घर के बाहर करोना है।

घर में साले की बहना है।

बाहर निकलो तो पुलिस

घर में क्या क्या सहना है।

सारे अस्पताल भरे पड़े है

दवा काला बाजारी घेरे है।

कोरोना से साँसें रूक रही 

आक्सीजन को चोर घेरे है।

मौतों की क्या गिनती करना

सरकारी आकड़े तो ठहरे है।

कितने जले कितने दफने

बाकी को गंगा की लहरें है।

जिन्दा है वो भी तो मरे हुए

ज़मीर बेच आत्मा से मरे है।
                              सुभाष शर्मा

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