क्या लिखूँ 

कैसे लिखूँ 

वो कोई  किरदार नही 

वो कोई किस्सा नही 

वो किसी कहानी का हिस्सा नही 

जो  उतार सकूँ  पन्नों में 

और खूबसूरत सी 

रचना की माला पहना दूँ

या दे दूँ ढेर सारी उपमायें 

और सजा दूँ पन्ने उसके विशेषण में 

या देकर भगवान  का दर्जा 

उसे  कमतर आँकू

और भूला दूँ उस दर्द  को 

जो मुझे जनते समय  सहे है

वो तो बस एहसास है 

वो एक आस है  

उसकी कोई कामना नही 

उसकी कोई आशा अभिलाषा नही 

वो तो स्नेह गंगा की तरंग 

निश्चल प्रेम की डगर है 

वो प्रेम जो 

दुर्लभ  था 

ईश्वर  को भी नसीब  न था 

उस   दुलार अद्भुत पाने के लिए  

रोलियों से भरी थपकी लेने के लिए  

मीठा भोजन खाने के लिए

प्रभु ने 

राम ,श्याम का बालरूप अपनाया था 

माँ की गोद में बैठ कर   

दाल भात खाया था 

 और यह समझा था 

माँ  का नाम कोई भी हो 

पर  दुलार कभी न बदला है  

कौशल्या कहो

 यशोदा कहो 

या नाम दे दो पुष्पा 

नाम अनेक है पर माँ तो एक है

 सच तो केवल एक यही है 

जीवन है  माँ की गोद 

बाकि तो संघर्ष है    

-लेखक : निधि परमार, भोपाल

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