अरे अंकल.. सिगरेट है क्या?

लड़की तुम यहां थाने पर इसलिए लाई गई हो क्योंकि तुमने लाकडाउन तोड़ा है। ..पुलिसवाले ने नाराज होकर सूजी से कहा।

सूजी गोवा निवासी एक अरबपति पिता की इकलौती बेटी है जो अपने मन की रानी है। एमबीए की पढ़ाई कर रही इस 20 साल की खूबसूरत लड़की को थाने पर देखने के लिए कर्मचारी भी बेताब थे। वे रह-रहकर वहां मंडरा रहे थे। ऐसा नहीं था कि सूजी ही एकमात्र फीमेल थी। कुछ अन्य महिलाओं को भी वहां लाया गया था लेकिन वे सभी शादीशुदा थी। वे तो बेचारी अपनी गृहस्थी का सामान जुटाने के लिए बाहर निकली थी लेकिन ये हीरोइन तो दो सप्ताह के लाकडाउन में ही घर में ऊब गई थी। वैसे सूजी लाकडाउन वाले दिन से ही घूम रही थी लेकिन इस बार वह पुलिस के हत्थे चढ़ गई। अपनी बेबाकी के कारण भी वह सभी को आकर्षित कर रही थी।

कुछ देर बाद थाना परिसर में पुलिस की एक गाड़ी और आई। इसमें भी उन लोगों को लाया गया जो लाकडाउन का उल्लंघन कर रहे थे। गाड़ी में से एक छरहरा युवक डार्विन उतरा जिसपर सभी की आंखें टिक गई। एक एएसआई ने सभी को अलग-अलग खड़ा रहने को कहा।

ईयर फोन लगाए डार्विन ने अपनी जेब से सिगरेट निकालकर बस जलाई ही थी की सूजी उसकी तरफ तेजी से आई। हाथ से सिगरेट लेते हुए दो-तीन कश लगाते हुए बादलों को देखते हुए छल्ले छोड़ने लगी। सिगरेट पीकर वह मानो राहत महसूस करने लगी। उसके चेहरे की खुशी ने उसका सौंदर्य मानों और बढ़ा दिया था।

डार्विन ने अपनी जेब से एक सिगरेट और निकाली तो सूजी ने उसका हाथ रोक दिया। अपनी हाथ की सिगरेट देते हुए वह बोली..एक सिगरेट से पीने का जो मजा है चैंप वह अलग-अलग में नहीं है। डार्विन ने जैसे ही सिगरेट हाथ में ली वैसे ही दूसरे पल सूजी ने हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाते हुए कहा-हाय आई एम सूजी। डार्विन ने भी हाथ बढ़ाकर अपना परिचय दिया।

अब दोनों एक-दूसरे के बारे में जानकारी लेने लग गए।

डार्विन ने पूछा- तुम यहां कैसे?

सूजी बोली – मेरे पास सिगरेट खत्म हो गई थी तो ढूढ़ने निकल पड़ी। रास्ते में पुलिस ने पकड़ लिया।

डार्विन ने कुछ इतराते हुए बताया, जिस दिन मोदीजी ने लाकडाउन की घोषणा की थी तभी मैं तुरंत बाजार चला गया था और एक महीने का स्टाक जमा कर लिया।

सूजी कुछ मायूसी में.. मैं तो इतना सोच ही नहीं पाई। तुम लड़कों को यह अच्छा रहता है कि आदत की चीजों को पहले ही लाकर रख लेते हो। हमारा ड्राइवर तंबाकू खाता है, उसने भी अपनी व्यवस्था पहले ही करके रख ली थी। मैंने तो उसकी तंबाकू की सिगरेट बनाने की कोशिश भी की लेकिन मजा नहीं आया। शायद उसकी तंबाकू स्टेंडर्ड की नहीं थी।

डार्विन – तुम कौन सी क्लास में हो?

सूजी – एमबीए फर्स्ट सेम। तुम क्या करते हो?

डार्विन ने बड़े रौब से बताया मैं मैकेनिकल इंजीनियर हूं। आईएएस की एक्जाम की तैयारी कर रहा हूं।

सूजी-डार्विन की जान-पहचान आगे बढ़ती उससे पहले ही थाने की टीआई जयश्री सिंह ने दोनों को बुला लिया।

टीआई – तुम दोनों कहां घूम रहे थे?

सूजी – मैडम सिगरेट की तलब लग रही थी तो ढूढ़ने निकल पड़ी।

टीआई – कोरोना जैसी घातक बीमारी मौत बनकर घूम रही है और तुम्हें सिगरेट की तलब लगी हुई है। तुम्हारे घरवालों ने जाने कैसे दिया बाहर? क्या नाम है पापा का?

सूजी – आंटी मैं सिगरेट नहीं पीती तो तलब से ही शायद मर जाती। मैं बाहर निकली ही इसलिए थी। घर पर कोई नहीं है इसलिए बाहर आने में दिक्कत भी नहीं हुई।

टीआई – पापा क्या करते हैं तुम्हारे, नाम तो बताओं? फोन नंबर भी दो।

सूजी – आंटी मेरे पापा की लीकर मैन्युफैक्चरिंग के साथ रियल एस्टेट का बिजनेस भी है। पापा जस्टिन फर्नांडीज नाम लिखते हैं।

टीआई – तुम मिस्टर फर्नांडीज की बेटी हो? तुम इस तरह से कैसे बाहर निकली। अब सीधे से घर जाना और बेटा लाकडाउन तक बाहर मत निकलना।

सूजी – थैक्स आंटी। ये डार्विन को भी छोड़ दो प्लीज।

टीआई – ठीक है तुम भी चले जाओं लेकिन ध्यान रखना बाहर मत निकलना।

डार्विन – थैक्यू मैडम।

थाने से बाहर निकलते ही सूजी- अरे यार, पुलिस की गाड़ी में हम आ तो गए लेकिन अब जाएंगे कैसे? मैं तो ड्राइवर को फोन भी नहीं लगा सकती वह पापा को सारी बात बता देगा।

डार्विन, रूको। हैलो – संजय, भाई यहां मापसा थाने पर आ जा यार गाड़ी लेकर। बहुत जरूरी है।

कुछ देर बाद संजय अपनी कार से पहुंचा। सूजी से डार्विन ने उसका परिचय कराया। फिर तीनों सूजी के घर निकल पड़े।

रास्ते में सूजी – डार्विन तुम कहां रहते हो? पहले कभी देखने में नहीं आए?

डार्विन – मैं कार माडिफाय करना सीख रहा हूं। इंजीनियरिंग करने के दौरान ही इसका शौक लग गया। काफी समय मैं गेराज में ही रहता हूं, फिर रात में पढ़ाई करता हूं।

डार्विन की बात को गौर से सुनते हुए सूजी बोली – तुम आखिर बनना क्या चाहते हो, कार मैकेनिक या फिर आफिसर?

कुछ मुस्कुराते हुए डार्विन बोला – यदि मैं आफिसर बन जाऊंगा और कार सुधारना भी जानूंगा तो क्या कोई मेरी नौकरी वापस ले लेगा? वैसे मैं कार माडिफाय करने का काम सीख रहा हूं जो कुछ अलग है।

सूजी – तुम मेरी बात को अदरवाइज मत लो, मेरे मन में आया तो पूछ लिया। ..अरे संजय लेफ्ट में कार ले लो बस मेरा घर आ ही गया।

डार्विन – मैं तो थाने पर ही तुम्हारा मिजाज जान चुका हूं इसलिए अदरवाइज वाली बात ही नहीं है। तुम अपने नैचुरल अंदाज में ही रहो वहीं तुम्हें सूट करेगा।

सूजी – मेरे पापा भी यहीं कहते हैं। शायद यहीं कारण है कि वे मुझे रोकते नहीं है। वे मुझसे बहुत प्यार करते हैं, मैं भी उन्हें बहुत चाहती हूं।

बात करते-करते सूजी का घर आ गया। वह डार्विन से बोली यह मेरा घर है।

डार्विन ने पूरे भवन पर नजरें दौड़ाई और बोला यह तो बहुत बड़ी कोठी है। तुम्हारे जैसे लोगों के लिए ऐसी कोठी ही होना चाहिए, तुम्हारे जैसे लोगों से ही चहल-पहल रहती है। खैर, तुम पहुंचों, हमारी मुलाकात काफी अच्छी रही।

