सरस्वती के मंदिर में पहुंचते ही दिल से बोलने लगे नेता, पत्रकार, एडवोकेट, नागरिक….गोपी नेमा बोले-ब्यूरोक्रेसी के घोड़े की लगाम..
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मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज
भाजपा के वरिष्ठ नेता गोपीकृष्ण नेमा के हाथ में जैसे ही माइक आया तो उन्होंने डॉ. राममनोहर लोहिया को कोड किया। नेमा कहने लगे डॉ. लोहिया का कहना था ब्यूरोक्रेसी के घोड़े पर सवार रहो तो लगाम कस कर पकड़ना चाहिए। चाबुक हाथ में रहे तभी घोड़ा सीधी चाल चलता है। इंदौर में भी कुछ ऐसा ही होता रहा है। यहां अफसरों पर लगाम नहीं होती है जिसके कारण वे मनमानी करते हैं। अफसरों ने इंदौर को तो मानो प्रयोगशाला ही बना दिया है। 2-3 साल तक वसूली की फिर दूसरे शहर में चले गए जहां खेती की…फिर अगले शहर में कटिंग की। स्वच्छता में इंदौर नंबर एक आया तो अधिकारियों के बल पर…घर की बेटी तो सुबह कचरा बाहर फेंक देती है।
इंदौर प्रेस क्लब जिसे सरस्वती का मंदिर माना जाता है वहां आज हर वक्ता के अंदर मानो सरस्वती विराजित हो गई थी। वे अपने विषय पर खुलकर बोले..बेहिचक बोले। मौका था संस्था युवा पैगाम द्वारा आयोजित परिसंवाद जिसका विषय था शहर की बर्बादी का जिम्मेदार मैं। इस परिसंवाद में भाजपा के पूर्व विधायक गोपीकृष्ण नेमा अतिथि के रूप में मंच से बोल रहे थे लेकिन उन्होंने जब बोलना शुरू किया तो मानो गोपी नेमा के रूप में इंदौर का राजबाड़ा बोल रहा हो..शहर का दर्द बयां कर रहा हो। अफसरों पर उन्होंने खुलकर कटाक्ष किए। गोपीकृष्ण नेमा का कहना था इंदौर की जनता तो हर क्षेत्र में बहुत बेहतर है और कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली है इसलिए इंदौर की जनता तो शहर की बर्बादी की जिम्मेदार हो नहीं सकती है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विधायक संजय शुक्ला का कहना था एडवोकेट प्रमोद द्विवेदी ने शानदार कार्यक्रम व बेहतरीन विषय चुना है। यहां अधिकारी खुलकर पैसा खर्च करते हैं लेकिन उसका फायदा नहीं होता है। अरबो-खरबों खर्च करने के बाद भी लोगो को सुविधा नहीं मिल रही है।
हर व्यक्ति ने एक भूमिका चुनी…
कार्यक्रम में पत्रकार के रूप में प्रतीक श्रीवास्तव (असल पेशा पत्रकार), नागरिक के रूप में प्रमोद द्विवेदी (पेशा एडवोकेट व कांग्रेस नेता), एडवोकेट के रूप में मृणाल पंत (एडवोकेट व कांग्रेस नेता), नेता की भूमिका में सुमित मिश्रा (भाजपा नेता व एडवोकेट) और अफसर के रूप में सुबोध खंडेलवाल (पेशा पत्रकारिता) ने हिस्सा लिया। वैसे तो परिसंवाद में शिक्षक के रूप में श्रीमती संगीता सिंघानिया को अपनी भूमिका का निर्वाह करना था लेकिन वे कार्यक्रम में नहीं आ सकी। श्रोता यह कहने से नहीं चूके कि सरकारी स्कूलों में कुछ ऐसे ही हाल होते हैं जब बच्चे तो क्लास में आ जाते हैं लेकिन शिक्षक गायब रहते हैं। कार्यक्रम के अंत में जिला बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र वर्मा ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा शहर में कुछ भी हो जाए लेकिन बात तो आखिर में हमारे पास (वकीलों के) ही आती है। इस परिसंवाद का संचालन एडवोकेट संजीव गवते ने किया।
पत्रकारिता किसी समय होती थी, अब लाइजनिंग होती है
परिसंवाद में पत्रकार की भूमिका अदा करते हुए प्रतीक श्रीवास्तव ने कई सच्चाईयों से पर्चा उठाया। उन्होंने कहा इंदौर शहर में किसी समय पत्रकारिता होती थी। जब राहुल बारपूते, राजेंद्र माथुर जैसे पत्रकार कुछ लिख देते थे तो सरकारें हिल जाती थी लेकिन अब वह पत्रकारिता कहां रह गई। अब तो पत्रकार लाइजनर हो गया है। मालिको के 5-7 का अधिकारियों-राजनेताओं से कराता है और खुद के भी 2-3 का निकलवा लेता है। हमारी (पत्रकारों की) कलम तो अफसरों के पास गिरवी रखा गई या यूं कहें तो उनके पैरों में पड़ी है।
मैं सब जानता हूं लेकिन डंडा लेकर खड़ा नहीं हो सकता
