कश्मीर की जनता शांत, मोदी और तालिबान पर रख रही ध्यान


मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज


दो साल पहले जम्मू-कश्मीर में धारा-370 हटाने के बाद से अब तक यह क्षेत्र तकरीबन शांत सा रहा है। शुरुआत में कुछ स्थानों पर नेताओं के साथ जनता सड़कों पर उतरी जरूर लेकिन यह बहुत छोटे समय के लिए ही हुआ। अब देखने में आया है घाटी के कुछ नेताओं के सुर फिर बुलंद होने लगे हैं लेकिन जनता शांति से बैठकर सबकुछ देख रही है। घाटी में नेताओं के सुर बुलंद होने के पीछे अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा करना है। इन्हें लग रहा है तालिबान उनकी मदद करने आएगा। जनता इनके बहकावें में आने के बजाय नरेंद्र मोदी और तालिबान पर नजरें लगाए हुए हैं। ये देखना चाहते हैं मोदी तालिबान को किस तरह से हेंडल करते हैं। यदि मोदी ने तालिबान को नियंत्रित कर लिया तो ठीक, नहीं तो घाटी एक बार फिर अशांत हो सकती है।


दो साल पहले जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य से धारा-370 हटाई थी तब कुछ बवाल जरूर हुआ था लेकिन सबकुछ जल्द ही नियंत्रण में भी आ गया था। घाटी के उन लोगों ने भी यह मान लिया कि अब उन्हें भारत के साथ ही रहना है, जो कश्मीर को आजाद कराना चाहते थे। जनता ने तो पाजीटिव सोच रखते हुए केंद्र सरकार से विकास व रोजगार की उम्मीद लगाई थी। त्राल व शोपिया को छोड़ दें तो घाटी पूरी तरह से शांत है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि त्राल पर भी सरकार ने लगभग पूरी तरह से नियंत्रण कर लिया है। अब यहां स्थानीय आतंकवादी बहुत ही कम है। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के प्रयासों से यहां पत्थरबाजी भी लगभग पूरी तरह से समाप्त हो गई है। वे समय-समय पर घाटी के अलग-अलग क्षेत्रों में दौरा करते हैं। लेकिन जनता अभी केंद्र सरकार से खुश नहीं है क्योंकि दो साल बाद भी यहां सरकार न तो रोजगार दे पाई है और न ही विकास कार्य करने में पूरी तरह से सक्षम हो सकी है। चूंकि अभी शासक उपराज्यपाल हैं जिससे उन्हें अफसरों के भरोसे ही सबकुछ करना पड़ रहा है। यदि ध्यान दें तो अधिकांश अफसर अभी पूरी तरह से भरोसा करने लायक भी नहीं हुए हैं क्योंकि जनता को जो न्याय मिलना चाहिए वह उस गति से आगे नहीं बढ़ रहा है जैसा होना चाहिए।


आतंकवाद की राह से भाजपा में आए नेताओं से आईएसआई कर सकती है संपर्क
जब उपराज्यपाल शासक हैं तो उनकी मदद के लिए अफसर ही आगे आ सकते हैं। अब अफसर पर निगरानी करने वाले भी होना जरूरी है जहां आकर भाजपा की केंद्र सरकार फेल होती दिख रही है। असल में भाजपा की यहां सदस्य संख्या कम है जिससे केंद्र सरकार को सही फीडबैक नहीं मिल पा रहा है। जो भाजपा के कार्यकर्ता हैं उन्हें आतंकवादी गोलियों का निशाना बना रहे हैं जिससे भाजपा की सदस्यता लेने वालों की कमी है और जो सदस्य हैं भी वे भय के कारण बाहर ज्यादा घूम नहीं पा रहे हैं। तालिबान के अफगानिस्तान में आने से पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी दल कश्मीर में सक्रिय होते दिख रहे हैं। एक मुख्य बात यह भी है कि भाजपा के कुछ सदस्य पूर्व में आतंकवादी थे जिनपर आईएसआई की नजरें हैं। मिली जानकारी के अनुसार आईएसआई ऐसे भाजपाईयों से संपर्क कर सकती है जो पूर्व में उसके साथ मिलकर कश्मीर को अशांत करते रहे। इन भाजपाईयों की नाराजगी इस बात से है कि भाजपा जम्मू में सीटे बढ़ाकर कश्मीर को पीछे करना चाह रही है। इन्हें लग रहा है यदि जम्मू-कश्मीर में भाजपा आ भी जाएगी तो मुख्यमंत्री जम्मू का बनेगा जिससे कुछ भाजपा नेता मुखर हैं। भाजपा के साथ दिक्कत यह है कि वह जम्मू-कश्मीर के बाहर के नेताओं को कश्मीर में रख नहीं सकती क्योंकि एक तो उनकी सुरक्षा का भय और दूसरा उनकी हिंदुवादी छवि है जिससे भाजपा के यहां नंबर ही कम होना है। उसे यहां सही चेहरे भी काम करने के लिए नहीं मिल रहे जो आने वाले समय के लिए बहुत जरूरी है।

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