सूजी – तुम्हारी सिगरेट के कश लेकर मैंने जो सुकून महसूस किया है उसका कर्ज तो मुझे उतारने दो। अंदर आओ, कॉफी पीकर जाना।

डार्विन – नहीं फिर कभी आउंगा। ..संजय भी बोला मुझे भी जल्दी जाना है।

सूजी – डार्विन तुम्हें तो मैं जाने नहीं दूंगी बगैर काफी पिलाए। संजय मैं तुम पर दबाव नहीं डालती, तुमने हमारे लिए अपना समय निकाला वहीं हमारे लिए काफी था। मैं डार्विन को छोड़ दूंगी।

आखिर डार्विन को सूजी की बात मानना ही पड़ी। कोठी मैं घुसते ही उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। पहली बार उसने इतनी बड़ी कोई कोठी देखी थी।

सूजी – डार्विन तुम बैठों मैं खुद कॉफी बनाकर ला रही हूं। तुम्हें यदि वाशरूम यूज करना हो तो यह सामने ही है। मैं पांच मिनट में आ रही हूं।

डार्विन टेबल पर ही रखें एक एलबम को देखने लगा। यह एलबम सूजी का था जिसमें उसके बचपन से लेकर अभी तक के कुछ फोटोग्राफ लगे थे।

सूजी अंदर से आई तो डार्विन के हाथ में एलबम देखकर मुस्कुराते हुए बोली – अरे पहली ही मुलाकात में तुम मेरे बचपन तक पहुंच गए।

डार्विन – स्वारी, यह रखा था तो मैंने उठा लिया। तुम्हारे फोटो देखे तो अच्छा लगा..देखने लग गया।

सूजी – अरे तुम इतने मैनर्स में कैसे रह लेते हो? देखने में तुम भले लगे तभी तो मैं तुम्हारे पास आकर हक से सिगरेट पीने लग गई। तुम मझसे ऐसे क्यों बात कर रहे हो?

डार्विन – नहीं..नहीं, मेरी बात करने की आदत ही कुछ ऐसी है। वैसे मैं कम ही बोलता हूं।

सूजी – तुम रहने वाले कहां के हो? पापा क्या करते हैं तुम्हारे।

डार्विन – मेरे पापा सिंचाई विभाग में एक्जीक्यूटिव इंजीनियर है। हम लोग पुडूंचेरी के हैं लेकिन पापा की नौकरी के कारण यहां आ गए। मेरी मम्मी हालैंड की है।

डार्विन की मम्मी के हालैंड के बारे में सुनकर सूजी एकदम उत्साहित हो गई। अरे..तुम्हारी मम्मी हालैंड की है। कहां मिली तुम्हारे पापा को, लव मैरिज है, तुम हालैंड जाते हो क्या अपने नाना-नानी के पास, कितना मजा आता होगा तुम्हें?

एकसाथ इतने प्रश्न सुनकर डार्विन मानो घबरा गया। वह कुछ बोलता उसके पहले ही सूजी बोल पड़ी..मैंने कुछ गलत पूछ लिया क्या?

डार्विन – तुमने एकसाथ इतने प्रश्न कर दिए कि मैं सोच रहा हूं कहां से जवाब शुरू करूं। वैसे मेरी मम्मी कॉलेज के समय पापा से पुडूंचेरी में ही मिली। मेरे नाना का परिवार काफी समय पहले ही हालैंड से भारत आ गया था। मेरे मामा जरूर वापस हालैंड चले गए हैं। पापा-मम्मी की लव विद अरेंज मैरिज है। मैं भी तुम्हारी तरह ही इकलौता हूं।

सूजी – कॉफी के मग को चियर्स के अंदाज में टकराते हुए..तुम भोले हो या फिर मेरे सामने बन रहे हो।

डार्विन – यह मेरा नैचुरल लुक है। मैं ऐसा ही हूं।

सूजी – तुम्हारी हॉबी क्या है?

डार्विन – मैंने कहा न कार माडिफाय करना। स्पोर्ट्स कारें मेरी पंसदीदा है। मैं कार रेस में भी हिस्सा लेता हूं।

सूजी – अरे यह हुई न बात। कार रेस का तो मझे भी बहुत शौक है। मैं फिल्मों में देखती थी लेकिन पापा ने कभी कार रेस में हिस्सा नहीं लेने दिया। तुम मुझे रेस के दौरान साथ में बैठाओंगे।

डार्विन – मुझे भी अभी दो बार ही रेस में जाने का मौका मिला है। इकलौता हूं तो पापा बहुत टेंशन करते हैं। शायद अगली रेस में हिस्सा भी लेने देते हैं या नहीं…पता नहीं।

सूजी – यार, ये इकलौता होना भी बड़ा टेंशनवाला है। सेम कंडीशन मेरे यहां भी है। मैं तो ढेर सारे बच्चे पैदा करूंगी। पापा-मम्मी को मैं बोलती हूं आप लोग अभी भी बच्चे पैदा कर लो। मेरे भाई-बहन आएंगे तो ये इकलौते का ठप्पा तो खत्म हो जाएगा। मैं तो कहती हूं आप पैदा करों मैं संभाल लूंगी। मम्मी कहती है अब तू 21 की हो चली है, कुछ दिन बाद तेरे बच्चे पैदा करने की उम्र हो जाएगी। गांव या शहर में कुछ लड़कियों की तो 19-20 साल में ही शादी कर देते हैं। मम्मी की बात सुनकर मेरे हाथ में गुस बम उठ आते हैं।

डार्विन – क्यों गुस बम क्यों उठ आते हैं।

सूजी – अरे, शादी करने की बात पर सोचती हूं लाइफ पार्टनर न जाने कैसा होगा? मैं एक जगह ज्यादा देर बैठ नहीं पाती, मुझे संभालने वाला न जाने मेरी इन आदतों को कैसे लेगा? मैं लड़ाई-झगड़े करना पसंद नहीं करती।

डार्विन – तुमने कॉफी बहुत अच्छी बनाई, चलो अब मैं भी जाऊं।

सूजी – मैं तुम्हें छोड़कर आती हूं, इस बहाने तुम्हारा घर भी देख लूंगी। तुमने मोबाइल नंबर तो दिया ही नहीं अपना?

डार्विन ने जेब से अपना विजिटिंग कार्ड निकालते हुए सूजी की तरफ बढ़ाया, कहा- ठीक है हमें चलना चाहिए।

सूजी कार निकालने लगी तो ड्राइवर आया। उसे आता देख सूजी बोली- रहने दो मैं खुद ड्राइव कर लूंगी।

कार में बैठकर सूजी-डार्विन आगे बढ़े। रास्ते में सूजी अपने परिवार व सहेलियों के बारे में उसे बताती रही। कुछ ही देर में डार्विन का घर आ गया। कार से बाहर निकलते हुए डार्विन ने कहा – मेरे घर में फिलहाल कोई नहीं है इसलिए तुम्हें अंदर आने का नहीं कहूंगा। तुमने मझे यहां छोड़ा उसका शुक्रिया।

सूजी – घर में कोई नहीं है तो क्या हुआ? तुम कहां जो अकेले में मेरा रेप करते? चेहरा देखकर तो लगता नहीं है कि तुम्हारे अंदर शक्ति कपूर छुपा है।

डार्विन मुस्कुराते हुए बोला नहीं मैं बाहर से डार्विन हूं तो अंदर से भी डार्विन ही हूं। तुमसे मुलाकात काफी अच्छी रही।

सूजी – मुलाकात अच्छी तो तब रहेगी जब दो पैकेट सिगरेट के लाकर मुझे दोगे। इतनी दूर से आई और तुम सिगरेट का पूछ ही नहीं रहे हो।

डार्विन तुरंत घर में जाकर दो पैकेट सिगरेट के लेकर आया। दोनों के बीच जल्द ही मुलाकात की बात हुई और सूजी रवाना हो गई।

अगले दिन सुबह छह बजे ही डार्विन के पास सूजी का फोन आता है।

हैलो डार्विन, उठों भी यार क्या सो रहे हो – सूजी बोली।

डार्विन – क्या हुआ इतनी सुबह-सुबह।

सूजी – लॉकडाउन खुलने वाला है। मेरे अंकल का पापा के पास फोन था, वे कह रहे थे तैयारी कर लो पीएम कल लॉकडाउन खोलने की घोषणा करने वाले हैं।

डार्विन – तुम्हारें अंकल को कैसे पता कल लॉकडाउन खुलने की घोषणा होगी?

