लाड़ली बहना की तरह हो लाड़ली बेटी पहलवान योजना, महिला पहलवानों को आगे लाने के लिए बेहतर तरीका – नींबू पहलवान

इंदौर नगर निगम द्वारा साल 1970 में कराया गया म.प्र. केसरी दंगल जीतने के बाद चांदी का गुर्ज नींबू पहलवान को मिला था। यह गुर्ज लगभग 3 किलो चांदी (प्योर चांदी) का है।

मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज

भारत में यदि महिला कुश्ती की बात करें तो हरियाणा, पंजाब, दिल्ली पर आकर देश की गाड़ी रूक जाती है। आप देखेंगे एशियाड, ओलिंपिक और विश्व चैंपियनशिप में जितनी भी महिला पहलवानों ने पदक हासिल किए हैं उनमें से अधिकांश इन राज्यों से ही आती है। म.प्र. की स्थिति तो बड़ी विकट है क्योंकि वर्तमान में हम पुरुष कुश्ती में भी पदक नहीं ले पा रहे हैं। महिला पहलवानों को आगे लाने के लिए बड़े प्रयास करना होंगे और देश की बेटियों के लिए यह करना भी चाहिए। मेरा मानना है जैसे लाड़ली बहना योजना लागू की उसी तर्ज पर म.प्र. में लाड़ली बेटी पहलवान योजना लाना चाहिए जिसका मकसद हमारी बच्चियों को कुश्ती के खेल में आगे लाना रहे ताकि वे प्रदेश और देश के लिए पदक हासिल कर सके।

यह कहना है म.प्र. के ख्यात पहलवान रहे नींबूलाल यादव (नींबू पहलवान) का। उनका कहना है म.प्र. सरकार को हर जिले से कुछ महिला पहलवानों को आगे लाना चाहिए जिससे प्रत्येक माह इन बालिका पहलवानों को खान-पान के लिए लगभग 5000 रु. महीना देना चाहिए। म.प्र. केसरी रहे नींबू पहलवान का कहना है केंद्र सरकार भी कुछ अखाड़े गोद लेती है जिसके तहत वे अपना कोच वहां नियुक्त करती है और पहलवानों को कुछ राशि देती है ताकि वे पूरी डाइट ले सके। म.प्र. में कुश्ती के स्तर को आगे बढ़ाने के लिए नींबू पहलवान का सुझाव यह है कि इंदौर जैसे पहलवानी के गढ़ में भी भोपाल की तर्ज पर कुश्ती एकेडमी होना चाहिए। उन्होंने अपने साथ हुए एक वाकिया का जिक्र करते हुए कहा कि मैं कटनी में जब कुश्ती लड़ने पहुंचा तो मेरे सामने आए सभी पहलवानों को चित कर दिया या उनसे अच्छे अंतर से कुश्ती जीती। वहां अशोक पटेल और एन.पी. तिवारी मौजूद थे जो एसएफ से जुड़े थे। उन्होंने मुझे एसएफ की नौकरी ऑफर की। मैंने कहा मैं पहलवानी करना चाहता हूं जिससे उन्होंने कहा तुम्हें सिर्फ एसएफ की तरफ से पहलवानी करना है। मैं साल 1971-72 में नौकरी पर चढ़ गया लेकिन कुछ समय बाद हमें भिंड में रख दिया गया जहां एसएफ का कुश्ती सेंटर था। वहां खान-पान सबकुछ अच्छा था लेकिन अपना घर-परिवार नहीं था। कुछ अच्छा नहीं लगा तो मैं नौकरी छोड़कर वापस लौट गया। कुश्ती एकेडमी हर संभाग में होना चाहिए ताकि वहां के पहलवान आगे बढ़ सके और उन्हें घर से बहुत दूर भी न रहना पड़े। आप समझ सकते हैं हमारे यहां महिला पहलवानों को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को कितने ज्यादा प्रयास करना होंगे।

मास्टर चंदगीराम के साथ भी किया जोर…

नींबू पहलवान अपने समय की कुश्ती को लेकर कहते हैं तब पहलवानों में अखाड़े में जाने का एक क्रेज था। हम लोग अखाड़े में ही ज्यादा समय रहते थे और जोर करते थे। उन्होंने बताया देश के ख्यात पहलवान मास्टर चंदगीराम के साथ भी उन्हें जोर करने का मौका मिला। मास्टर चंदगीराम हमारे बाणगंगा के बलभीम व्यायामशाला में आकर जोर करते थे। आजकल के बच्चों का पहलवानी को लेकर रूझान कम होने का कारण वे सरकार की योजनाओं में कमी को बताते हैं। उनका कहना है सरकार यदि ध्यान देगी तो बच्चे कुश्ती के साथ अन्य खेलों के प्रति भी आकर्षित होंगे। अब तो सरकार नौकरियों में सीधी भर्ती भी देने लगी है जिससे बच्चों को इस तरफ आना चाहिए। नींबू पहलवान को म.प्र. के नए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से काफी उम्मीदें हैं। उनका कहना है डॉ. यादव खुद म.प्र. कुश्ती संघ के अध्यक्ष हैं और खिलाड़ी हैं जिससे वे खेल के क्षेत्र में ज्यादा ध्यान देंगे। उन्होंने यह भी कहा कि हम यादव तो कुश्ती से जन्म से ही जुड़े रहते हैं क्योंकि बलराम और कृष्ण दोनों ही यादववंशी हैं जो मलयुद्ध से जुड़े रहे।

बदलेंगे बाणगंगा क्षेत्र के भी दिन..

देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के लिए कुश्ती में कई पदक जीतने वाले नींबू पहलवान का कहना है हम पैदा भी बाणगंगा में हुए और तब से अब तक यहीं रह रहे हैं। जब उनसे पूछा गया कि बाणगंगा क्षेत्र में विकास कार्य क्यों नहीं हो पाए तो उनका कहना था यहां के दिन भी अब बदलने वाले हैं। जब उनसे पूछा गया कि वे इस क्षेत्र में किस तरह का विकास चाहते हैं तो नींबू पहलवान का कहना था पहले तो यहां कॉलेज खुलना चाहिए। साथ ही बड़े सरकारी अस्पताल की यहां काफी जरूरत है। युवाओं के रोजगार के लिए भी सरकार को कुछ योजना लाना होगी जिससे यहां के युवावर्ग को आगे बढ़ने के अवसर प्राप्त हो सके।

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