपने क्षेत्र में किए गए या किए जा रहे कार्यों पर नजर रखना चाहिए।
कमीशन का खेल, संगठित अपराध…बिल पास करने के 1%!
कमीशन के खेल को लेकर कुछ दिनों पहले ही राजनीति गर्मा गई थी। हम आपको बता दें कुछ शासकीय विभागों में संगठित अपराध चल रहा है जिससे नगर निगम भी अछूता नहीं है। संगठित अपराध से मतलब यह है जिसमें ठेकेदार, अधिकारी, ऑडिट टीम के लोग (सभी नहीं) शामिल रहते हैं और सरकारी खजाने में सेंध लगाते हैं। होता यह है कि रिपेयरिंग, रंग-रौगन, चैंबर के ढक्कन लगाना, चैंबर की सुरक्षा के लिए कभी लोहे के पाइप तो कभी सीमेंट के पाइप लगाने जैसे अनेकों कार्य हैं जिसे बार-बार कराया जाता है। अधिकारी काम निकालते हैं, ठेकेदार उसे पूरा करते हैं। खास बात तो यह है कि सरकारी खजाने से जबरन पैसा खर्च न हो इसके लिए ऑडिट होता है। ऑडिट विभाग के अधिकारियों को बार-बार एक ही काम के बिल लगने से रोकना चाहिए लेकिन कमीशन के खेल से वे भी अछूते नहीं हैं। वे अपना पर्सेंटेज लेकर बिल पास कर देते हैं। इंदौर नगर निगम में ही स्थानीय निधि संपरीक्षा (ऑडिट) विभाग के सहायक संचालक रहे शरद कतरोलिया पर तत्कालीन संभागायुक्त आकाश त्रिपाठी ने कार्रवाई की थी। 23 दिसंबर 2019 को निकाले अपने आदेश में संभागायुक्त ने कतरोलिया को निलंबित किया था। निलंबन आदेश में स्पष्ट किया था कि वे ठेकेदारों से बिल पास करने के लिए एक से डेढ़ प्रतिशत कमीशन मांगा जा रहा हैं। आपको बता दें तत्कालीन निगमायुक्त आशीष सिंह ने कतरोलिया मामले की जांच कर संभागायुक्त को रिपोर्ट सौंपी थी। बताते हैं कतरोलिया मामले में अभी तक जांच चल रही है।
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