सूजी – अरे वे प्रधानमंत्री के आॅफिस में सेकेट्री हैं। उनके पास तो जानकारी रहती है। मेरे पापा के पास उनका भी पैसा लगता है।

डार्विन – पैसा लगता है?

सूजी – तुम तो मुझे बताओं लॉकडाउन खुलने के बाद सबसे पहले क्या करोंगे?

डार्विन – मेरी कार का काम बचा है उसे पूरा करना है।

सूजी – धत्त, ये भी कोई काम है। कहीं घूमने-फिरने जाने की बात करों तो मजा भी आता है, कुछ खाने-पीने की हो। कुछ रूककर बोली..तुम कहीं बोरिंग व्यक्ति तो नहीं हो?

डार्विन – हम दोनों कल ही मिले हैं और तुम सबकुछ जान लेना चाहती हो। ..वैसे मैं बोरिंग हूं तो ?

सूजी – तो..तो..तुम दिखने में तो काफी हैंडसम हो। बोरिंग हो नहीं सकते..मुझे ऐसा लगता है।

डार्विन – एक काम करना लॉकडाउन खुलने पर तुम मेरे घर आना मम्मी के हाथ का बढ़िया खाना खिलवाऊंगा।

सूजी – ग्रेट। मेरी तो लॉटरी लग जाएगी। नौकरों के हाथ का खाना खा-खाकर मैं ऊब चुकी हूं।

डार्विन – ठीक है तो डन, लॉकडाउन खुलने की पार्टी मेरे घर पर।

जैसा की वह दिन भी बीत गया और अगले दिन वहीं हुआ जैसा सूजी ने डार्विन को बताया था। डार्विन की नजर तभी से पीएम को लेकर थी क्योंकि उसके दिमाग में यह बैठ चुका था कि सूजी के पापा के संबंध क्या सचमुच पीएम आफिस में बैठे अफसर से है क्या? जब पीएम ने लॉकडाउन हटाने की घोषणा की तो डार्विन ने खुद सूजी को फोन किया।

डार्विन – तो जैसा तुमने कहा था लॉकडाउन खुलने की घोषणा हो चुकी है। अब कल तुम मेरे यहां डिनर करने आ रही हो।

सूजी – डार्विन आज मैं बहुत खुश हूं। इतने दिनों से घर में बैठकर न जाने अजीब सी फिलिंग आ रही थी। यह लॉकडाउन कुछ और दिन बढ़ जाता तो शायद में पागल हो जाती। खैर ठीक है कल हम शाम को मुलाकात कर रहे हैं।

अगले दिन रात में सूजी खुद जब कार निकालने लगी तो फिर ड्राइवर आया। हालांकि सूजी ने उसे मना कर दिया और डार्विन के घर के लिए निकल पड़ी। डार्विन के घर पहुंची तो वह मेन गेट पर ही खड़ा था।

सूजी – गुड इवनिंग डार्विन। तुम ब्लैक शर्ट में बहुत अच्छे लग रहे हो।

डार्विन – थैंक्स सूजी। तुम पर भी यह फिरोजी कलर सूट कर रहा है। तुम्हारा गाउन भी बहुत अच्छा है।

डार्विन अपनी लॉकडाउन फ्रेंड सूजी को लेकर जब घर के अंदर गया तो डार्विन की मम्मी सूजी को देखकर चौंक गई।

डार्विन की मम्मी – अरे तुम तो सेंट जेवियर्स कॉलेज में पढ़ती हो न?

सूजी – अरे आंटी आपकों कैसे पता?

डार्विन की मम्मी – बेटा तुमने वाद-विवाद प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था न, मैं उसमें एक जज थी।

सूजी – स्वारी आंटी मैं जीत नहीं सकी तो नर्वस हो गई थी, मैं आपकों देख नहीं सकी उस समय।

डार्विन की मम्मी – कोई बात नहीं, चलों तुम्हें फिर से देखकर अच्छा लगा। ..मेरा विचार है हम सीधे डाइनिंग टेबल पर ही चले। मैंने अभी ही खाना बनाकर रखा है।

सूजी – चलिये न आंटी मुझे खूब भूख लग रही है।

खाने की टेबल पर जब डार्विन के पापा नहीं दिखे तो सूजी ने उनके बारे में पूछा।

डार्विन की मम्मी – लॉकडाउन के कारण सरकार के काफी काम रूक गए थे, फाइलें निपटाने में लगे हुए हैं। कुछ देर पहले ही फोन आया था, कह रहे थे तुम लोग खाना खा लेना मैं आॅफिस में ही बुलवा रहा हूं।

सूजी – मुझे आपका बंगला बहुत अच्छा लगा। सरकारी बंगलों की बात ही कुछ और रहती है।

डार्विन की मम्मी – डार्विन बता रहा था तुम्हार बंगला काफी अच्छा है। तुम्हें सच में हमारा सरकारी मकान अच्छा लग रहा है।

सूजी – आंटी घर वही बेहतर होता है जहां मन को अच्छा लगे। मेरे यहां इतने सारे कमरे हैं लेकिन रहने वाले हम तीन ही लोग हैं। पापा के फ्रेंड्स कभी-कभार आ जाते हैं लेकिन मैं उनके साथ नहीं बैठती हूं। हर समय पढ़ाई की बात करते हैं।

डार्विन बात बदलते हुए – सूजी तुमने यह नहीं बताया कि तुम अच्छी स्पीकर भी हो?

सूजी – इसमें बताने की क्या जरूरत है, यह तो तुम्हें खुद को बात करने से समझ आ जाना चाहिए।

डार्विन की मम्मी हंसते हुए – हमारा डार्विन अभी इतना समझदार नहीं हुआ है।

सूजी – अरे नहीं आंटी मैंने तो पहली नजर में ही देख लिया था, यह काफी समझादार है।

डार्विन की मम्मी – तुम दोनों की मुलाकात कहां हुई? कितने दिनों से दोस्ती है तुम दोनों की, इससे पहले कभी डार्विन ने तुम्हारा जिक्र नहीं किया।

सूजी कुछ बोलती उससे पहले ही डार्विन ने कहा – मम्मी हम जानते तो काफी दिनों से हैं लेकिन कल ही सूजी ने डिनर की बात कही थी।

सूजी डार्विन का मुंह देखते रह गई लेकिन कुछ बोलती उससे पहले ही खुद ने अपनी आवाज दबा ली।

प्लेट परोस दी गई, खाने की शुरुआत करते ही सूजी बोल पड़ी..वाह आंटी सचमुच आपके हाथ में जादू है। आप रोज इतना ही जायकेदार खाना बनाती है क्या?

डार्विन – मेरी मम्मी के हाथ का खाना ही तो है जो मुझे व पापा को बाहर नहीं जाने देता है। मैं बाहर पढ़ने नहीं गया और पापा ने विदेश में मिल रही नौकरी सिर्फ इसलिए ठुकरा दी क्योंकि मम्मी इंडिया छोड़कर कहीं जाना नहीं चाहती थी।

सूजी – ऐसा हो तो दोनों ने अच्छा ही किया। ..आंटी मुझे खाना खाना बहुत अच्छा लगता है लेकिन अब मैं आपसे खाना बनाना सीखूंगी भी।

डिनर के दौरान तीनों के बीच काफी देर बाते हुई और फिर सूजी के घर जाने का वक्त आ गया।

अगले दिन सुबह फिर सूजी डार्विन को फोन करती है।

सूजी – हैलो, डार्विन दोपहर में क्या कर रहे हो?

डार्विन – मैं गैरेज जाने वाला हूं, बताओं?

सूजी – नहीं मैं सोच रही थी कहीं घूमने चलते हैं?

डार्विन – मुझे दो घंटे का काम है, करीब 3 बजे मैं फ्री हो जाऊंगा। इसके बाद यदि हो तो चलते हैं।

सूजी – ठीक है मैं 3.15 बजे तुम्हारे गैरेज आती हूं। तुम्हारा गैरेज भी देखना हो जाएगा।

जैसा की दोपहर 3.15 बजे तय समय के अनुसार सूजी डार्विन के गैरेज पर पहुंच गई। बाहर से हार्न दिया तो गैरेज के मैनेजर मदनमोहन ने इशारा करके सूजी को अंदर बुलाया।

सूजी – अंकल डार्विन है क्या?

