राजेश बैंक की शाखा में अपनी पेंशन के भुगतान लेने के लिये खड़ा था। इंटरनेट में समस्या आने के कारण ए.टी.एम. कार्य नहीं कर रहे थे। राजेश चैक काउंटर पर दे कर कैशियर की तरफ देख रहा था। इस कैशियर ने राजेश के बैंक की इसी ब्रांच से रिटायर होने के छह माह पहले ही ज्वाइन किया था। कैशियर से नजर मिलते ही राजेश ने मुस्कुरा कर हाथ उठाया। कैशियर ने कहा चैक आ जाने दो फिर पेमेंट देता हूं। राजेश शांत मन से बैठ गया।राजेश के दिमाग में पच्चीस वर्ष पुरानी घटना घूम रही थी। राजेश घर से बैंक आया ही था, आज उसे लंच विराम में बच्चों की फीस जमा करने के लिए स्कूल भी जाना था।उस समय सारा कार्य मेन्युअल होता था लेज़र बुक में चैक पोस्ट करके पेमेंट स्क्रोल में चढा कर भुगतान के लिये भेजते थे। उस दिन एक खाता धारक बड़ी बैचेनी से बचत खाते के काउंटर पर खड़ा था, उसकी आंखों से घबराहट दिख रही थी।राजेश ने पूछा इतने बैचेन क्यों हो। खाता धारक ने पूछा लेजर कब तक काउंटर पर आएंगे, कैश कितनी देर से खुलेगा। राजेश ने फिर पूछा क्या समस्या है। वो बोला पत्नी को हार्टअटैक आया है अस्पताल मे भरती करके आया हूं तुर॔त तीस हजार रूपए और जमा करना है ताकि उसका आपरेशन हो जाए शेष रकम तो मैं जमा कर आया हूं। राजेश ने उसके चैक पर नगद भुगतान के लिए आवश्यक दस्तखत लिये और घर से बच्चों की फीस जमा करने के लिए लाए हुए तीस हजार रूपए उसको दे कर तुरंत अस्पताल भेजते हुए कहा कि कैश खुलने पर मैं आपके चैक का भुगतान ले लूंगा।दूसरे दिन वहीं खाताधारक बैंक में मिठाई ले कर आया सबको बाटते हुए बैंक कर्मियों की तारीफ करते हुए बार बार कह रहा था कि ये होती है व्यक्तिगत बैंकिंग।अगर कल राजेश बाबू कैश खुलने का इंतजार करते तो शायद कल ना जाने क्या हो जाता।राजेश आज बैंकिंग में अंतर महसूस कर रहे थे।
                               – सुभाष शर्मा

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