म.प्र. में वोट प्रतिशत बढ़ा, किसे हो सकता है फायदा…वापसी या बदलाव का गणित समझें..
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मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज
म.प्र. विधानसभा चुनाव-2023 में इस बार जोरदार वोटिंग होने की बात सामने आई है हालांकि फाइनल आंकड़ा क्या है यह कल तक ही सही पता लग सकेगा। फिलहाल जानकारी आ रही है कि प्रदेश में 76.22 प्रतिशत मतदान हुआ है। पिछली बार यानी साल 2018 में 75.2 प्रतिशत मतदान हुआ था जिससे इस बार एक प्रतिशत ज्यादा हुआ है।
बात यह है कि 76.22 प्रतिशत वोटिंग होने का किसे फायदा होगा? स्थितियां यह बताती है कि म.प्र. में सत्ता की दावेदार सिर्फ दो राजनीतिक पार्टियां भाजपा और कांग्रेस को माना जा रहा है क्योंकि अन्य पार्टियां या निर्दलीय खेल खराब कर सकते हैं लेकिन गद्दी हासिल करने में फिलहाल ये सक्षम नहीं है। वोट प्रतिशत बढ़ने के पीछे अलग-अलग कारण माने जा सकते हैं जिसमें कुछ बिंदु भाजपा की वापसी तो कुछ कांग्रेस को ताज लेना इंगित करते हैं।
हम यदि साल 2003 से लेकर 2018 तक की बात करें तो वोट प्रतिशत बढ़ा ही है। 2003 में 67 प्रतिशत वोटिंग हुई जिसमें भाजपा को 173 और कांग्रेस को मात्र 38 सीटें मिली थी। 2008 में 69 फीसदी वोटिंग हुई जिसमें भाजपा को 143 तो कांग्रेस को 71 सीटे मिली। साल 2013 में प्रतिशत का आंकड़ा फिर बढ़ा और 70.8 फीसदी तक पहुंचा जिसमें भाजपा ने 165 और कांग्रेस ने 57 सीटे जीती। 2018 में 75.2 फीसदी वोटिंग हुई जिसमें कांग्रेस को 114 और भाजपा को 109 सीटे मिली। यह बात अलग है कि 2018 के चुनाव का वोट प्रतिशत देखें तो भाजपा ने 41 प्रतिशत तो कांग्रेस ने 40.9 प्रतिशत वोट अर्जित किए। वोट प्रतिशत बढ़ने के बावजूद भाजपा की कांग्रेस से पांच सीटे कम आई।
2023 के विधानसभा चुनाव में वोट बढ़ने के मायने
-साल 2003 से 2018 तक वोट प्रतिशत बढ़ा है लेकिन भाजपा-कांग्रेस की सीटें कम ज्यादा हुई मसलन साल 2003 में 67 प्रतिशत वोटिंग होने पर भी भाजपा को 173 सीटे मिली जबकि 2018 में 75.2 प्रतिशत होने पर भी 109 सीटों से ही उसे संतोष करना पड़ा। इस मायने से यह कहना मुनासिब नहीं है कि वोट प्रतिशत बढ़ने का सीधा-सीधा एक ही पार्टी को फायदा होगा।
– भाजपा की दृष्टि से देखें तो वोट प्रतिशत बढ़ने के पीछे का कारण उसकी लाड़ली बहना योजना (अन्य कुछ योजनाएं भी) के साथ सरकार के विकास कार्य का महत्व रखना है। हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग भाजपा के राज में खुद को सुरक्षित भी समझता है जिससे वह अन्य पार्टियों की तरफ ध्यान ही नहीं देता। इसके अलावा केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यों का विशेष आकर्षण विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिलता है। यदि भाजपा के पक्ष में वोट शेयर बढ़ रहा है तो यह कहना गलत नहीं होगा कि फिर एक बार म.प्र. में भाजपा की सरकार बनने जा रही है। अब यह बात अलग है कि जीत होने पर पार्टी शिवराजसिंह चौहान को हीरों मानेगी या नहीं? भाजपा इस जीत को पार्टी संगठन और केंद्र की रणनीति भी बता सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जीत का सेहरा बांधना तो तय ही है क्योंकि उनके चेहरे पर ही चुनाव लड़ा गया था।
–कांग्रेस की दृष्टि से देखें तो सत्ता विरोधी लहर का फायदा उसे मिलना माना जा सकता है। वैसे तो कांग्रेस मैदानी स्तर पर भाजपा की शिवराजसिंह चौहान सरकार के खिलाफ कोई बड़े प्रदर्शन-आंदोलन नहीं कर पाई लेकिन जनता की नाराजगी ही भाजपा को हटाने के लिए कारगर साबित हो सकती है। भ्रष्टाचार का मुद्दा काफी बड़ा था जिसे जनता ने महसूस किया। इसमें कुछ अफसरों की ज्यादतियों के कारण भाजपा का नाम खराब होना मुख्य है। प्रतियोगी परीक्षाओं में हुए घोटालों का नुकसान भी भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। महंगाई भी एक मुद्दा रहा। यह बात जरूर है कि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में किसानों को तवज्जों देने के साथ-साथ बिजली बिल और लाड़ली बहनाओं पर भी ध्यान देने पर जोर दिया। सरकारी कर्मचारी खासकर 2005 के बाद सेवा में आए हैं उन्हें पुरानी पेंशन का लाभ देने के वादे का काफी असर देखा जा रहा है। कहा तो यह जा रहा है कि सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है। किसानों का आक्रोश भी भाजपा के खिलाफ ही देखा जा रहा है।
लाड़ली बहना योजना पर गुस्सा भी एक बिंदु..
लाड़ली बहना को लेकर एक वर्ग में खुशी थी तो एक वर्ग ऐसा भी है जिसकी नाराजगी सरकार को सहना पड़ सकती है। असल में भाजपा ने 1000 रु. प्रतिमाह लाड़ली बहना योजना में देने की बात कही जिसे बढ़ाकर 3000 रु. करने का आश्वासन दिया। फिलहाल 1250 रु. दिए जा रहे हैं। कांग्रेस ने 1500 रु. देने का आश्वासन दिया है। लाड़ली बहना योजना से कुछ ऐसे लोग नाराज दिखे जो टैक्स देते हैं। उनका कहना है हमारे पैसों को शिवराजसिंह चौहान सरकार लूटा रही है। इसके अलावा एक मुद्दा उन महिलाओं का भी है जो लाड़ली बहना के रसूख से नाराज दिखी। असल में कई लाड़ली बहना घरों पर या अन्य संस्थानों में काम करती हैं। उनके खाते में पैसा आने से ये बहनाएं कई बार काम पर नहीं जाती है जिसकी नाराजगी उन्हें काम देने वालों खासकर महिलाओं में देखने को मिली। यदि योजना से नाराज लोग अपने वोट का उपयोग करते हैं तो भाजपा को दिक्कत आ सकती है। हालांकि कहने को यह बात भी आएगी कि कांग्रेस भी 1500 रु. देने का वादा कर चुकी है जिसके जवाब में यह कहा जा रहा है कि ये लोग राजस्थान पेटर्न यानी हर बार सरकार बदलने को प्राथमिकता दे रहे हैं। एक नाराज वर्ग वह भी है जो लाड़ली बहना के लिए पात्र तो है लेकिन किसी न किसी कारण से उन्हें राशि नहीं मिली। इनका गुस्सा भी भाजपा को भुगतना पड़ सकता है।