नदियों को संवारने के लिए नालों का सहारा म.प्र. में सबसे ज्यादा नदियां पुर्नजीवित करने वाली तहसील है महू

हमारी परिपक्वता दिखेगी कनाड़ नदी के जीवन में
इस नदी का उद्गम स्थल दतोदा व हरसोला की पहाड़ियां है। यह नदी यहां से निकलकर जोशी गुराडिया, शिवनगर, गोकनिया, खोसीखेड़ा, पठान पिपल्या होती हुई खरगोन के समीप नर्मदा में मिलती है। यह नदी लंबे समय से बारिश के दौरान ही जीवत होती थी और अक्टूबर-नवंबर तक खत्म हो जाती थी। नवंबर अंत तक तो यह पूरी तरह सूख जाती थी जिसका लोग रास्ते की तरह भी कई जगह उपयोग करने लगे थे। रास्ते के लिए उपयोग करने पर नदी का स्वरूप भी बिगड़ने लगा था। भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत जनभागीदारी से जब यह काम नागरथ चेरिटेबल ट्रस्ट को सौंपा गया तब यहां काम करने के अवसर तो सुनहरे थे लेकिन कठिनाईयां भी काफी थी। करीब एक साल पहले यह काम हमें मिला तो शुरुआत नदी साथ कैचमेंट क्षेत्र की भी थी। कैचमेंट क्षेत्र में काफी कब्जे थे जिनके नहीं हटने पर पानी नदी तक पहुंच ही नहीं पाता था। कनाड़ नदी को तीन पहाड़ियां कुर्बान, तीखी व भमती का पानी मिलता है। तकरीबन इन तीनों ही पहाड़ियों से निकलने वाले पानी के रास्तों पर कोई खेती कर रहा था तो किसी ने अन्य तरह से कब्जे कर रखे थे।
शुरुआती तौर पर हमने गांव वालों के साथ बैठके करना शुरू किया। उन्हें बताया गया कि नदी के पुर्नजीवत होने से उन्हें कितना लाभ मिलेगा। इस क्षेत्र के किसान दो फसल तो ठीक से ले लेते थे लेकिन तीसरी फसल के समय इनके पास पानी समाप्त हो जाता था। जिन लोगों ने कब्जे कर रखे थे उन्हें गांव के लोगों ने ही मिलकर समझाया और खुशी की बात यह रही कि बिना किसी विवाद के सभी कब्जे छोड़ने को तैयार भी हो गए। कुछ ही दिनों में इन लोगों ने अपने कब्जे भी हटा लिए जिससे हमें काम करने के लिए मैदान साफ मिल गया। अब हमने यहां स्थानीय मजदूरों को जुटाकर नाला ट्रैचिंग का काम शुरू किया। इससे क्षेत्र के सैकड़ों लोगों को यहां रोजगार दिया गया। इन लोगों ने मिलकर कई किलोमीटर नाला ट्रैचिंग का काम किया। यह काम अभी भी जारी है। नाला ट्रैचिंग करने के साथ ही स्टॉपडेम बनाने का काम भी शुरू कर दिया गया है। 300 से 400 मीटर पर नाले में स्टॉपडेम बनाने का काम तेजी से चल रहा है। इसके अलावा पांच से सात किलोमीटर की दूरी पर तालाब का भी निर्माण किया जा रहा है ताकि बारिश के पानी को समयानुसार नियंत्रित किया जा सके। 200 से 250 मीटर दूरी पर रिचार्ज शाफ्ट का भी निर्माण किया जा रहा है जिससे पानी जमीन के अंदर उतरता रहे।
सत्रह गांवों में सीधे फायदा होगा
कनाड़ नदी के पुर्नजीवित होने से इसके आसपास के सत्रह गांवों को सीधे-सीधे फायदा होगा। इस नदी के आसपास शिवनगर, जोशी गुराडिया, दतोदा, गोखनिया, खोसीखेड़ा, पठान पिपल्या, चीखली सहित कई गांवों को फायदा होगा।
ये फसलें होती है
इन गांवों में सोयाबीन, गेंहू के अलावा विभिन्न सब्जियों की भी खेती की जाती है। इन गांवों में कई हेक्टेयर जमीन पर खेती होती है। भविष्य में यहां मछली पालन को भी बढ़ावा मिलेगा।
चोरल से मिला हौंसला, सुखड़ी ने दिया विश्वास
नागरथ चैरिटेबल ट्रस्ट ने करीब दस साल पहले जब चोरल नदी के आसपास के गांवों में अपना सहायता कार्य शुरू किया तो वहां अजीबों-गरीब स्थिति ट्रस्ट के सदस्यों को देखने को मिली। यहां जनवरी-फरवरी से ही गांवों से पलायन शुरू होने लग जाता था। इसके पीछे कारण क्षेत्र में पानी की समस्या थी क्योंकि चोरल नदी का पानी नवंबर तक समाप्त हो जाता था। इसके बाद लोग नदी को खोदकर पानी तो लेते थे लेकिन जनवरी-फरवरी तक यह पानी भी पूरी तरह से सूख जाता था। नदी को खोदकर पानी निकालने से क्षेत्र में लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर पड़Þ रहा था। ट्रस्ट के सदस्यों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर चोरल नदी को पुर्नजीवित करने की योजना तैयार की। इस नदी को किस तरह से पुर्नजीवित किया जा सकता है इसका प्रोजेक्ट तैयार कर भारत सरकार को भेजा। भारत सरकार ने भी इस प्रोजेक्ट को सराहा और नागरथ चैरिटेबल ट्रस्ट को ही इसकी जिम्मेदारी सौंपी। अब यहां काम की शुरुआत की गई लेकिन यहां प्रोजेक्ट को मूर्त रूप देना काफी कठिन था क्योंकि चोरल पहाड़ी नदी है जिसका बहाव काफी तेज होता है। बारिश शुरू होने के कुछ ही मिनटों में तेज बहाव से पानी नदी में आता है। पानी का बहाव भी काफी तेज होता है जिससे स्टॉपडेम को खड़ा रखना कठिन था। साथ ही नदी का पाट भी काफी चौड़ा था जिससे स्टॉपडेम बड़े बनना थे। सबसे बड़ी मुश्किल यहां का सघन वनक्षेत्र था जिससे वन विभाग से अनुमति लेना बड़ा काम था। वन अधिकारियों को बैठकर जब समझाया गया तब जाकर उन्होंने अनुमति दी। यहां पहाड़ियों पर मिट्टी कटाव के लिए विभिन्न संरचनाओं का निर्माण किया गया। तत्पश्चात नदी के कैचमेंट एरिया में तालाब, स्टॉपडेम, चेकडेम, बोल्डर बंधान का निर्माण किया गया। कैचमेंट क्षेत्र में बहने वाली एक-एक बूंद को रोका गया जिसका परिणाम तीन से चार साल के अंदर देखने को मिल गया। नदी का चौड़ा पाट होने से सौ से डेढ़ सौ मीटर चौड़े स्टॉपडेम बनाना था। शुरुआत केकरियाडाबरी क्षेत्र से की जो महू क्षेत्र के मेमंदी में करीब बारह सौ फीट नीचे था। स्टॉपडेम बनाने के पहले स्थल तक सामान पहुंचाने के लिए रास्तों का निर्माण किया गया जिसमें गांव के लोगों ने महती भूमिका अदा की। इस नदी पर विभिन्न क्षेत्रों में स्टॉपडेम बनाए गए। एक स्टॉपडेम बनाए जाने से दो से तीन किमी पानी रूकने लगा। पिछले पांच सालों से चोरल नदी गर्मियों में भी भरी रहती है। यहां के किसान तीन से चार फसले साल में ले रहे हैं। क्षेत्र के किसानों को फायदा मिला है। चोरल नदी के पुर्नजीवित होने से पहले सिर्फ बारिश से संबंधित फसले ही होती थी लेकिन अब रबी, खरीब के साथ-साथ जायद की फसले भी होने लगी है। चोरल जैसी तेज बहाव वाली नदी को पुर्नजीवित करने से जो हौंसला ट्रस्ट के सदस्यों को मिला उसका असर यह हुआ कि सदस्यों ने पानी के क्षेत्र में अपना काम करने पर फोकस बढ़ा दिया। यहीं कारण रहा कि जल्द ही सुखड़ी नदी को भी पुर्नजीवित करने का काम ट्रस्ट ने हाथ में लिया। सुखड़ी नदी भेरूघाट से निकलकर बाईग्राम, सेंडल-मेंडल होते हुए अठारह किमी बहने के बाद बड़वाह में नर्मदा नदी को मिलती है। बारह महीने पानी होने के कारण इस नदी के आसपास का क्षेत्र पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित होने लगा है। यहां के किसान भी अब आर्थिक रूप से समृद्ध होने लगे हैं क्योंकि ये भी साल में चार फसले ले रहे हैं।

