रोहिंग्या मुसलमानों पर फैसले से खुलेंगे कई पत्ते
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म्यांमार से भारत व बांग्लादेश में घुसे रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर पूरे विश्व की नजरें लगी हुई है। बांग्लादेश ने तो एक टॉपू पर इन्हें बसाना शुरू कर दिया है जो कुछ ही सालों पहले समुद्र में से निकला था। हालांकि इन लोगों को टॉपू पर बसाने को लेकर भी कई देश बांग्लादेश की आलोचना कर रहे हैं हालांकि बांग्लादेश इसकी फिक्र नहीं कर रहा है।
भारत में भी रोहिंग्या मुसलमानों की बड़ी आबादी घुस आई है जो जम्मू तक बस गई है। पिछले आठ-नौ सालों से ये लोग जम्मू में अपने मोहल्ले बनाकर रहने लग गए हैं। आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर चल रही तैयारियों में जब जातिगत वोटों की बात आई तो रोहिंग्या का मसला समझ आया। अब इन रोहिंग्याओं को लेकर छानबीन शुरू हो गई है जिसने कई चौंकाने वाले तथ्य सामने लाए हैं। कई रोहिंग्याओं के पास तो भारत में बना आधार कार्ड तक मौजूद है। कुछ यूनाइटेड नेशन का कार्ड लेकर घूम रहे हैं जिसकी अवधि समाप्त हो गई है। अब इन्हें जम्मू में ही बनाए गए एक कैंप में शिफ्ट किया जा रहा है। आगे इनका क्या किया जाएगा इस बारे में सरकार ने कोई खुलासा नहीं किया है। यह बात जरूर है कि करीब बारह राज्यों को पार करके ये रोहिंग्या कैसे जम्मू तक पहुंचे इसकी पड़ताल की जा रही है। इन्हें यहां बसाने के पीछे कोई योजना है इसे भी देखा जा रहा है क्योंकि जम्मू हिंदू बहुल है और यहां यदि इन रोहिंग्याओं के वोटर कार्ड बन गए तो राजनीतिक समीकरण बदलने में समय नहीं लगेगा। यह बता दें कि कुछ रोहिंग्याओं के वोटर आईडी कार्ड बनने की बात भी सामने आ चुकी है। भारत में करीब पचास हजार रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं। इनका भारत में आगमन तो वैसे 1990 के बाद से ही शुरू हो गया था लेकिन कुछ सालों पहले म्यांमार में इनपर बढ़ रहे हमलों के बाद इनका वहां से पलायन बड़े पैमाने पर शुरू हो गया था। जम्मू में रोहिंग्याओं को लेकर जो धर-पकड़ शुरू हुई तो वह एक राज्य तक तो सीमित रह नहीं सकती क्योंकि इससे केंद्र सरकार के कामकाज पर भी सवाल उठने लगेंगे। सवाल उठने के पीछे कारण जम्मू-कश्मीर राज्य है जहां कुछ समय बाद विधानसभा चुनाव होना है।
अब यदि दूसरे राज्यों से भी सरकार रोहिंग्याओं को एक जगह इकट्ठा करती है तब भी आवाज उठेगी और यदि ऐसा नहीं करती है तब भी सवाल खड़े होंगे। ऐसे में नरेंद्र मोदी सरकार को जवाब देना भारी पड़ सकता है। यदि 50 हजार रोहिंग्याओं को लेकर सरकार फैसला लेती है तो देश में बसे तकरीबन तीन करोड़ बांग्लादेशियों को लेकर भी सरकार को जवाब देना होगा। बांग्लादेशियों को वापस भेजने को लेकर जब मोदी सरकार ने बयान दिए थे तो बांग्लादेश से भारत के संबंधों में कुछ कड़वाहट आई थी। इसके बाद बांग्लादेशियों का मुद्दा दबकर रह गया या फिर उसे राजनीतिक बहस के रूप में लेकर कुछ ही मिनटों में समाप्त भी कर दिया जाता है।
रोहिंग्याओं को लेकर मोदी सरकार को तो अपने पत्ते खोलना ही है और जब वे अपने पत्ते खोलेगी तो विपक्ष के पत्ते स्वत: ही खुल जाएंगे क्योंकि उन्हें भी अपनी राय तो देना ही होगी। इससे सरकार के फैसले और विपक्ष की राय को लेकर जनता अपना मत पेश करेगी जो आने वाले समय के लिए भारतीय राजनीति के लिए काफी महत्वपूर्ण होगा।