म.प्र. के कई कार्यालयों में पेंशन का कटौत्रा नहीं हो रहा, पुलिस व शिक्षा विभाग के ज्यादा मामले
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मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज
मध्यप्रदेश में वर्ष 2005 या उसके बाद लगे सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना की मांग कर रहे हैं जिन्हें किसी न किसी तरह सरकारी तंत्र रोक रहे हैं। रविवार को भोपाल में इसके लिए होने वाली रैली व प्रदर्शन को पुलिस ने इसलिए अनुमति नहीं दी क्योंकि उसे जानकारी मिली थी कि आयोजकों की सोच से पांच गुना ज्यादा लोग इस प्रदर्शन में शामिल होने वाले हैं। आपको बता दें पुलिस विभाग ने ये प्रदर्शन तो रूकवा दिया लेकिन यही पुलिस विभाग है जो अपने ही कई कर्मचारियों की पेंशन का अंशदान न तो काट रहा है और न ही सरकार का अंश उसमें मिला रहा है। शिक्षा विभाग में भी इस तरह के ढेरों मामले हैं और इसका खुलासा केंद्र सरकार की जांच एजेंसी सीएजी ने ही किया है।
सीएजी की हाल ही में आई रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि पुलिस, शिक्षा व जनपद पंचायतों में राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के तहत कटौत्रा न तो किया जा रहा है और ही सरकार का अंश इसमें दिया जा रहा है। साफ्टवेयर की गड़बड़ी के कारण ऐसा हो रहा है। इसका कर्मचारियों के वेतन पर खासा प्रभाव पड़ेगा। उन्हें सरकार न तो पुरानी पेंशन योजना में शामिल कर रही है और जो पेंशन योजना के लिए वे पात्र है उसमें भी इनके साथ न्याय नहीं हो रहा है। सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार सेनानी हॉक फोर्स भोपाल की 2019-20 की लेखा परीक्षा वर्ष में इस बात का खुलासा हुआ कि विभाग ने 787 कर्मचारियों की पेंशन की राशि नहीं काटी और न ही सरकार ने इसमें अपना अंश मिलाया है। इसके अलावा पुलिस अधीक्षक खंडवा के 474, पुलिस अधीक्षक बुरहानपुर के 407, विकास खंड शिक्षा अधिकारी पथरिया, जिला दमोह के 14, विकासखंड शिक्षा अधिकारी मालथौन जिला सागर के 30 और जनपद पंचायत गोटेगांव के 60 कर्मचारियों के साथ ये अनियमितता की गई है। आपको बता दें सीएजी किसी भी विभाग की जानकारी ले लेती है जिसकी जांच करती है। संभव है कई अन्य विभागों में इस तरह की गड़बड़ियां सामने आए जिसकी जांच सीएजी नहीं कर सकी हो। कर्मचारी अपने विभाग से स्वयं की जानकारी ले लें ताकि उनके साथ भी कुछ ऐसा हो रहा हो तो समय रहते इसमें सुधार किया जा सके।
सरकार को पुरानी पेंशन की मांग से भय
यह बात सामने आ रही है कि पुरानी पेंशन योजना की बहाली के स्वर काफी तेजी से उठ खड़े हुए हैं और शिवराज सरकार इसे लागू नहीं करना चाहती। म.प्र. के पड़ोसी राज्यों राजस्थान व छत्तीसगढ़ ने इस पेंशन योजना को लागू कर दिया है जिसका दबाव भी शिवराज सरकार पर आ रहा है लेकिन वह किसी भी तरह इससे बचना चाहती है। रविवार (13 मार्च) को यदि भोपाल में प्रदर्शनकारी इकट्ठा होते तो इनकी संख्या 25 हजार से ज्यादा होती जो पुलिस खुद अपनी रिपोर्ट में मान रही है। आयोजकों ने अनुमानित संख्या 5000 ही रखी थी। पुलिस ने इसे आधार बनाने के साथ फायर सेफ्टी को भी निशाना बनाकर आयोजन को स्थगित किया। देखा जाए तो पुलिस अपने स्तर पर फायर सेफ्टी का प्रबंध कर सकती थी। संभावना यह जताई जा रही है कि जल्द ही पुरानी पेंशन योजना को लेकर प्रदेशभर में जिला स्तरों पर बड़े-बड़े आयोजन होंगे ताकि सरकार इन कर्मचारियों की मांग मान ले। कई भाजपा विधायक भी इस पेंशन योजना को समर्थन दे चुके हैं।