समधन तो चाकलेट्स और ड्राइफूड्स के उस डोंगे की तरह है जो दांत गंवाने के बाद प्राप्त होता है

मुकेश नेमा

मुकेश नेमा की व्यंगात्मक कलम से

सूरत से आई खबर है ये। एक होने वाले समधी अपनी होने वाली समधन को लेकर फ़रार है । चूंकि लड़के का बाप और लड़की की मां दोनों ढूंढें से नहीं मिल रहे ऐसे में शादी अनिश्चित काल के लिये टाल दी गई है ।
तूल देने जैसी बात लगती नहीं मुझे ये। ऐसा सोचने की वजह भी है मेरे पास। पहली तो यही कि ये तकनीकी रूप से समधी समधन वाला क़िस्सा है ही नहीं। दोनो सौ साल पहले से और इस जन्म में भी बचपन से प्यार में थे । प्यार में थे इसलिये ब्याह कर नहीं सके आपस में । ब्याह नहीं कर सके इसलिये प्रेम जीवित बना रहा उनका । दोनो ने और किसी से ब्याह किया । हमारे देश में ब्याह का प्रेम से कोई लेना देना होता नही । पर ब्याह करने वालों के बच्चे होते ही हैं । बच्चे होते हैं और होकर बड़े भी हो जाते हैं। बड़े हो चुके बच्चों का भी ब्याह करना पड़ता है । और ऐसे में यदि आपके बचपन वाले प्यार के बच्चे भी बड़े हो चुके हो तो उसके घर अपने बच्चों का रिश्ता भेजना समझदारी ही कहा जायेगा ।
यह मामला चूंकि ऐसा ही था। इसलिये परस्पर समधी समधन होना तय किया उन्होंने । समधी समधन को मिलने और बतियाने की सुविधा प्राप्त होती है। ऐसी गुलाबी,अनुकूल परिस्थितियों मे कभी लगा होगा उन्हें कि जवानी में जो चूक हो गई थी उसे दुरुस्त किया जा सकता है ।
पर मेरा मानना है कि ये जोडा अधीर था। बच्चों के ब्याह होने तक इंतज़ार कर लेना बेहतर निर्णय होता। और फिर दुखते घुटनों की उम्र में भागने की ज़रूरत ही नहीं थी। बच्चो के गृहस्थाश्रम की उम्र होते होते आदमी की उम्र वानप्रस्थ जैसी हो ही जाती है । इनकी भी हो ही चुकी होगी, ना हुई होगी तो अगले दो पांच साल में हो जायेगी। ऐसा होते ही पवित्र और सात्विक विचार हिलोरे लेने लगते है मन में । ऐसा इसलिये होता है क्योकि सात्विक होने का कोई विकल्प उपलब्ध होता नहीं। आप चाहकर भी अपवित्र नहीं हो सकते । यह उम्र का दुखदाई संक्रमण काल है । बच्चों की शादी के कुछ सालों बाद समधन से उसकी सेहत के हाल चाल ही पूछे जाने की नौबत शेष होती है वैसे तो। पर यदि यह जोड़ा सब्र किये रहता, बच्चों की जोड़ी बन जाने देता तो उनके भावी रिश्ते में हंसने बोलने जैसी, मन को समझाने जैसी अन्य क़िस्मों की पर्याप्त संभावनायें थी।
ऐसे में परम्परागत रूप से होने वाले समधी समधन इसे आपदा में अवसर की तरह ना लें। सूरत वालो की बात अलग है। आपको यह याद रखना है कि ऐसा करना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। आप अनंत काल तक भागे नहीं रह सकते । भागने वालो को लौटना ही होता है । लौटकर हो चुकी बीबी और शादी लायक़ बच्चों को भी अपनी सूरत दिखानी ही होती है। ऐसे में लड़के की बारात लगते वक्त समधन जो मीठी मीठी गालियां देती है अपने समधी को, पूरे प्यार से जो छप्पन भोग परोसती है उन्हें ही काफ़ी मान लें । सब्र करें । इसलिये करे क्योंकि समधन, चॉकलेट्स और ड्राई फ्रूट्स से भरे उस डोंगे जैसी होती है जो दांत गंवाने और शुगर पेशेंट होने के बाद हासिल होता है । सब्र इसलिये भी किया जाना चाहिये क्योंकि सांई बाबा बता गये है कि सब्र करने वाले सुखी रहते हैं ।

मुकेश नेमा

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