..तब चलता था जॉनी ‘रैकेट’
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Munish Sharma, Editor in chief, Vihan Hindustan
आदिम जाति कल्याण विभाग इंदौर में एक अफसर आए थे आर.एन. जॉनी। इनके अलग ही तेवर थे। सफेद वस्त्र धारण करने के साथ कुर्सी पर पीछे सफेद कपड़ा भी डलवाते थे। जरा भी गंदगी दिखे तो प्यून की हालत खस्ता कर देते थे। कलेक्टोरेट भवन उस समय पुराना था तो वहां मच्छर भी खूब रहा करते थे, उस समय मच्छर मारने के रैकेट नहीं थे। जॉनी साहब को मच्छरों से भी दिक्कत होती थी। कई बार तो प्यून को कर्मचारी मच्छर मारते भी देखा करते थे। प्यून दोनों हाथ ऊपर किए मच्छर के पीछे भागते हुए दिख जाया करता था। जॉनी साहब कई बार मच्छर की दिशा ऐसे बताते थे जैसे कोई सैटेलाइट सूचना दे रही हो। प्यून को टेंशन इस बात की भी रहती थी कि यदि मच्छर नहीं मरा और खाली ताली बज गई तो साहब फटकार लगाएंगे। एक बात और भी थी। जॉनी साहब और उस समय के उनके विभाग के मंत्री की जरा भी नहीं जमती थी लेकिन मंत्रालय में साहब की मंत्री से ज्यादा बेहतर सेटिंग थी। मंत्री उनका ट्रांसफर कराने के लिए फाइल चलाए तो नीचे आते-आते रूक जाती थी। बताया जाता है दो-तीन बार जब यह हुआ तो मंत्री महोदय को सीधे सीएम के पास जाना पड़ा। सीएम के कहने पर जॉनी साहब का ट्रांसफर तो हुआ लेकिन जॉनी साहब की स्वेच्छा से लिखे आवेदन पर। मंत्री की इन साहब पर ऐसी नाराजगी रही कि इनका विदाई समारोह जिस शाम को होना था उस पूरे दिन मंत्री के गुर्गों के फोन संबंधित कर्मचारियों को आते रहे। फोन पर सभी से एक ही बात कहीं जा रही थी, ..जॉनी को एक फूल भी दिया तो देखना। बस फिर क्या था, कर्मचारियों द्वारा जॉनी साहब के लिए लाए हार-फूल और मिठाई आफिस में ही पड़े रह गए।