मदनमोहन – डार्विन, तुमसे कोई मिलने आया है।

सूजी ने एक इस्माइल दी जो मदनमोहन के लिए एक तरह का शुक्रिया था। बदले में मदनमोहन ने भी इसी अंदाज में सूजी तक शुक्रिया भेजा।

बाहर निकलकर डार्विन – सूजी कुछ खाने का रख लें। रास्ते के लिए।

सूजी – डार्विन मैं पहली बार लांग ड्राइव पर नहीं जा रही हूं। सारा सामान साथ लेकर आई हूं।

डार्विन – कुछ अचरज में पड़ते हुए कार में बैठ गया।

सूजी ने कार को घुमाया और धीरे-धीरे रेस बढ़ाने लग गई। डार्विन खामोश बैठा रहा।

सूजी – मैं किसी मूर्ति को साथ लेकर घूमाने नहीं निकली हूं। कुछ बोलोगे भी या फिर वापस कार ले चलूं।

डार्विन – कुछ झिझकते हुए..। सूजी एक बात पूछूं।

सूजी – स्टेयरिंग से सीधा हाथ उठाकर आदाब करते हुए..हुजूर श्रोता सुनने को बेकरार है। आप तो शौक फरमाइये।

डार्विन के चेहरे पर अभी भी कोई भाव नहीं आए। ..फिर कहने लगा, मैं एक बात समझ नहीं पा रहा हूं कि मुझमें ऐसी क्या खूबी है कि तुम चार दिन की दोस्ती में मेरे साथ लांग ड्राइव पर आ गई? वैसे तुमने निकलते समय कहा यह मेरी (सूजी की) पहली कोई लांग ड्राइव नहीं है तो तुम पहले किसके साथ जा चुकी हो।

सूजी – पहले किस बात का जवाब चाहते हो, तुम्हारी खूबी या फिर..।

डार्विन- किसके साथ लांग ड्राइव पर गई..।

सूजी – ये मैं बाद में बताऊंगी। पहले तुम्हारी खूबी बता दूं। तुम एक ऐसे बंदे हो जो अपने काम से काम रखता है। तुम जब थाने पर आए तो तुमने मुझे नहीं देखा। बाकि सभी लोग मुझे देख रहे थे। तुम चुपचाप अपनी सिगरेट पी रहे थे मतलब अपने में मस्त थे।

डार्विन – शायद तुम मुझे समझ नहीं पा रही हो। मैं ऐसा नहीं हूं। ये लॉकडाउन के कारण मैं ऐसा रिएक्ट कर रहा हूं क्योंकि मेरे सामने एक अंधेरा है। मैं आईएएस एक्जाम की तैयारी कर रहा हूं और परीक्षा सितंबर में होना थी। मेरी पूरी तैयारी है लेकिन अब लगता है परीक्षा आगे बढ़ जाएगी। यदि छह महीने भी आगे बढ़ गई तो पूरे देश से करीब पांच लाख नए लोग परीक्षा में शामिल हो जाएंगे। मैं अपने कैरियर को लेकर बहुत सोच रहा हूं इसलिए तुम्हें मेरे नैचर को लेकर गलतफहमी हो रही है।

सूजी – अरे..अरे, इतना क्यों परेशान हो रहे हो डार्विन। मुझे तुमसे कोई शादी थोड़े ही करना है जो अपने बारे में इतना बता रहे हो। मुझे लगा तुम एक अच्छे लड़के हो इसलिए दोस्ती की। मैं तुम्हारा नैचर भले ही न समझ पाऊं लेकिन यह तो ठीक है न कि तुम अच्छे लड़के हो?

अब डार्विन के चेहरे पर मुस्कान आई, कहने लगा..वह तो मैं हूं।

सूजी – अब मैं तुम्हें बताऊं लांग ड्राइव पर किसके साथ गई? मेरे मामा के साथ। वे जिस लड़की से प्यार करते थे उसके साथ वे लांग ड्राइव पर जाते थे लेकिन घरवालों को कोई शक न हो इसलिए मेरा सहारा लेते थे। मैं कार में उनके साथ होती थी तो मेरी भी लांग ड्राइव हो जाती थी।

डार्विन – तो फिर वे दोनों खुलकर बात नहीं कर पाते होंगे?

सूजी – तुम तो खूब सोचते हो, मेरे साथ ऐसा नहीं चलेगा। अरे, उनकी शादी हो गई, दो बच्चे हैं।

डार्विन – मैं चाहता हूं जल्द से जल्द परीक्षा हो जाए तो आगे का मैं सोचूं। पहली बार मैं आईएएस की परीक्षा दे रहा हूं।

सूजी – परीक्षा में तुम अकेले तो बैठोंगे नहीं, जो सबका होगा वह तुम्हारा भी होगा। परीक्षा तो एक साथ ही लेंगे। वैसे तुम्हारा सबसे अच्छा सब्जेक्ट कौन सा है?

डार्विन – मुझे मैथेमेटिक्स बहुत अच्छा लगता है। मैं अभी तक क्लास में सबसे ज्यादा नंबर लाता रहा हूं, फर्स्ट क्लास से अब तक।

सूजी – ग्रेट। तुम आईएएस ही क्यों बनना चाहते हो?

डार्विन – मेरे पापा से एक बार कोई गलती हो गई थी तब कलेक्टर ने उन्हें बहुत डांटा थ। जब कलेक्टर डांट रहे थे तब मैं पापा के साथ ही था। तब से मुझे लगा आएएएस बनना चाहिए। यह बात बहुत पुरानी है तब मैं सिक्थ क्लास में था लेकिन तब से मन में बैठ गई है।

सूजी – यह ठीक है। जो जींदगी में सोचते हो वह हो जाए तो बहुत अच्छा होता है। मैंने भी कुछ अलग ही सोचा था, अब मैं उसके करीब हूं।

डार्विन – क्या सोचा था तुमने?

सूजी – जब मैं नाइंथ क्लास में थी तब पापा ने मिलेट्री के लिए कुछ बड़ा डोनेशन दिया था। तब पापा को एक प्रोग्राम में चीफ गेस्ट बनाया था। मैं भी वहां गई थी। तब मुझे लगा कि मेरा पति सेना का बड़ा आॅफिसर हो।

डार्विन – तो फिर?

सूजी – मुझे लगता है मैं जल्द ही कामयाब होने वाली हूं।

डार्विन – कोई लड़का तय कर लिया तुमने?

सूजी – मेरी तरफ से तो तय है लेकिन वह मेरे जज्बात समझ ही नहीं पा रहा है।

डार्विन – क्या हुआ, खुलकर बताओगी तो पता चलेगा।

सूजी – मैं 21 की हंू लेकिन मुझे जो पसंद है वह 33 साल का है। मुझसे 12 साल बड़ा। उसके लिए रिश्ते आने लगे हैं और शायद जल्दी ही उसकी शादी हो जाएगी।

डार्विन – तो दिक्कत क्या है?

सूजी – हम दोनों की एज में डिफरेंस तो चल जाएगा लेकिन मम्मी-पापा सेना वाले को शायद पसंद न करेंगे? उन्हें बिजनेसमैन ही पसंद आएगा।

डार्विन – ..और लड़का? उसे तुमने अपने दिल की बात बताई है?

सूजी – बस यहीं तो बोल नहीं पा रही हूं मैं।

डार्विन – ये लो..मैं तो तुम्हें बहुत बोल्ड समझ रहा था लेकिन तुम तो आला दर्जे की डरपोक निकली। ..कहा पोस्टिंग है उसकी?

सूजी – अभी मणिपुर में पोस्टिंग है उसकी। सेकंड लेफ्टिनेंट है वह।

डार्विन – तुम उससे मिली कहां थी?

सूजी – वह मेरे कॉलेज में ही पढ़ा है, बहुत सीनियर है लेकिन जॉब लगने के बाद उसे चीफ गेस्ट के रूप में कॉलेजवालों ने छह महीने पहले बुलाया था। मैं तो पहली ही नजर में उसे अपना दिल दे बैठी।

डार्विन – उससे बात होती है तुम्हारी?

सूजी – बात तो होती है रोज, लेकिन अभी सिर्फ बात ही चल रही है।

डार्विन – किस तरह की बात करते हो तुम दोनों, मतलब वह तुम्हें पसंद करता है या नहीं यह कैसे पता चलेगा?

