प्रेरणा देने के मामले में कोई भी हिंदुस्तानियों का मुकाबला नहीं कर सकता


मुकेश नेमा की व्यंगात्मक कलम से
पूरी दुनिया में कहीं और के रहने वाले प्रेरणा देने के मामले में हिंदुस्तानियो का मुकाबला नहीं कर सकते। यहां हर आदमी प्रेरणास्रोत हुआ पड़ा है। छलछला कर बहती है हमारे यहां प्रेरणायें। इतने सारे प्रेरणास्त्रोत है हमारे यहां की प्रेरणाओं की बाढ़ आई पड़ी है।
स्थिति इतनी गंभीर हो चली है कि आदमी सुबह आईने में उठकर अपनी शकल देखता ही इसलिये है कि वो प्रेरणास्त्रोत लग भी रहा है या नहीं। भरोसा दिलाता है वो खुद को कि वो प्रेरणादायी जैसा दिख रहा है और घर के बाहर जितने भी है वो उससे प्रेरणा लेने के लिये मरे जा रहे हैं। हमारे यहां प्रेरणा देने वाले ज्यादा है और लेने वाले कम। देने वाले टूटे पड रहे हैं और लेने वाले भ्रमित हैं। ऐसे में प्रेरणा देने के इलाके में भी आजकल भारी कॉम्पीटिशन हो गया है। आदमी को अपने हुनर को मांजना पडता है। चमचमाता हुआ दिखेगा तभी तो लोग प्रेरणा लेने के लिये राजी होगें। आप एक से अधिक विधाओं के प्रेरणास्त्रोत हो तो और अच्छा।

मुकेश नेमा


नौकरी पेशा आदमी को अपने सीनियर्स से प्रेरणा लेनी ही पडती है। मैंने भी ली। कुछ साल पहले रिटायर हुये हमारे एक बडे अफसर सुबह टाइम से आफिस आते थे। दिनभर चपरासी फाइले लाता था। फाइलों की तहे जमती जाती थी। वे विचारमग्न हो उन्हें देखते रहते थे। आने वालों पर फाइलो के ढेर का बड़ा सकारात्मक प्रभाव पडता था, खासकर उस पर जिसकी फाइल इस ढ़ेर मे दबी सांस ना ले पा रही हो। ये साहब शाम को सात बजे से काम करना शुरू करते थे और ग्यारह बजे रात तक निष्ठापूर्वक काम करते रहते थे। काम करने का तरीका भी बडा सकारात्मक था इन साहब का। जो फाइल खुलती, खुली ही रहती। दस ड्रॉफ्ट बनते, फटते। संबधित जिले के अफसर को फोन होता फिर। उसे बताया जाता कि फाइल में कितनी गलतियां है। उलाहना दिया जाता कि तुम बडे भाई का ध्यान ही नहीं रखते। इनकी इस कड़ी मेहनत से कमिश्नर सदैव प्रभावित रहे। ..और ये काफी यश कमा कर रिटायर हुये। मैं उनसे प्रेरित हूं और अपनी तरफ से उनके पदचिन्हो पर चलने की पूरी कोशिश करता हूं।
हमारे एक कम पढ़े लिखे शराब ठेकेदार इतने ज्यादा स्कूल खोल चुके कि वो अफसरों को शराब के ठेके लेने के फायदे बताने के अलावा स्कूल शुरू करने की प्रेरणा देने के लिये तत्पर हैं। उनसे प्रेरणा लेकर बहुत से पुराने अफसर अपनी जमा पूंजी गंवा चुके और अब नये अफसरो की बारी है।
मेरे बचपन के शहर के एक नेताजी हैं। अपनी जवानी के दिनों में लोगों को डंके की चोट पर जुंआ खिलवाते रहे। अवैध शराब बेचने में भी उनकी भारी विशेषज्ञता थी। अपने इन्ही सद्गुणों के कारण वे भारी बहुमत से विधायक चुने गये। पर सम्मानीय होने के बावजूद उन्होंने अपने मूल पेशे से मुंह नहीं मोड़ा। अपने राजनैतिक दल के युवाओ के लिये प्रेरणास्त्रोत बने। शराब और सट्टे में सहयोगियों की मेहनती जमात तैयार की। और शहर के शराब के सारे वैध ठेके भी अपने नाम करने में सफल हुये। मैं उनसे भयकंर प्रेरित हूं, ..पर अफसोस मैं उनसा हो नहीं सका।
ऐसे ही सज्जन और थे हमारे मौहल्ले में। छुट्टनप्रसाद। यदि आप जेब काटने में दिलचस्पी रखते हों तो इनसे बेहतर प्रेरणास्त्रोत ढूंढना मुश्किल है। आदमी यदि गलती से भी इनके हाल पूछ बैठे तो ये घूम फिर कर जेब काटने की प्रेरणा देने पर उतारू हो जाते थे। जेब कैसे काटी जाये, किसकी काटी जाये, किस कंपनी की ब्लेड पर भरोसा किया जा सकता है, आदमी कहां कहां रूपया छुपाने का शातिरपना करता है, जेब काटते वक्त क्या क्या सावधानियां रखी जाना जरूरी होती हैं, पकडेÞ जाने पर कैसे बचा जा सकता है, पुलिस से सांस्कृतिक संबध कैसे स्थापित किये जायें वगैरा वगैरा। छुट्टनप्रसाद ने प्रेरणा दे देकर सैकड़ो की तादाद में होनहार शिष्य तैयार किये और गुरूदक्षिणा के भरोसे ही बुढापा काट गये।
एक मिलने वाले और थे मेरे। मित्र ही थे। जवान होने के पहले ही लड़कियां छेड़ने की कला में पारगंत हुये। वे इसी क्षेत्र में नाम कमाते और मेरे अलावा औरो के भी प्रेरणास्त्रोत हो पाते इसके पहले ही एक शरीफ लड़की के उद्ंड बाप के द्वारा कूट दिये गये। मेरा शहर छूटा तो उनसे मिलने जुलने और प्रेरणा लेने की गुंजाईश खत्म हुई। सालो बाद मैंने उन्हें एक बडे से शाही पंडाल में सिल्क का कुरता व धोती में नैतिकता और सभ्यता पर प्रवचन देते बरामद किया। हजारो लोग पूरी श्रद्धा से उनसे प्रेरणा ले रहे थे। उसकी विद्वता, सम्पन्नता और अति सुंदर शिष्याओं से मेरा उससे प्रभावित होना वाजिब था। हम लोग गले मिले और यह तय किया गया कि मैं रिटायर होकर उससे कायदे से प्रेरणा हासिल करूंगा।
प्रेरणा लेने का मन हो तो देने वालों की कमी है नही। मरे जा रहे हैं लोग प्रेरणा देने के लिये। बस आसपास देखने की जरूरत है हमें।

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