नेता जी का दम फिर घुटने लगा…

मुकेश नेमा की व्यंगात्मक कलम से

मुकेश नेमा

नेताजी सुबह से ही भारी खुश है आज। इसलिये खुश है कि पूरे छह महीने बाद आज उनकी घर वापसी होने जा रही है । थोड़ी सी बात साफ कर दी जाए अब । वो लाम पर नहीं गये थे । ना उनकी तक़दीर इतनी ख़राब है कि परदेस जाकर दो टकिया की नौकरी, मज़दूरी करना पड़े उन्हें । भगवान की दया से खूब खाते पीते है वो । वे अब बस उस पार्टी मे वापस हो रहे है जिसमे वे कुछ महीने पहले थे , जहां उनका दम घुटने लगा था और वे वहां से अचानक चले गए थे ।
चूंकि नेताजी उतने बड़े और लोकप्रिय नहीं हो सके है अभी कि पब्लिक से इकतरफ़ा बात कर लें । ऐसे मे उन्हें अब भी व्हाया पत्रकार पब्लिक से बात करनी पड़ती है ।
मंझोले टाईप के नेता जब भी वो कोई नया काम करते है या कोई नयी राह चुनते है , पत्रकारों को चाय पर चर्चा के लिये बुलाते ही है । चाहते तो वो भी यही है कि सवाल जवाब जैसे लफड़े ना हों पर यह समझते है कि पत्रकारों को भी पेट पालना है अपना । सवाल पूछना नौकरी है उनकी , और सवाल जवाब होते रहने से लोकतंत्र का भ्रम बना रहता है । ऐसे मे पूरी कोशिश की जाती है कि पत्रकार अपने वाले हो , यह पता हो पहले से कि क्या सवाल पूछे जाने है और उनका क्या जवाब दिया जाना है ।
लीजिये ऐसी ही पत्रकार वार्ता में लिये चलते है आज आपको । पूरा माहौल बना है । चाय और चमचे अपनी जगह पर मुस्तैद है ।
सुना है आप फिर अपनी पुरानी पार्टी मे लौट रहे हैं ?
सही सुना है आपने । कल तक जिस पार्टी में था मैं वहां जाकर मैंने पाया कि वहां लोकतांत्रिक मूल्यों का कोई सम्मान नहीं है ।
लोकतांत्रिक मूल्यों के सम्मान से क्या आशय है आपका ?
देखिये ! जब मैं उस पार्टी में गया था तो मुझे वो सम्मान नहीं दिया गया जितने की मुझे उम्मीद थी ।
पर आपको पूरी इज़्ज़त दी उन्होंने । टिकट दी आपके मनपसंद विधान सभा क्षेत्र से । आपको जिताने के लिये पूरी कोशिशें की गई । आप जीत भी गए हैं ।
मेरे जीतने का मुझे और मेरे क्षेत्र की जनता को क्या फ़ायदा मिलेगा ? जब वो पार्टी खुद हार गई है ।
उस पार्टी के हारने से क्या होगा ।
पार्टी के हारने से उसका घर छोटा हो जाता है । सारी खिड़कियों पर जंग लग जाती है , साफ हवा का संकट खड़ा हो जाता है । दम घुटने लगता है मेरा । और आप जानते ही है कि मुझे अस्थमा की शिकायत है ।
पर इस पार्टी से जाते समय भी आपने दम घुटने की बात कही थी ।
कही थी । यह सोच कर कही थी कि मुझे चुनाव में इस पार्टी के जीतने की कोई उम्मीद नहीं थी । पर ये जीती , चूंकि पब्लिक ने फिर चुन लिया है उसे । ऐसे में मेरा वापस लौटना लोकतांत्रिक मूल्यों का आदर करना ही है ।
वहां कष्ट क्या था आपको ?
वहां परस्पर संवाद का कोई माहौल नहीं था । बस एक बड़ा नेता है, जिसकी बात सबको माननी होती है ।
पर यह बात तो इस पार्टी में भी है ?
है । पर यहां सभी मेरे अपने है ।
यहां इज़्ज़त मिलेगी आपको ?
बिल्कुल मिलेगी । और फिर अकेला कहां लौटा हूं मैं । मेरी ही तरह परदेस मे भटक रहे चार जीते नेताओं को भी तो साथ लेकर आया हूं।
सुना है कुछ शर्तों पर घर लौटे है आप ?
ग़लत सुना है आपने । अपने घर लौटने में भी भला कोई शर्त होती है ? बस मान सम्मान मिलता रहे , इतना काफ़ी है ।
मंत्री बनेंगे आप ?
ये तो मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है , पर मैं जानता हूं वो योग्यता और वरिष्ठता का ध्यान रखते हैं ।
पर इसे घर वापसी क्यों कह रहे है आप ?
क्योंकि यही मेरा घर है । ये ज़्यादा खुला और हवादार है । अब जब तक ज़िंदा हूं मैं , यही रहूंगा ।
पर इसके पहले भी चार-छह दफा घर वापसी हो चुकी आपकी?
देखिये पुश्तैनी घर तो यही है मेरा । और फिर ऐसा कौन है जो खाने कमाने घर से बाहर नहीं ज़ाता । सब जाते है और एक दिन अपने घर लौट आते है ।
पर पिछली बार जाते समय भी को यही सब कहा था आपने ?
अरे छोड़िये ये सब आप इसी में लगे रहेंगे तो समोसे ठंडे हो सकते है । हो सकता है रसगुल्ले भी बुरा मान जायें । खास नोबीन चन्द्र दास की दुकान से मंगाये गये है ये आप लोगों के लिये ।
इस तरह पत्रकार वार्ता सम्पन्न हुई । बधाई लेने देने का सिलसिला शुरू हो चुका अब । घर वापसी से सभी को ख़ुशी होती है , लिहाज़ा नेताजी भी भारी खुश हैं ।

मुकेश नेमा

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