नागरिक की भूमिका अदा करने वाले प्रमोद द्विवेदी ने शहर के रहवासियों की स्थिति को खुलकर बोला। उन्होंने कहा जब सुभाष चौक की पानी की टंकी में सड़ीगली लाश मिलती है तो मैं अंगुली डालकर उल्टी करता हूं लेकिन डंडा नहीं उठाता कि उस अफसर का सर फोड़ दूं। मैं वह नागरिक हूं। नसबंदी वाले श्वान नसबंदी से कमजोर हो जाते है लेकिन मैं वह कायर नागरिक हूं कि 9 करोड़ रुपये का नसबंदी हुई लेकिन श्वानों की संख्या 64 हजार से बढ़कर एक लाख कैसे हो गई। कम शब्दों में कहे तो इंदौर के नागरिक के रूप में बोलते हुए श्री द्विवेदी ने कायरता पर काफी जोर दिया। उनका कहना था नागरिक कायर रहेगा तो अधिकारी मनमानी करेंगे।
वकील पुलिसवाले को चांटा मार दें तो मजबूरन मुझे…
इंदौर के एडवोकेट्स को लेकर बोलते हुए मृणाल पंत ने कई बिंदुओं पर बात की। उनका कहना था मैं आज इस मंच पर आया तो पता चला आधा-अधूरा वकील पेशे से वकीलों के सामने खड़ा है। उन्होंने कहा वकीलो की स्थिति आज यह है कि चौराहे पर किसी जवान ने वकील को रोक लिया और वकील ने उसे चांटा मार दिया तो सारे वकील इकट्ठा हो जाएंगे। मुझे भी आगे आना होगा। उन्होंने देश के विभिन्न स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का उदाहरण देते हुए कहा कि वो आए तो वकालात करने थे लेकिन उन्होंने देश के विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग झंडा उठा लिया। वकीलो की बात करते हुए उन्होंने कहा पत्रकार-अधिकारियों का गठजोड़ हो या पत्रकार-माफिया का गठजोड़ वकील उनका साथ देने की ही सोचता है। भूमाफियाओं की बंदरबाट में वह अपना 2-3 प्रतिशत कमीशन निकालने पर ही ज्यादा ध्यान देता है।
नेता हूं-पायल बांटता हूं, शराब बांटता हूं.. चुनाव जीत जाता हूं
कार्यक्रम में नेता की भूमिका अदा करने वाले भाजपा के युवा नेता सुमित मिश्रा ने वर्तमान राजनीति के कच्चे-चिट्ठे खोल डाले। उन्होंने कलयुग के कुछ नेताओं की भूमिका अदा करते हुए कहा चूंकि मैं नेता हूं इसलिए हर कुछ कर सकता हूं। पहले रानी किसी राजा को पैदा करती थी लेकिन अब जनता राजा पैदा करती है। जनता ईमानदारी से वोट देकर अच्छी सरकार चुनना चाहती है लेकिन मैं (नेता) उसे पायल बांटता हूं, साड़ी बांटता हूं, शराब बांटता हूं…और वोट प्राप्त कर लेता हूं। इंदौर में बावड़ी धंसी तो उसमें अपनी गलती दबाने के लिए मैंने मंदिर तुड़वा दिया। लोग अधिकारियों के ऊपर आ खड़े हुए….मेरा (नेता) कुछ नहीं हुआ। मैं अधिकारी से इसलिए बनाकर रखता हूं क्योंकि उसकी रिकमेंट पर विधानसभा के टिकट मिलते हैं। इंदौर में धारकर और धर्म साहब जैसे नेता होते थे लेकिन अब देवास से नेता पकड़कर लाएं जा रहे हैं। चुप इसलिए रहता हूं क्योंकि टिकट न कट जाए। नेता वही है जो ऊंची-ऊंची देता हो।
बावड़ी टूट गई तो मचा बवाल…चूंकि मैं अफसर हूं तो कलेक्टर बन गया
अधिकारियों की भूमिका को मंच से बखूबी निभाने वाले पत्रकार सुबोध खंडेलवाल ने पर्दे के पीछे की सच्चाईयों को खुलकर श्रोताओं के सामने लाया। उन्होंने कहा जब अमृत मंथन हुआ था तब भगवान विष्णु के अलावा अमृत पीने वाले राहु-केतू थे। वह राहू-केतू आजकल अफसर हैं। अफसर इसलिए मजबूत हैं क्योंकि उन्होंने अमृतपान किया है। इंदौर में बावड़ी की छत धंसी और 36 नागरिक मर गए लेकिन अफसर को कलेक्टर बना दिया गया। नेता सोचते हैं वे ही सबकुछ है लेकिन वे गलत सोचते हैं…अधिकारी ही सबकुछ है। वह जो चाहता हैं कर देता है। इंदौर का प्रथम नागरिक महापौर होता है लेकिन शहर में मॉल टूटता है और उसे पता ही नहीं चलता है क्योंकि काम तो अफसर ही करते हैं। अफसर चाहता है तो समाचार पत्रों में खबर छप जाती है और नहीं चाहता तो खबर रूक जाती है। शहर के विधायक का टिकट किसे मिले वह तो तय करता ही है लेकिन उसकी इच्छा होती है तो खुद भी चुनाव मैदान में उतर जाता है। आपने देखा न इंदौर का कलेक्टर छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री भी बन चुका है।