सूजी – मुझे लगता तो है कि वह मुझे पसंद करता है लेकिन हम दोनों एक-दूसरे को बोल नहीं पा रहे हैं।

डार्विन – तो तुम ही बोल दो न, यह पहले आप..पहले आप का जमाना थोड़े ही है।

सूजी – मैं सोच रही थी मणिपुर जाकर ही उससे बात करूं. यानि दिल की बात उसके सामने रखूं।

डार्विन – यह बेहतर होगा। तुम तो चली जाओ। किसी ने कहा है प्यार के इजहार में देर नहीं करते..।

सूजी – तुम ठीक कह रहे हो, मैं इसी हफ्ते प्रोग्राम बनाती हूं।

दोनों योजना बनाते-बनाते वापस घर की तरफ लौट आए।

घर लौटकर सूजी ने सबसे पहले अपने सेकंड लेफ्टिनेंट मित्र अखिलेश प्रतापसिंह को फोन लगाया।

सूजी – कैसे हो अखिलेश सर?

अखिलेश – मैं ठीक हूं, तुम कैसी हो सूजी?

सूजी – सर, आपकी याद आ रही है। मैं मणिपुर आना चाहती हूं इसी हफ्ते।

अखिलेश – सूजी, अगले दो दिन मेरी ट्रेनिंग है। इसके बाद में फ्री हूं। तुम चाहों तो आ सकती हो मझे बहुत अच्छा लगेगा।

सूजी – ठीक है मैं तीन दिन बाद आपके पास पहुंच रही हूं। मैं वहीं होटल में रूकूंगी, बुक करा रही हूं।

अखिलेश – मैं हमारे यहां की आफिसर्स मैस में बुकिंग करा दूंगा, तुम तो आ जाओ।

तय समय के अनुसार सूजी मणिपुर पहुंचती है। अखिलेश खुद उसे लेने एयरपोर्ट पहुंचता है।

सूजी को वह आॅफिसर्स मैस में रूकवाकर शाम को मिलने का कहता है क्योंकि उसे ड्यूटी जाना है।

शाम को मैस पहुंचकर अखिलेश सूजी को घुमाने ले जाता है।

सूजी – अखिलेश सर, हम कहीं चलकर बैठ सकते हैं जहां शांति हो।

अखिलेश – ठीक है हम मेरे क्वार्टर पर भी चल सकते हैं यदि तुम्हें एतराज न हो तो।

सूजी – मुझे कोई एतराज नहीं है, हम चल सकते हैं।

कुछ देर बाद दोनों अखिलेश के क्वार्टर पर पहुंचते हैं।

अखिलेश – सूना है सूजी तुम कॉफी बहुत अच्छी बनाती हो। तुम्हें आज मैं अपने हाथ की बनाई कॉफी पिलाता हूं।

सूजी – ग्रेट, मैं यहीं गार्डन में बैठकर इंतजार कर रही हूं।

अखिलेश – ठीक है, मैं आता हूं। तुम चाहों तो अंदर भी बैठ सकती हो, मम्मी आई हुई है।

सूजी – अच्छा, आप अकेले नहीं है यहां?

अखिलेश – अकेला..। मम्मी अभी कुछ दिनों के लिए यहां मेरे पास आ गई है। एक महीने बाद मेरी पोस्टिंग जैसलमेर में हो रही है जहां मेरे साथ परिवार नहीं रह पाएगा। इसलिए मम्मी मेरे पास आ गई।

सूजी – मैं आंटी से मिल लेती हूं लेकिन हम बाहर ही बैठेंगे।

अखिलेश – मम्मी पूजा कर रही है, कुछ देर में बाहर ही आ जाएगी। मैं तुम्हारे लिए कॉफी बनाता हूं।

कुछ ही देर में गार्डन का दरवाजा खुलता है। एक एयरफोर्स की यूनिफॉर्म पहने युवती अंदर आती है। सूजी से हैलों करने के बाद अंदर चली जाती है।

कुछ ही देर में अखिलेश के साथ वह वापस बाहर आती है लेकिन उसके हाथ में ट्रे है। उसने यूनीफॉर्म उतारकर गाउन पहना हुआ है।

सूजी उसे देखकर खड़ी हो जाती है। अखिलेश सूजी को बैठने के लिए कहता है।

अखिलेश – सूजी यह मेरी फियांसे है फिरदौस। एयरफोर्स में फाइटर पायलेट है। देश की पहली महिला फाइटर पायलट।

अखिलेश की बात सुनकर सूजी हक्की-बक्की रह जाती है। फिर वह फिरदौस से हाथ मिलाकर बधाई देती है। अखिलेश को भी वह बधाई देती है।

अखिलेश – सूजी, तुम्हारा क्या प्रोग्राम है? मैं तुम्हें यहां बॉर्डर एरिया घुमाना चाहता हूं। बहुत सुंदर जगह है यहां।

सूजी – मैं..मैं। ठीक है..। कितने दिन में यहां घूमा जा सकता है?

अखिलेश – वैसे तो यहां घूमने के लिए काफी जगह है लेकिन दूर-दूर भी है। तुम्हें मैं तीन दिन दूंगा, फिरदौस भी हमारे साथ चलेगी।

सूजी – (फिरदौस के चलने को नजरअंदाज करते हुए) मैं कल सुबह कितनी बजे तैयार रहूं सेकंड लेफ्टिनेंट।

अखिलेश – मैं तुम्हें सुबह 8 बजे मैस से ले लूंगा। हम फिरदौस को लेते हुए आगे चले जाएंगे।

सूजी बड़ी निराश होकर आॅफिसर्स मैस पहुंचती है। मैस पर पहुंचकर वह डार्विन को फोन लगाकर सारी जानकारी देती है।

डार्विन – सूजी जब उसकी शादी तय हो गई है तो फिर कुछ किया नहीं जा सकता है। तुम लौट आओ।

सूजी – नहीं डार्विन, मैं अखिलेश से बहुत प्यार करती हूं।

डार्विन – तो तुम क्या चाहती हो? तुम विलेन मत बन जाना सूजी।

सूजी – रोते हुए, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है डार्विन.., मैं क्या करूं। ऐसा लग रहा है मैं सबकुछ खो चुकी हूं। मैं अखिलेश से सचमुच बहुत प्यार करती हूं।

डार्विन – सूजी यह तुम्हारा एकतरफा प्यार है। क्या अखिलेश यह जानता है कि तुम उससे प्यार करती हो?

सूजी – यहीं तो बताने में यहां आई थी। ..लेकिन यहां आकर सबकुछ लूट गया।

डार्विन – सूजी तुम इतना परेशान मत हो। तुम तो एकाध दिन रूककर यहां आ जाओ। गलती तुम्हारी भी है। तुम्हें यह देखना चाहिए था कि अखिलेश सिंगल है या नहीं। तुम उससे बात करती रही और प्यार करती गई। उस बेचारे को थोड़े ही मालूम की तुम क्या सोच रही हो?

सूजी – हां गलती मेरी थी लेकिन मैं अखिलेश को हमेशा यहीं सोचकर बात करती रही कि वह मेरा है। अब मैं तो फिरदौस के साथ उसे देख भी नहीं पा रही हूं, कल कैसे उनके साथ जा पाऊंगी?

डार्विन – सूजी तुम्हें उनके साथ जाना चाहिए। कम से कम तुम अखिलेश से बात तो करों। ऐसे वापस आने से उसे भी अच्छा नहीं लगेगा।

सूजी – मैं सोने जा रही हूं। कल बात करते हैं।

सुबह 8 बजे अखिलेश मैस पर पहुंचा लेकिन सूजी तैयार नहीं थी।

अखिलेश – क्या हुआ सूजी, तैयार क्यों नहीं हुई?

सूजी – मैं आपसे बात करना चाहती हूं?

अखिलेश – बोलो सूजी..क्या बात है?

