बेवकूफी तो पांव फैलाकर झपकी लेने का लाइसेंस है

मुकेश नेमा

बेवकूफी में, बेवकूफ होने में, बेवकूफ बन जाने में बड़े मजे है। यह ठलुआई करने का, पाँव फैला कर झपकी लेने का लायसेंस है ।
बेवकूफ कभी भी तारीफों , पैसे और इज्जत की परवाह नहीं करता और कोई बात मन से नहीं लगाता वो इसलिये दुख भी कम ही होता है उसे।
यह कहावत कि बेवक़ूफ़ों के बल पर चतुर राज करते है, सिरे से गलत है । दरअसल यह कहावत सर के बल खड़े कर देने लायक़ है । राज करने के लिये चतुर होने होने के बजाय किसी करोड़पति की, किसी बड़े नेता की औलाद होना ही काफ़ी होता है । आप दुनिया की किसी भी फ़ील्ड का मुआयना करके देख लें। आपको उसके टॉप पर रखी लेदर चेयर पर कोई बेवकूफ ही क़ाबिज़ मिलेगा ये मेरी ग्यांरटी है । लॉटरी यह देखकर नहीं खुलती कभी कि आपने ग्रेजुएशन मे कितने परसेंट हासिल किये है । लक्ष्मी हमेशा से उल्लुओं पर मेहरबान होती आई है । कुल मिलाकर इस मामले मे बेवकूफ होना ज्यादा फ़ायदेमंद है ।
एक और कहावत पर आईये अब ! इस कहावत से मैं इत्तफ़ाक़ रखता हूं। हूरो पर तो कॉपीराइट होता है लंगूरों का। यदि दुनिया आपको चतुर मानती है तो पूरा खटका है कि आपके हिस्से में कोई सूखी सी, होनहार चश्मेवाली ही आये ।
अब चतुर होने के नुक़सान पर भी निगाह डाल लीजिये। हमेशा जयजयकार के लिये मरा जाता आदमी होता है वो। और इसकी वजह से हमेशा काम के बोझ से गधों की तरह लदे हुये चतुर कभी जिन्दगी के मजे लूट ही नही पाते। चतुर लोगों की पूरी जिंदगी बेवकूफो की सवारी हो जाने में, उनकी चाकरी करने में ही बीतती है !
दुनिया उम्मीद लगाती है चतुर लोगो से। चतुर आदमी पूरी जिंदगी वज़नदार उम्मीदों से दबा रहता है। साँस भी नही ले पाता और घुट घुट कर मरता है ।
चतुर आदमी सुबह से शाम इसी टेंशन मे रहता है कोई बेवक़ूफ़ ना बना जाये उसे जबकि बेवक़ूफ़ निश्चिंत बना रहता है इस मामले में। चतुर और चतुर होने की जद्दोजहद मे लगा रहता है बेवक़ूफ़ को इस मामले में कभी ख़ून नही जलाता।
महात्मा बुद्ध ज्ञान को दुख की वजह ऐसे ही नही बता गये। चतुराई डरपोक बनाती है आपको। फ़र्ज़ कीजिये कोई बदमाश घर आकर ललकार रहा है आपको। आप इंडियन पैनल कोड पढ़ने लगेंगे पर आपकी जगह कोई बेवकूफ होता तो वो ऐसे हालात में क्या करता। वो डंडा निकालता और उस बदमाश को उसके घर तक खदेड़कर आता। मुसीबत हो तो बेवकूफो से मदद माँगना हमेशा ठीक होता है ।
चतुर आदमी किसी भी काम को करने के पहले सौ बार सोचता है। बहुत सारे किंतु परंतु रास्ता रोक लेते है उसका। वह वक्त जाया करता है इसमें और जब तक वह किसी नतीजे पर पहुँचे कोई बेवकूफ क़िला फ़तह कर उस पर अपना झंडा फहरा चुका होता है।
मुझे पढकर यदि आप बेवक़ूफ़ी के पाले मे कूदने की सोच रहे है तो अच्छी बात है पर सही बात तो यह है कि बेवक़ूफ़ी नैसर्गिक गुण है इसे कोशिश करके हासिल नही किया जा सकता।
ग़लती से चतुर होकर पैदा हो चुके हों आप तो हद से हद आप बेवकूफ होने की एक्टिंग कर सकते है। जब तक आपकी ये चाल चल जाये आप ऐडा बनकर पेड़ा खा भी सकते है। पर आप अपना यह भेद कब तक छुपा सकेगे ये आपकी किस्मत पर है ।
फिर भी चूँकि आज एक अप्रैल है इसलिये किसी को बेवकूफ बनाने के चक्कर में मत पड़िये, बन जाईये, टेम्प्रेरी तौर पर ही सही पर बन जाईये । असली मज़ा इसी मे है ।

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