एक समय ऐसा था जब इंदौर जिले की महू तहसील काफी सूखी पड़ी रहती थी। यहां से निकलने वाली चोरल, बालम, सुखड़ी जैसी नदी से लगे गांव भी जनवरी बाद से खाली होने लग जाते थे। ये आबादी शहरों की तरफ कूच करती या जहां इन्हें पानी की सुविधाएं आसानी से मुहैया हो जाती वहां ये कुछ महीनों के लिए बस जाते थे। जंगली जानवरों की कमोबेश कुछ ऐसी ही स्थिति होती थी जो दूसरे जंगलों की तरफ पलायन कर जाते थे। यह बात करीब एक दशक या उससे पहले की है। ..लेकिन कहते हैं न घूडेÞ (कचरे) के भी दिन बदलते हैं तो यहां हम मानवों की आबादी पर बात कर रहे हैं।
दिन बदलने की बात चोरल नदी से हुई जिसका उद्गम स्थल केकरियाडाबरी है जो पातालपानी के नीचे बसा एक गांव है। केंद्र सरकार की पानी सहेजने की स्कीम का यहां के लोगों को फायदा मिला। स्थानीय नागरथ चेरिटेबल ट्रस्ट ने यहां सरकार के साथ मिलकर चोरल नदी पर डेम बनाने का काम शुरू किया और देखते ही देखते दो दर्जन से ज्यादा गांवों की दिशा ही बदल गई। जो लोग जनवरी के बाद से पलायन करने लग जाते थे अब वे मई-जून की भयावह गर्मी में न सिर्फ अपने घरों पर रहते थे बल्कि मेहमाननवाजी भी करते हैं। कई परिजन इनके यहां गर्मियों की छुट्टियां मनाने आते हैं। गर्मियों में इनका घर चुनने का बड़ा मकसद पानी की व्यवस्था होना है। पूर्व में जो किसान दो खेती लेते थे अब वे तीन से चार खेती ले रहे हैं जिससे इनकी आर्थिक स्थितियां भी सुधर रही है। ट्रस्ट ने केंद्र सरकार की योजनाओं से चोरल ही नहीं सुखड़ी व बालम नदी को भी पुर्नजीवित किया है और अब कनाड़ नदी को जीविन देने का काम चल रहा है।
नागरथ चेरिटेबल ट्रस्ट के प्रोजेक्ट हेड सुरेश एमजी की जुबानी नदियों की कहानी :-

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