सूजी – आप मुझसे इतने समय से बात करते रहे, मैं आपसे प्यार करने लगी हूं। मैं आपसे शादी करना चाहती हूं।

अखिलेश – सूजी आर यू गोइंग मैड। कैसी बात कर रही हो। मैं और फिरदौस बचपन से एक-दूसरे से प्यार करते हैं। हम दोनों के घरवालों को भी पता है कि हम बचपन से एक-दूसरे से प्रेम करते है। फिरदौस पारसी है, मैं राजपूत हूं लेकिन हमारे घरवालों को कभी भी कोई ऐतराज नहीं रहा। हमारे रिश्तेदार तक यह सब जानते हैं। कई सालों से हमारे दोनों के रिश्तेदार किसी भी प्रोग्राम में हमें साथ ही बुलाते हैं। ..लेकिन तुम्हें एकदम क्या हुआ ऐसा करने का। मैंने कभी तुम्हें प्रपोज किया, ..या कभी ऐसी बात कहीं जिससे लगे मेरा रूझान तुम्हारे लिए है। मैं तुम्हें एक फ्रैंड की तरह देखता रहा हूं।

सूजी अखिलेश की बातें चुपचाप सुन रही थी लेकिन उसके आंसू तेजी से बह रहे थे।

अखिलेश – सूजी, प्लीज मत रोओ। मेरे लिए तो यह शाकिंग था।

सूजी अखिलेश से गले लगते हुए जोर-जोर से रोने लगी।

अखिलेश ने उसे चुप कराने के लिए उसके सिर पर हाथ फेरा। कहा – तुम्हें गलत-फहमी हो गई थी। मैं खुद समझ नहीं पा रहा हूं क्या कहूं। चलों हम घूमने चलते हैं शायद तुम्हारा मन बहल जाए।

सूजी – नहीं अखिलेश सर। गलती मेरी है। ..स्वारी।

अखिलेश – चलों जल्दी तैयार होकर गाड़ी में आ जाओ, मैं इंतजार कर रहा हंू।

सूजी – आप जाएं, मुझे शर्म आ रही है।

अखिलेश – सूजी तुम मेरे साथ चलोगी। मैं कार में बैठा हूं, जल्दी आ जाना।

कुछ देर बाद सूजी तैयार होकर अखिलेश के साथ कार में बैठकर रवाना हो गई।

अखिलेश – सूजी मैं तुम्हारी स्थिति जानता हूं। तुमने इतनी खुलकर मुझसे बात की यह अच्छा लगा नहीं तो गलतफहमी में सबकुछ गलत हो जाता। मैंने अभी हमारे बीच की हुई बात फिरदौस को बताई।

सूजी (आश्चर्य से)- आपने फिरदौस को सबकुछ बता दिया?

अखिलेश – सूजी मैंने और फिरदौस ने शुरू से ही एक आदत बना रखी है कि हम दोनों आपस में कुछ नहीं छिपाते हैं। और यही कारण भी है कि बचपन से साथ रहने पर भी हम दोनों में कभी शक या विवाद नहीं हुआ। उसने कहा है यदि सूजी चाहेगी तो मैं तुम्हारे साथ चलूंगी नहीं तो तुम ही उसे घूमा लाना।

सूजी – अखिलेश सर मेरी बहुत बड़ी गलती थी। आप फिरदौस के पास मुझे ले चले।

अखिलेश – यह हुई नहीं बात।

कुछ देर में दोनों फिरदौस के घर पहुंच जाते हैं।

सूजी को रिसीव करने फिरदौस दरवाजे पर ही खड़ी थी। कार से उतरते ही सूजी फिरदौस से गले लग गई। उसकी आंखों में आंसू भी थे। स्थिति को भांपते हुए अखिलेश कार के समीप ही खड़ा हो गया। फिरदौस सूजी को घर के अंदर ले गई।

सूजी – स्वारी फिरदौस। मैं तुम दोनों के बारे में नहीं जानती थी। सच कहूं तो मुझे अखिलेश सर से बहुत प्यार है लेकिन मैंने जब तुम्हें देखा तो मैं जल गई। तुम मझसे कहीं बेहतर हो, शायद अखिलेश सर की राइट च्वाइस हो।

फिरदौस – सूजी तुम मुझसे खुलकर बात कर रही हो तो मैं भी तुम्हें कुछ कहना चाहती हूं। (सूजी-बोलिये न), तुम अखिलेश को पसंद करती हो या फिर सेना की वर्दी को। मुझे अखिलेश ने तुम दोनों के बीच हुई पूरी बातें बताई जिससे मुझे लगा। तुम चाहों तो सेना ज्वाइन कर सकती हो क्योंकि अभी तुम्हारी उम्र भी है।

सूजी – फिरदौस..। मुझे अभी कुछ समझ नहीं आ रहा है। मैं तो बस यह जानती हूं कि अखिलेश सर मेरी जींदगी में आते तो मेरा जीवन सफल हो जाता।

फिरदौस (बात बदलते हुए) – तुम चाय लोगी या कॉफी?

सूजी – मैं कॉफी लूंगी लेकिन अखिलेश सर के हाथ की। शायद यह मेरी उनके हाथों से बनी जीवन की आखिरी कॉफी हो?

फिरदौस – सूजी, प्लीज ऐसी बातें न करों। तुम हमारे साथ ही एक दिन रहने आओगी और उस समय तुम्हें लगेगा तुम गलत थीं।

..फिर फिरदौस ने अखिलेश को बुलाया और तीनों ने कॉफी पी। अखिलेश-फिरदौस सूजी को वापस छोड़कर आए। अगले दिन सूजी फ्लाइट से वापस गोवा आ गई।

गोवा लौटते से ही वह अपने घर जाकर मम्मी के गले लगकर खूब रोने लगी।

मम्मी – क्या हुआ सूजी? क्यों इतना रो रही हो?

सूजी ने अपनी मम्मी को पूरी घटना सुनाई।

मम्मी – बेटा तुमने यह अच्छा किया कि मुझे सारी बात बता दी। लेकिन तुम अभी सिर्फ 21 साल की हो और अभी से शादी की बात सोचने लग गई। तुम यदि मम्मी-पापा को खुश देखना चाहती हो तो अब ऐसी गलती मत करना। तुम पापा के साथ बिजनेस में हाथ बटाओं तो अच्छा रहेगा।

सूजी – स्वारी मम्मी। आप सही कह रही हैं। लेकिन मैं अखिलेश सर को नहीं भूल पाऊंगी।

मम्मी – इतना प्यार करती थी तो अब तक हमें बताया क्यों नहीं? वैसे भी बेटा हम चाहते हैं तुम अपना कैरियर बनाओं।

सूजी ने डार्विन को फोन लगाया और उसके साथ घूमने जाने की इच्छा जाहिर की। कुछ ही देर में डार्विन उसके घर आ गया।

डार्विन – सूजी चलों तुम्हें आज अच्छा खाना खिलाकर लाता हूं। (डार्विन चाहता था सूजी का दिल बहल जाएं)

सूजी – डार्विन, न जाने क्यों मुझे एक बहुत बड़ा टेंशन हो गया। मुझे लगता था अखिलेश सर भी मुझसे प्यार करते हैं। मैं बहुत गलत थी। मैंने न जाने क्या-क्या सपने देखें थे। अखिलेश सर को भी मेरे साथ ऐसी बातें नहीं करना चाहिए थी।

डार्विन – क्या उन्होंने तुम्हें धोखा दिया?

सूजी – नहीं..नहीं। मेरा मतलब है कि वे इतने दिनों से मुझसे बात कर रहे थे तो उन्हें बता देना चाहिए था कि उनके जीवन में पहले से ही कोई है।

डार्विन – तुम सूजी इतनी गंभीर कैसे हो गई अखिलेश सर के लिए? ..जबकि उन्होंने तुम्हारे साथ ऐसी कोई बातें भी नहीं की जिससे तुम्हें गलतफहमी हो।

सूजी- अरे बाबा..मैं मानती हूं मेरी गलती थी। अब क्या करूं, फिरदौस को रास्ते से हटा दूं क्या?

डार्विन – तुम ऐसा सोच रही हो?

सूजी – नहीं, कतई नहीं। मझे दु:ख है अखिलेश सर मेरे बजाय किसी और से प्यार करते हैं लेकिन मैं किसी को हटाने के बारे में कभी नहीं सोच सकती। ..वैसे फ्लाइट में मैं यह सोचती रही कि दोनों में कितने प्रेम है। मुझे उन दोनों का जीवन अच्छा भी लगा। मैं यह भी सोच रही थी अखिलेश सर मेरे साथ आते भी तो उन्हें शायद मैं अच्छी नहीं लगती क्योंकि जिससे पहला प्यार हो जाता है वहीं जीवनभर रहता है।

डार्विन – सूजी मैंने तो अभी तक प्यार-व्यार के बारे में सोचा तक नहीं। मैं तो अभी बच्चा ही हूं। ..या शायद मुझे मेरी कारों से बहुत लगाव है इसलिए भी कभी दिमाग में ऐसा नहीं आया।

सूजी – तुम तो सोचना भी मत, मुझे देखों मैं कितना पछता रही हूं। अच्छे बच्चे की तरह रहों, मम्मी-पापा की सेवा करों।

डार्विन ने सूजी को गौर से देखा और फिर कार चलाने लगा।

सूजी – ऐसे मत देखों, मैं कोई अपराधी हूं क्या?

