अपने झूठ को पांव देना जरूरी है, सामने वाले की आंखों में आंखे डालिये


मुकेश नेमा की व्यंगात्मक कलम से


झूठ हमेशा सच के कपड़े पहनकर आता है। सच का सौतेला भाई है वो। झूठ बोलने का कायदा ही यही है, उस पर लोग भरोसा तभी करते हैं जब वो सच जैसा लगे। झूठ में सच की मिकदार जितनी ज्यादा होगी उतना ज्यादा भरोसेमंद होगा। झूठ, सच के आटे में नमक की तरह हो। सच के दूध में पानी की तरह मिल जाये, जब भी ऐसा होता है, उसमें जो स्वाद आता है उसका कोई मुकाबला नहीं। झूठ तब ज्यादा असरकारी होता है जब बोलने वाले को भी खुद पर भरोसा हो। लगातार झूठ बोलने में एक गड़बड़ यह कि लोग फिर ऐसा करने वाले पर कुछ वक्त तक भरोसा नहीं करते। उसे गंभीरता से लेना बंद कर देते हैं। अपनी विश्वसनीयता बनाने के लिये फिर कुछ दिनों सच का हाथ पकड़े रहना होता है। ऐसे में झूठ को बतौर जीवनरक्षक दवा की तरह ही इस्तेमाल करना ठीक होता है। तब बोलें झूठ जब सच बोलने पर जान, माशूका, बीबी या कुर्सी जाने का खतरा हो। और जब झूठ बोल ही चुके हो आप तो उस पर अड़े रहिये। उसे बार-बार दोहराकर कर उसमें जान फूँकिये। उसके खिलाफ पेश किये गये तमाम तर्कों को बिना सुने खारिज कर दीजिये। झूठ को सहारा देने के लिये उप झूठ, गवाह और सबूत भी गढ़ कर रखें। आमतौर पर झूठ बोलने में खर्च भी बहुत आता है, अमीरी का शगल है ये। इसलिये गरीब कायदे से झूठ नहीं बोल पाता।

मुकेश नेमा

अपने झूठ को पांव देना बेहद जरूरी है। सामने वाले की आंखों में आंखें डालना याद रखें। ऐसा करेगें तो सामने वाले का कॉन्फिडेंस भी डगमगा जायेगा और आप जीते बने रहेंगे।
सच और झूठ में एक फर्क़ ये भी है कि झूठ हमेशा फायदे के लिये बोला जाता है जबकि सच की तासीर नुकसान करवाने की होती है। झूठ बोलना नैसर्गिक मनोवृत्ति होती है इंसान की, जबकि सच बोलने के लिये मन को समझाना पड़ता है। झूठ हमेशा खुशी और राहत का पैगाम लेकर आता है जबकि सच बोलने पर आपको मातम का सामना भी करना पड़ सकता है। पर पता नहीं क्यों सच बोलने वाले की सबसे ज्यादा कद्र झूठ बोलने वाले ही करते है। हर आदमी झूठ बोलता है और सामने वाले से सच बोलने की उम्मीद करता है और साथ में उसे गधा और बेवकूफ भी समझता है।
झूठ के चाहने वाले ज्यादा है दुनिया में क्योंकि ये सच की बनिस्बत जल्दी असर करता है। इसे ऐसा समझें झूठ एलोपैथी है और सच होम्योपैथी। हम दो मिनट में नतीजा चाहते हैं इसलिये मैगी टाईप झूठ बोलते हैं और सच की बीरबल वाली खिचड़ी से बचते है।
यदि जरूरी होने पर भी झूठ बोलने में संकोच या लिहाज करेंगे तो मारे जायेगे। आजकल झूठ इसलिये भी जरूरी हो गया है क्योंकि बोलबाला झूठो का ही है। यदि झूठ बोलने में संकोच हो तो पहले छोटे-मोटे झूठ बोलें। करत-करत अभ्यास से जड़मति होय सुजान.. वैसा नियम इस पर भी लागू होता है। पर जब भी झूठ बोलना पड़े तो धड़ल्ले से बोलिये। हिचकिचाहट झूठ की सबसे बड़ी दुश्मन होती है।
पर रूकिये थोड़ा सा। पहले आप बिना वजह शक करना बंद कीजिये। यकीन कीजिये मेरा जैसा सोच रहे हैं आप वैसा कुछ नहीं है, कम से उन्हें झूठ बोलना मैंने नहीं ही सिखाया है जिनके बारे में आप फिलहाल सोच रहे हैं।

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