संस्कार…

विश्व में कोरोना संकट फैला हुआ था। ऐसे में ब्लैक और व्हाइट फंगस भी अपना आतंक फैलाने लगी। हास्पिटल में सिर्फ मरीज ही दिखते थे। अटेंडेंट तो बिमारी के भय से वहाँ रुकने में घबराते थे।
ऐसे समय में रात्री में शहर के प्रसिद्ध समाज सेवक उत्तम जी अपने पिता को कोरोना के कारण अस्पताल में भरती करवा कर शीघ्रता से बाहर निकल रहे थे।उनकी नजर वेटिंग रूम में बैठे एक युवक पर गई उसे देख कर उन्हें वह पहचाना सा लगा।

सुभाष शर्मा


ध्यान से देखा तो अरे ये तो मेरे पुत्र मनीष का मित्र नितिन है। ये जब अमेरिका मे नौकरी करने जा रहा था तो मैने कितना समझाया था कि अपने देश में ही कोई काम करलो वहाँ जा कर लोग वहीं के हो जाते है। संस्कार खराब हो जाते है। पर ये माना ही नहीं मुझे समझाने लगा कि संस्कार तो वो बीज होते है जो माता पिता बोते है। ये आदमी के विवेक पर निर्भर रहते है। ये आपकी बुद्धि पर निर्भर करता है कि आप कैसे संस्कार लेते है। मेरे माता पिता ने मुझे अपनी संस्कृति का अच्छा ज्ञान दिया है मैं कभी भी किसी हालत में अपने संस्कार से समझौता नहीं करूँगा।और ये महाशय अमेरिका चले गए और मेरे पुत्र मनीष ने मुम्बई से एक्सपोर्ट का व्यापार शुरू कर दिया। ये सिर्फ अमेरिका के एक शहर में बस कर कोई नौकरी करने लगे।
और मेरा बेटा पूरी दुनिया घूम रहा है।

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उत्तम जी उसके पास पहुचकर बोले हाय हाउ आर यू!पहचाना मुझे! नितिन एकदम सकपका कर खड़ा हुआ। थोड़ा पीछे सरक कर सोशल डिस्टेंस बनाते हुए झुक कर बोला चाचा जी सादर चरण स्पर्श।उत्तम जी को नितिन के सर के पिछले हिस्से में एक चोटी दिखी। उत्तम जी मन में सोच रहे थे कि ये अमेरिका गया था या हिमालय के किसी आश्रम में रह रहा है।
नितिन ने पूछा ,चाचा जी आजकल मनीष कहाँ है?
बेटा एक्सपोर्ट का बिजनेस है विदेशों में आता जाता रहता है, विलायती लड़की से शादी कर ली है और मुम्बई में रहता है।कुछ समय पहले तुम्हारी चाची का स्वास्थ्य काफी खराब रह कर दो माह पूर्व उनका देहांत हो गया था। तब मनीष ने तेरहवीं वाले दिन विदेश मे होने वाली एक बड़ी डील में पत्नी को अकेले भेज कर के अपनी माताजी का क्रियाकर्म पूरी श्रद्धा के साथ निपटा कर वापस मुम्बई चला गया।ये संस्कार वाली बात है।
तुम आजकल कहाँ पर हो, इसी शहर में काम कर रहे हो क्या? हास्पिटल में कैसे आए हो? प्रश्नों की बौछार लगा दी।नितिन ने सभी बातों का शांति से सक्षिप्त में उत्तर दिया। चाचा जी मैने अमेरिका की नागरिकता ले कर वहाँ एक मकान खरीद लिया है, मेरी माँ को कोरोना होने के बाद मै यहां आकर उनके स्वस्थ होने पर वापस जाने के टिकट करवा चुका था कि अचानक उन्हें ब्लेक फंगस हो गया।मैने टिकिट निरस्त करवा लिये है। मै यहाँ अस्पताल में माँ के साथ रह रहा हुँ और मेरी पत्नि अमेरिका में घर की व्यवस्था देख रही है माताजी के स्वस्थ्य होने के बाद मैं उनको भी कुछ माह के लिए मेरे साथ ले जांउगा।
चाचाजी विदा होते समय नमस्कार स्वीकार करके घर के लिए निकल पढ़ें।रास्ते में वे संस्कारो के बारे में सोच रहे थे।अब संस्कार समझने की उनकी बारी थी।

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