डार्विन – नहीं, पहले कभी किसी को ऐसी बातें करते नहीं सूना। ..खासकर किसी लड़की से तो मैं इन शब्दों की उम्मीद भी नहीं कर सकता था।

सूजी – डार्विन मैं अब बाहर पढ़ने चली जाऊंगी। कनाडा या ब्रिटेन।

डार्विन – एकदम इस तरह का फैसला क्यों ले रही हो?

सूजी – शायद अखिलेश सर को भुलाने के लिए यह ठीक रहेगा। मैं पापा से बात करूंगी घर जाकर।

डार्विन – अब तुमने फैसला ले ही लिया है तो मैं क्या बोलूं? मैं तो एक दोस्त की हैसियत से तुम्हारी मदद कर सकता हूं।

होटल में खाना खाने के बाद दोनों घर की तरफ चल दिए। सूजी कार से उतरकर सीधे अपने पापा को ढूंढ़ती हुई घर के अंदर दाखिल हुई। पापा को घर के आॅफिस में काम करता देख वह उनके सामने जाकर बैठ गई।

सूजी – पापा मैं बाहर पढ़ने जाना चाहती हूं।

पापा – अरे, ये क्या बात हुई? अभी तुम्हारा एडमिशन हुआ है अब बीच में ही तुम बाहर पढ़ने की बात कर रही हो। तुम हमारे साथ ही रहोगी, हम दोनों तुम्हारे जाने से अकेले हो जाएंगे।

सूजी – पापा यदि मेरी शादी हो जाती तो क्या होता? तब भी तो अकेले ही रहते न।

पापा – बेटा तुम्हें अभी से यह शादी का बुखार कहां से चढ़ गया। मम्मी ने मुझे सबकुछ बता दिया।

सूजी – मम्मी के पेट में यह बात पची भी नहीं, आपकों सबकुछ बता दिया?

पापा – बेटा, मैं और तुम्हारी मम्मी बहुत चिंतित हैं। अभी तक तुमने कोई चीज पसंद की और वह हम तुम्हें नहीं दे सके ऐसा कुछ नहीं हुआ। लेकिन किसी लड़के को तुम पसंद करों और वह किसी को चाहे यह तो हमने कभी सोचा भी नहीं था। अब इस मामले में तो तुम्हें ही खुद को संभालना होगा, लेकिन विदेश जाकर रहने की बात तो गलत है।

सूजी – पापा मैं अब अपना कैरियर कुछ अलग बनाना चाहती हूं। मणिपुर जाना, वहां फिरदौस का मिलना, अखिलेश सर की बातों ने मुझे बदलने की दिशा दी है। शायद यह अच्छा भी रहा।

पापा – बेटा अभी तुम कुछ समय के लिए कहीं घूम आओं। मैं और मम्मी भी तुम्हारे साथ चलते हैं।

सूजी – हम सोचते हैं क्या करना लेकिन अब मेरा मन किसी बात में नहीं लग रहा है।

अगले दिन सूजी ने अपने पापा के साथ आॅफिस जाने की इच्छा जताई।

पापा के लिए तो मानो खुशी का ठिकाना ही नहीं था। वे उसे आॅफिस ले गए। ..एक चैंबर के बाहर ले जाकर खड़ा कर दिया।

चैंबर के दरवाजे पर सूजी का नाम लगा था और पोस्ट डायरेक्टर की थी।

सूजी – पापा मैं तो यहां सिर्फ देखने आई थी, आपने मेरा चैंबर क्यों बना दिया?

पापा – तुम्हें ही एक दिन यह पूरा कारोबार देखना है सूजी। मैं चाहता हूं तुम अभी से मेरे साथ रहकर इसे देखना शुरू करो।

सूजी आखिरकार चैंबर में जाकर बैठ गई लेकिन उसने प्यून को कह दिया किसी को अंदर मत आने देना। उसने डार्विन को फोन लगाकर आॅफिस बुलाया।

डार्विन जब सूची के आॅफिस आया और रिसेप्शन पर सूजी से मिलने का कहा तो उसे मना कर दिया गया। डार्विन ने सूजी को तुरंत मोबाइल लगाकर उसके रिसेप्शन पर बैठे होने की जानकारी दी। सूजी तुरंत ही बाहर आई और रिसेप्शन पर उसे लेने पहुंच गई।

सूजी – तुम्हें मुझे मोबाइल लगाना चाहिए न, मैंने ही किसी को अंदर आने से मना किया।

डार्विन – सूजी के साथ चैंबर में घुसने के बाद..अब क्या हुआ?

सूजी – कुछ नहीं, सुबह पापा के साथ यहां आने का कहा तो उन्होंने मेरे लिए चैंबर खाली करवा दिया। अब कहते हैं यहीं काम करों।

डार्विन – तो काम करों न। लोग नौकरी ढूढ़ते हैं और तुम्हें तो इतनी बड़ी रियासत मिली है। तुम्हारे पापा का नाम चलता है। तुम्हें उनके साथ मिलकर ही काम करना चाहिए।

सूजी – कुछ सोचते हुए ..डार्विन मैं अभी जॉब वगैरहा में उलझना नहीं चाहती हूं। मैं तो बाहर पढ़ने जा रही हूं।

डार्विन – कहां जाना चाहती हों?

सूजी – मेरी लंदन में बात हुई है। वहीं से मैं एमबीए करना चाह रही हूं। हमारा वहां बंगला भी है और कंपनी भी तो मुझे वहां दिक्कत नहीं होगी।

दो सप्ताह बाद ही सूजी इंग्लैंड के लिए रवाना हो गई। उसे वहां एडमिशन भी मिल गया। लंदन में रहने को उसे एक सप्ताह हो गया था लेकिन उसे अच्छा नहीं लग रहा था। डार्विन को भी अब फोन लगाना कम कर दिया था। इससे पहले भी सूजी के साथ यहीं होता था कि उसका कोई दोस्त बनता जो काफी घनिष्ट होता लेकिन कुछ समय बाद वह नया दोस्त बना लेती चाहे लड़का हो या लड़की।

एक दोपहर सूजी कार से लांग ड्राइव पर निकली। वह अकेली ही करीब डेढ़ सौ किलोमीटर पहुंच गई। एक जगह रास्ते में उसे कैफे दिखाई दिया तो उसने कार रोककर कॉफी पीना चाही। कैफे में वह अंदर पहुंची तो उसे फिरदौस बैठी दिखाई दी। दोनों की आंखें एकाएक मिली और दोनों ही चौंक गई।

फिरदौस – सूजी तुम यहां?

सूजी – आप यहां क्या कर रही हैं?

फिरदौस – मैं तो यहां इंडो-ब्रिटिश ज्वाइंट ट्रेनिंग प्रोग्राम में आई हूं। पास के एयरबेस पर ही हमारी ट्रेनिंग चल रही है। अभी छुट्टी हुई तो हम यहां आ गए। लेकिन तुम अचानक यहां कैसे आ गई?

सूजी – मैंने यहां लंदन में एडमिशन ले लिया है एमबीए फाइनेंस में। यहीं रहकर मैं पढ़ाई करूंगी।

फिरदौस – तुमने बहुत अच्छा सोचा। चलों मैं तुम्हें अपने साथियों से मिलवाती हूं।

फिरदौस ने सूजी का परिचय ट्रेनिंग ले रहे साथियों से करवाया। भारत के अलावा ब्रिटेन के भी फाइटर पायलेट्स थे। सूजी का ब्रिटेन की एक महिला फाइटर पायलेट मारग्रेट ने मोबाइल नंबर लिया। उसने सूजी को कहा ट्रेनिंग खत्म होते ही मैं तुमसे मिलने आऊंगी। मारग्रेट ने बताया उसका परिवार भी लंदन में रहता है। इन लोगों से मिलकर सूजी वापस अपने बंगले पर आ गई। यहां भारतीय मूल के ही एक परिवार को काम करने के लिए रखा गया था। सूजी कुछ देर उस परिवार के साथ बैठी और इंग्लैंड के हालचाल जानने लगी।

अगले दिन सूजी कॉलेज गई जहां उसे प्रिंसिपल ने बुलाया।

प्रिंसिपल – सूजी फॉर्म में तुमने होस्टल में रहने की इच्छा जाहिर की थी, क्या तुम्हें होस्टल में रहना है?

