सिखों की नाराजगी से भाजपा के लिए आसान नहीं है पंजाब की राह


मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज


पंजाब में कैप्टन अमरिंदरसिंह के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद इस राज्य में काफी तेज राजनीतिक घटनाक्रम घटे हैं। कांग्रेस ने दलित नेता चरणजीतसिंह चन्नी को सीएम बनाया तो उसके प्रदेशाध्यक्ष नवजोतसिंह सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया। कैप्टन भी सिद्धू के खिलाफ मैदान में उतर आए और कांग्रेस से बागी हो गए। कांग्रेस की इस उथल-पुथल से भाजपा को इस राज्य में सत्ता हासिल करने की नई किरण दिखाई दे रही है लेकिन सिखों की नाराजगी से भाजपा के लिए पंजाब में राह आसान भी नहीं दिखाई दे रही है।


कैप्टन अमरिंदरसिंह ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात जरूर की लेकिन भाजपा में शामिल होने की बात को तुरंत ही दरकिनार कर दिया। अब कयास ये लगाए जा रहे हैं कि वे अपनी राजनीतिक पार्टी बनाएंगे। यदि कैप्टन अमरिंदरसिंह ने यहां अपनी पार्टी बना भी ली तब भी भाजपा को इसका फायदा मिलेगा यह दम ठोंककर कहना मुश्किल है। कैप्टन अमरिंदर व उनके कार्यकर्ता कांग्रेस के वोट कांटेंगे जरूर लेकिन ये वोट आम आदमी पार्टी व अकाली दल के वोट बैंक से भी जुड़ सकता है। आम आदमी पार्टी बिजली बिलों को लेकर दांव फेंकती तब तक पंजाब के नए सीएम चन्नी ने बिलों की माफी से अपना स्ट्रेट ड्राइव लगा डाला। अकाली दल ने दलित वोटों को हासिल करने के लिए बसपा से गठबंधन किया तो कांग्रेस ने दलित सीएम ही बना दिया। पंजाब में हर पार्टी अपनी कोशिश कर रही है लेकिन भाजपा है कि दूसरी पार्टी के बल पर ही खुद को खड़ा करने का प्रयास करने में जुटी है। जिस तेजी से दूसरी पार्टियां यहां काम कर रही है उसका फायदा उन्हें कितना मिलता है यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन भाजपा को यहां खुद की मेहनत पर ही फल मिलेगा यह समझना होगा। उसे दूसरों की जमीन के फल खाने से अब परहेज करना होगा खासकर पंजाब में जहां मतदाता पार्टियों को वोट देने से पहले काफी टटोलते हैं।


गुरुद्वारों में राजनीति से लेकर पंजाब में किसानों को पानी तक पर पहुंची बात..
भाजपा से सिखों की नाराजगी क्यों है? इस सवाल को लेकर विहान हिंदुस्तान डॉटकॉम ने सिख समाज के लोगों से ही बात की। 20 सालों तक भाजपा में रह चुके बलदेवसिंह सैनी का कहना है मेरे भाजपा छोड़ने के पीछे कई कारण हैं लेकिन खास कारण गुरुद्वारों में भाजपा की दखलअंदाजी करना है। पंजाब के रोपड़ जिले के सिंगपुरा के निवासी बलदेव फिलहाल इंदौर में निवास करते हैं। इनका कहना है गुरुद्वारों में भाजपा का अपना व्यक्ति बैठाना और फिर वहां राजनीति कराना सबसे गलत काम है। धर्म के काम में राजनीति नहीं आना चाहिए। इसके अलावा हरियाणा और पंजाब दोनों में भाजपा की सरकार थी लेकिन पंजाब को चंडीगढ़ राजधानी नहीं दी गई। पानी पंजाब का है लेकिन वहां के किसानों को नहीं मिलता और हरियाणा, दिल्ली आदि को पहुंचाया जाता रहा है। किसान आंदोलन में करीब 600 किसान मरे है जिसमें से 500 सिख हैं लेकिन केंद्र की सरकार है कि कृषि कानून पर दादागिरी कर रही है। इसी तरह दारासिंह गिद्दे का कहना है पंजाब को बदनाम करने में भी सबसे बड़ा हाथ भाजपा का ही है। भाजपा ने पंजाब को इस तरह से पेश किया कि वहां हर युवा नशे में ही जीता है। यदि आपको किसी राजनीतिक पार्टी पर आक्षेप लगाना है तो आप उसपर प्रहार करों लेकिन पंजाब को उड़ता पंजाब बनवा दिया। पंजाब की जनता बुद्धिमान और मेहनती है। जब डॉ. मनमोहनसिंह प्रधानमंत्री थे तब महंगाई को लेकर नरेंद्र मोदी इतने फिकरे कसते थे लेकिन आज देखों तो पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा महंगाई बढ़ी है। सिख समाज के लोग अधिकांश ट्रांसपोर्ट लाइन में और खेती किसानी में ही हैं और दोनों की ही केंद्र सरकार ने गत बना दी है। पेट्रोल और डीजल का लगभग एक ही मूल्य हो गया है और दोनों ही अब तक की सबसे ऊंची दरों पर बिक रहे हैं। किसानी के हाल आप देख ही रहे हो, सरकार ने उन्हें सड़कों पर बिठवा दिया है। ऐसे में भाजपा को कौन पसंद करेगा?

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