भगवान श्रीकृष्ण को मोरपंख क्यों लगाते हैं?

विहान हिंदुस्तान धर्म

 भगवान श्री कृष्ण सब देवताओं से ज्यादा श्रंगार प्रिय हैं। उनके भक्त हमेशा उन्हें नए कपड़े और आभूषण पहनाते हैं। कृष्ण गृहस्थी और संसार के देवता हैं। कई लोगों का सवाल यह रहता है कि भगवान श्रीकृष्ण तरह-तरह के आभूषणों के साथ मोर मुकुट धारण करते हैं, उनके मुकुट में हमेशा मोर पंख क्यों लगा रहता है?

इसका कारण यह है कि मोर अकेला ही ऐसा प्राणी है जो ब्रह्मचर्य का पालन करता है। जब मोर प्रसन्न होता है तो वह अपने पंख फैलाकर नाचता है और जब नाचते-नाचते उसकी आंखों से आंसू गिरते हैं तो मोरनी उन आंसुओं को पीती है इससे ही उसका गर्भधारण होता है। मोर में कहीं भी वासना लेश मात्र भी नहीं है। जिसमें वासना लेश मात्र भी नहीं तो भगवान उसे अपने शीश पर धारण कर लेते हैं। वास्तव में श्री कृष्ण का मोर मुकुट कई बातों का प्रतिनिधित्व करता है। वह कई तरह के संकेत हमारे जीवन में लाता है। अगर इसे ठीक से समझा जाए तो श्री कृष्ण का मोर मुकुट हमें जीवन की कई सच्चाई से अवगत कराता है। दरअसल मोर का पंख अपनी सुंदरता के कारण प्रसिद्ध है। मोर मुकुट के जरिए कृष्ण यह संदेश देते हैं कि जीवन में वैसे ही रंग हैं जिसे मोर के पंख में हैं। कभी-कभी बहुत गहरे रंग होते हैं यानी दुख व मुसीबत ..और कभी एकदम हल्के रंग जैसे खुशी और समृद्धि। जीवन से जो मिले उसे अपने सिर पर रखना चाहिए और उसे सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए।  

तीसरा कारण यह भी है कि मोर मुकुट से श्री कृष्ण शत्रु और मित्र के प्रति समभाव रखने का संदेश देते हैं। बलराम जो शेषनाग का अवतार हैं वे श्रीकृष्ण के बड़े भाई हैं। वहीं मोर जो नागो के शत्रु भी हैं उसी मोरपंख को श्रीकृष्ण अपने सिर पर रखते हैं। यही विरोधाभास श्रीकृष्ण के भगवान होने का प्रमाण भी है कि वे शत्रु और मित्र में समभाव रखते हैं। ऐसा कहते हैं कि राधा-रानी के महल में मोर थे और वे उन्हें नचाया करती थी। जब ताल ठोंकते तो मोर भी मस्त होकर राधा-रानी के इशारों पर नाचने लगते थे। एक बार जब मोर मस्त होकर नाच रहे थे और श्री कृष्ण वहां पहुंच गए। तभी मोर का एक पंख गिरा तो श्रीकृष्ण ने अपने सिर पर लगा लिया। भगवान श्रीकृष्ण ने इसे राधा-रानी का प्रसाद समझकर उसे अपने शीश पर धारण कर लिया।

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