दुनिया के सारे धर्म लालच और डर के दो बंबुओं पर अपना तंबू ताने हुए हैं


मुकेश नेमा की कलम से
लगभग सभी का यही हाल है। लोग जीते जी मन मारे रहते है। भले-भले और चरित्रवान बने रहते हैं। इसकी वजह बड़ी सीधी सादी है। उसे पट्टी पढ़ाई गई है। हिंदू को स्वर्ग की परियों, सोमरस के प्यालो का लालच दिया गया है तो मुसलमानों को जन्नत की हूरो और शराब की नदियों के झांसे में रखा गया है। और इन गप्पों मे आकर लोग सदियों से नेक, भद्र और चरित्रवान बनने के लिये खुद से जबरदस्ती या ऐसा दिखने का ढोंग करते आये हैं।
लोगों को तमीज से रखने का एक दांव और भी है। उन्हें डराया भी गया है। जमीन पर लफड़े किये तो नरक के तेल वाले कड़ाहो में पकौड़ो की तरह तले जाने और हंटर पड़ने का खतरा तो है ही। ऐसी ही मिलती जुलती कहानी दोजख की भी है। और फिर हिंदू मुसलमान ही क्यों, दुनिया के दूसरे तमाम धर्म भी सदियों से कुछ ऐसी ही हवा-हवाई कहानियां सुना अपनी दुकानें चलाते आ रहे हैं, वे बेच रहे हैं और हम खरीद रहे हैं। और ये सिलसिला दुनिया में आखरी दो आदमियों के रहते जारी रहेगा।
ये दुनिया अपनी धुरी पर नहीं घूम रही। ये घूम रही है दो आकर्षणों पर। शराब और खूबसूरत औरतें। शराब को धन और जमीनों का प्रतीक मान लीजिये। यही दो कारण हैं जिनके कारण हम सभ्य हुए। इन्हें पाने के चक्कर में ही हमने आग और पहिये का अविष्कार किया और कपड़े पहनने सीखे। अब यदि इनको ही पाने या खोने की शर्त रख दी जायेगी तो ऐसा कौन आदमी होगा जो अपनी नाक में रस्सी बंधा बैल होने के लिये राजी नहीं हो जायेगा।
सोच कर देखें यदि मरने के बाद भी ये सुविधाये नहीं मिली, शराब और हूरें हासिल नहीं हुई किसी पुण्यात्मा को, तो वो बेचारा कैसा महसूस करेगा। या जब वो देखेगा कि उसका वह दोस्त जो हर शाम दो पैग लगाकर किसी नई खूबसूरत लड़की के साथ डिनर करता दिखता था वो भी वहां बादलों के बीच किसी परी के साथ लिपटा चिपटा खुश-खुश मौजूद है। अब ऐसे में क्या करेगा जबरदस्ती बना चरित्रवान आदमी। वो भुन भुनायेगा। कोसेगा ऐसी लंबी-लंबी छोड़ने वालो को। धर्म की किताबों पर लानतें भेजेगा।
जब उसे यह कह कर कि भाई तुझे तो इसी में मजा आता है, वहां भी कंठी माला थमा दी जाये। पीने के लिये केवल गंगाजल मिले उसे, तो ऐसे में उसकी कितनी जान जलेगी। स्वाभाविक है वो खुद को गलतफहमी में रखने वालों की मां-बहनो को शिद्दत से याद करेगा और चाहेगा कि दुबारा फिर जल्दी पैदा होने का मौका मिले ताकि वो पिछले जनम की गलतियों को दुरूस्त कर सके।
यह बात मेरी समझदानी से बाहर है कि आपकों यदि मरने के बाद मिलने वाली काल्पनिक परियों और वहां की सोमरस के लालच में ही चरित्रवान बने रहना है तो यहां जमीन की खूबसूरत औरतें और शराब की दुकाने क्या बुरी हैं।
मरने के बाद ये ईनाम मिले या नहीं किसी ने तस्दीक तो की नही अब तक। इसलिये एक अनिश्चतता के फेर में, जिसका कोई गवाह सबूत नहीं, सामने दिख रहे आकर्षण को ठुकरा कर मरने तक इंतजार करने का क्या मतलब है।
चरित्र यदि थोपी गई चीज है तो उसे उतार फेंक कर हल्का होना ज्यादा अच्छा। मजबूरी मे शरीफ होने से बेहतर होगा कि आप जीते जी मन की कर ही लें। फिर जो हो सो हो।
चरित्रवान बने रहना है तो इसलिये बनें क्योकि इसमें सुकून है। आप रात को गहरी नींद सो सकें और समाज में व्यवस्था बनी रहे इसलिये जरूरी है ये।
और फिर शराब और लड़कियों से दूर रहने भर को चरित्र समझना अपने आप में गलती है। सच बोलना, कानून और नियमों का आदर करना, अपने हिस्से का काम करना और वक्त पर करना, सामने वाले को भी इंसान मानना। ये गुण हैं जो आपको चरित्रवान की कैटेगिरी में शामिल करने के लिये काफी होगें।
दुनिया के सारे धर्म लालच और डर के दो बंबुओं पर अपना तंबू ताने हुए हैं। मेरी सलाह तो यही है कि ना डरें ना लालची बने। मेरे या किसी और के कहने में आने की जरूरत भी नही है आपको। इसके बजाय अपने निजी दिमाग का इस्तेमाल करना और कभी-कभी गलतियां करने वाला इंसान बने रहना ज्यादा अच्छी बात है।

You may have missed

ArabicChinese (Simplified)DutchEnglishFrenchGermanGujaratiHindiItalianMalayalamMarathiNepaliPortugueseRussianSpanishUkrainianUrdu

You cannot copy content of this page