पहलवान के दांव में उलझने लगे ज्वाइन डायरेक्टर गर्ग, वेतन निर्धारण में वसूली वाले अलग कर रहे कानूनी कार्रवाई
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संयुक्त संचालक इंदौर अनिल गर्ग
विहान हिंदुस्तान न्यूज
स्थानीय निधि संपरीक्षा (ऑडिट विभाग) के इंदौर स्थित संभागीय दफ्तर में इन दिनों अजब-गजब माहौल है। यहां संयुक्त संचालक (जेडी) अनिल गर्ग कानूनी पचड़ों में उलझते दिख रहे हैं खासकर राष्ट्रीय स्तर के एक पहलवान कर्मचारी के अलावा सेवानिवृत्त हुए अधिकारियों-कर्मचारियों के प्रकरणों में। असल में जेडी महाशय अपने स्तर पर हर कार्य करते हैं जिसमें न्यायालय की गाइडलाइन से लेकर ऑडिट विभाग के ही अफसरों के आदेशों की अवहेलना क्यों न हो। यही कारण है कि उनसे कर्मचारियों के साथ विभाग के कई सेवानिवृत्त महानुभाव भी नाराज है। कई लोग अनिल गर्ग के खिलाफ कानूनी कार्रवाई को आगे बढ़ा रहे हैं जिससे गर्ग शिकंजे में उलझते दिख रहे हैं।
शुरुआत करते हैं म.प्र. के उत्कृष्ट खिलाड़ी रह चुके रमेश पाल को लेकर जिन्हें रमेश मिस्त्री पहलवान के नाम से संबोधित किया जाता है। देश के कई नामी पहलवान जंतर-मंतर पर डटे हैं तो रमेश मिस्त्री पहलवान जेडी कार्यालय में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में डटे हुए हैं। इस पहलवान ने सेवानिवृत्त कर्मचारियों या सेवा में मौजूद कर्मचारियों-अधिकारियों की परेशानी देखकर पिछले दिनों एक कागज चस्पा कर दिया था। इस कागज में रिश्वत लेने वाले कर्मचारियों-अधिकारियों से पीडि़त लोगों की मदद करने की बात कही गई थी। बताते हैं इस बात से अनिल गर्ग इतने नाराज हो गए कि पहलवान को एक माह में अब तक 7 नोटिस जारी कर चुके हैं। पहलवान भी इस लड़ाई में कम गिरते नहीं दिख रहे हैं और उन्होंने अनिल गर्ग के खिलाफ ही कानूनी रूप से मोर्चा खोल दिया है। पहलवान ने अनिल गर्ग के उस रिकॉर्ड को मांग लिया जिसमें गर्ग का इंदौर आवास का पता हो। बताते हैं पहलवान को जीएसआईटीएस (इंजीनियरिंग कॉलेज) के गेस्ट हाउस के संबंध में जो दस्तावेज प्राप्त हुए उसमें अनिल गर्ग के वहां गेस्ट के रूप में रहना पाया गया है। इसके अलावा कृषि महाविद्यालय के गेस्ट हाउस से भी कुछ दस्तावेज मिले हैं। नियम के अनुसार ज्वाइन डायरेक्टर अनिल गर्ग को इन दोनों ही गेस्ट हाउस में गेस्ट के रूप में रहने का अधिकार नहीं है क्योंकि गर्ग की पोस्टिंग इंदौर में है। इसके अलावा एक बड़ी बात यह है कि ऑडिट विभाग इन दोनों ही महाविद्यालयों में ऑडिट करता है। जब जेडी ही यहां गेस्ट बनकर रहेंगे तो ऑडिट करने वाले कर्मठ व ईमानदार कर्मचारियों पर दबाव पड़ेगा और महाविद्यालय में यदि बेजां (अनियमित) खर्च कर रहा हो तो उसे भी नजरअंदाज करना होगा। बात यहीं नहीं रूकी है, पहलवान ने उन बिलों को सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांग लिया जो 1 करोड़ रुपये से ज्यादा के हैं। ये वे बिल है जिसपर अनिल गर्ग के हस्ताक्षर होने के बाद पास किए गए हैं। पहलवान का दावा है कि रिकॉर्ड मिलने के बाद वे सरकार के समक्ष बड़ा भ्रष्टाचार उजागर करेंगे।
सेवानिवृत्ति के बाद भी वसूली कर रहे अनिल गर्ग
यह बात सामने आ रही है कि वेतन निर्धारण के नाम पर अनिल गर्ग फाइलों में ऐसी कारकूनी कर डालते हैं जिससे कर्मचारी-अधिकारी रिटायर होने के बाद भी परेशान होता रहता है। ज्वाइन डायरेक्टर महोदय को कई बार न्यायालय के कुछ निर्णयों व सरकार के उस आदेश के बारे में भी पीडि़त कर्मचारियों-अधिकारियों ने जानकारी दी जिसमें स्पष्ट किया गया है कि रिटायरमेंट के दो साल पहले तक वसूली की हर कार्रवाई पूरी कर ली जाए। ताजा मामले ऑडिट विभाग इंदौर के ही जो सामने आ रहे हैं उसमें उपसंचालक आर.के. झंवर (रिटायर), उप अंकेक्षक रमेशचंद पाटीदार (रिटायर) और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भागीरथ (रिटायर) के वेतन निर्धारण करने के नाम पर बड़ी वसूली की जा रही है। म.प्र. सरकार के वित्त विभाग के 31 मार्च 2016 के आदेशानुसार कर्मचारी-अधिकारी से उसके रिटायर होने के 2 साल पहले ही वसूली कर ली जाए अन्यथा लापरवाही बरतने वाले पृथक-पृथक शासकीय सेवकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए उनसे वसूली की जाएगी। एक बात यह भी देखी गई है कि रमेशचंद पाटीदार के खिलाफ अनिल गर्ग ने जो 3.97 लाख रुपये की वसूली निकालकर अवकाश नकदीकरण से राशि काट ली है उसके वसूली पत्रक व आदेश पर अलग-अलग हस्ताक्षर है। आदेश पर अनिल गर्ग ने साइन किए हैं तो वसूली पत्रक पर सहायक संचालक रचना पंड्या के हस्ताक्षर हैं यानी रचना पंड्या भी इस मामले में घेरे में आ सकती है। सेवानिवृत्ति के बाद वेतन निर्धारण के नाम पर वसूली के अन्य विभागों के ढेरों मामले हैं। बताते हैं कुछ सीनियर सिटीजन ने तो सीएम हेल्पलाइन पर भी शिकायत की लेकिन उन्हें अब तक न्याय नहीं मिला है।