सुभाष शर्मा

हवा भी अब थमने लगी
साँसें भी यू बहकने लगी।
इंसा ने कैसा करा करम
धरा भी अब थकने लगी।

वनों का विध्वंस किया कैसा
हरियाली करना पड़े तलाश।
पेड़ो की छाया को तरस रहे
पशु पक्षी इन्सान हुए निराश।

श्रष्टी का दोहन कर कर के
धरती को नीर हीन कर डाला।
हरे भरे पेडों को काट काट
इस धरा को बंजर बना डाला।

औधोगीकरण का दौर ला
प्रदूषण यहाँ ऐसा फैलाया।

वातावरण में जहर घोल के
वायु को तुमनें विष बनाया।

पीने को बचा जहरीला जल
खाना रासायनिक कर डाला।
हवा में फैला कर धुआं धुआं
तुने ही साँसों पर डाका डाला।

फसल बता आर्गेनिक अब
पानी भी शीशी में बेच रहा।
साँसों को भी तूने रोक दिया
टंकी में भर साँसें भी बेच रहा।
वाह रे वाह बेईमान व्यापारी
इन्सां की जिन्दगी से खेल रहा।


 सुभाष शर्मा

You may have missed

ArabicChinese (Simplified)DutchEnglishFrenchGermanGujaratiHindiItalianMalayalamMarathiNepaliPortugueseRussianSpanishUkrainianUrdu

You cannot copy content of this page