सूजी – मुझे होस्टल मिल रहा है तो मैं लेना चाहूंगी। आप मुझे अलॉट कर दीजिए।

अब सूजी अगले दिन होस्टल में रहने आ गई। यहां भारत की एक और लड़Þकी थी जो केरल से थी। उसका निक नेम कृष्णा था। वैसे कृष्णा का पूरा नाम तो इतना बड़ा था कि वह सूजी ले ही नहीं पाती इसलिए कृष्णा ने भी अपना निक नेम ही बताया। कृष्णा कुछ समय पहले ही यहां आ गई थी जिससे कॉलेज और होस्टल के बारे में उसे पूरी जानकारी हो गई थी। कॉलेज मैंनेजमेंट ने भी दोनों के रूम पास-पास ही रखे थे।

सूजी का अब यहां मन लगने लग गया था। पूरे दिन क्लास अटेंड करने के बाद शाम को वह होस्टल कैंपस में बास्केटबॉल खेलने लग गई थी। दिन गुजरते गए और सूजी को भी पढ़ाई में रूची होने लगी थी। दो साल कब गुजर गए उसे पता ही नहीं चला। इस दौरान वह भारत भी नहीं आई। हां उसके मम्मी-पापा जरूर हर महीने लंदन आ जाते लेकिन तब भी वे खुद होस्टल आते, सूजी अपने बंगले पर नहीं जाती। यह देखकर उसके मम्मी-पापा चिंतित तो थे लेकिन बेटी की खुशी में ही वे खुश थे। बचपन से अकेली रही सूजी कई बार इस तरह की हरकते करती थी। दो साल बाद जब सूजी की डिग्री पूरी हुई तो उसने कॉलेज में टॉप किया। उसके टॉप करने पर एक बधाई का फोन आया। यह फोन डार्विन का था।

सूजी – अरे डार्विन तुम्हें कैसे पता चला मैं टॉप आई हूं?

डार्विन – मुझे तुम्हारी चिंता थी और मैं तब से ही तुम्हारा ध्यान रख रहा था। तुम्हें कई बार फोन करने का सोचा भी लेकिन हर बार हाथ मोबाइल पर आकर रूक गया कि कहीं तुम फिर से पुरानी यादों में न उलझ जाओ। अब तुम्हारी डिग्री पूरी हो गई है तो तुम अपना कैरियर अलग ही बना सकती हो।

सूजी – डार्विन मैं बहुत खुश हुई तुम्हारा फोन आया तो। तुम बताओं क्या चल रहा है तुम्हारा?

डॉर्विन – मैंने आईएएस एक्जाम पास कर ली है और एक महीने पहले इंटरव्यू हुआ था जिसमें मेरा सिलेक्शन हो गया है। मुझे ट्रेनिंग पर जाना है।

सूजी- खुशी के मारे जोर से चिल्लाते हुए..ओ..वाऊ। मेरी पार्टी कब मिलेगी मुझे।

डार्विन – जब तुम इंडिया आ जाओ तब बंदा तैयार है।

सूजी – ग्रेट यार। तुमने जो चाहा वह कर ही लिया। मुझे बहुत खुशी है। मैं जल्दी ही आकर तुमसे मिलूंगी।

कुछ समय सूजी इंग्लैंड में ही रही और उधर डार्विन भी ट्रेनिंग पर चला गया। करीब ढाई महीने बाद सूजी का भारत लौटना हुआ। वह काफी खुश थी। उसकी खुशी का कारण दिमाग से अखिलेश का निकल जाना था। असल में सूजी वह युवती थी जिसके दिमाग में कोई बात चलती है तो बहुत तेजी से अंदर घूस जाती है और फिर वह उसके पीछे लग जाती है। जब बाहर निकलती है तो एकदम बाहर निकल जाती है। यही कारण है कि उसके दोस्त तो बनते हैं लेकिन लंबे समय तक टिक नहीं पाते। वह तो डार्विन था कि जिसने दोस्ती को बनाए रखा और समय पर उसे कॉल भी किया। डार्विन का स्वभाव कुछ स्पेशल है जो व्यक्ति को संभाले रखता है। सूजी जब भारत आई तो सीधे गोवा गई अपने बंगले पर। मम्मी-पापा के साथ उसने डिनर किया और काफी देर तक बाते की।
सूजी अपने पापा से – पापा मैंने तय किया है मैं आपका काम संभालूंगी।
पापा – अरे यह तो बड़ी खुशी की बात है इस बात पर तो पार्टी होना चाहिए। फिर उन्होंने नौकर को कहा एक ड्रिंक और बनाकर लाओ।
सूजी – मैं कल आपके साथ आॅफिस में चलूंगी और सारे अकाउंट की जानकारी लूंगी।
मम्मी – बेटा अभी तू विदेश से आई है कुछ दिन आराम कर ले। फिर सारी जींदगी काम ही तो करना है। अब कुछ सालों बाद तेरी शादी करना है। मेरे साथ भी कुछ समय गुजार।
सूजी – अरे मम्मी मैं तो अभी गोवा में ही हूं। साथ तो हम रहेंगे ही न। तुम भी मेरे साथ आॅफिस चले चलना।
सूजी की इस बात पर पापा बोले – सूजी, मम्मी वहां क्या करेगी? तुम मम्मी को वहां लेकर जाओगी तो ये काम नहीं करने देगी। इन्हें तो नौकरों का मैनेजमेंट ही संभालने दो। मैं कल हमारे तीनों सीए को बुलवा लूंगा तुम एक बार मिल लो और फिर जब भी तुम्हें लगे अलग-अलग मीटिंग रख लेना।
सूजी – वह मेरे ऊपर छोड़ तो पापा।
अगले दिन सूजी सुबह 10 बजे ही आॅफिस पहुंच जाती है। आॅफिस में जाकर वह सारे अकाउंट्स देखती है जिसमें उसे रात हो जाती है। करीब 9.30 बजे रात को वह घर के लिए निकलती है तभी उसे अखिलेश का फोन आता है।
सूजी – अरे अखिलेश सर आपने आज कैसे याद कर लिया?
अखिलेश – सूजी मैं और फिरदौस छुट्टियां मनाने गोवा आ रहे हैं? क्या तुमसे मुलाकात हो पाएगी?
सूजी – क्यों नहीं अखिलेश सर। आप मेरे मेहमान है और आप मुझे समय बताओं तो मैं हमारे गेस्ट हाउस में आपका इंतजाम करवा दूंगी।
अखिलेश – सूजी हम चार दिन बाद गोवा पहुंच जाएंगे। हम वहां तीन दिन ही रूकेंगे।
सूजी – ठीक है आप आए मैं आपकी व्यवस्था करवाती हूं।
अखिलेश – सूजी हमारे साथ फिरदौस का कजन भी आ रहा है।
सूजी – कोई बात नहीं वह भी हमारे यही रूक जाएंगे।
अखिलेश – थैंक्यू सूजी।
चार दिन बाद अखिलेश, फिरदौस और फिरदौस का भाई कुरूश गोवा पहुंचे। कुरुश नेवी में सेकंड लेफ्टिनेंट था और कुछ समय पहले ही उसकी पोस्टिंग कालीकट में हुई थी। वह मैकेनिकल इंजीनियर था। सूजी इन लोगों को लेने एयरपोर्ट पर पहुंची। जब यह परिवार बाहर निकला तो सूजी ने बुके देकर इनका स्वागत किया।
अखिलेश – सूजी को गले लगाते हुए.. कैसी हो सूजी?
सूजी अखिलेश के गले तो लगी लेकिन इस बार यह सूजी कुछ अलग थी। उसने अखिलेश पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। फिरदौस से जरूर वह गर्मजोशी से मिली। कुछ सेकंड्स में फिरदौस का कजन कुरुश भी वहां आ गया जो नेवी की यूनिफॉर्म में था। लंबे कद का गठिला यह नौजवान देखकर ही किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित करने वाला था। ..और हुआ भी यहीं सूजी उसे देखती ही रह गई।
सूजी हाथ मिलाते हुए कुरुश से – हाय आय एम सूजी।
कुरुश – अरे आपको तो मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं। फिरदौस ने मुझे आपके बारे में सबकुछ बताया है। आपकी बहुत तारीफ करती है फिरदौस।
सूजी – थैक्यू फिरदौस। ..फिर वह सभी से बोली चले हम।
सूजी के साथ तीन कारें आई थी जिनमें से दो में इनका सामान रखा था। एक कार में ये चारों बैठ गए जिसे सूजी ड्राइव कर रही थी।
फिरदौस – सूजी तुम्हें इंग्लैंड में कैसा लगा? कोई दिक्कत तो नहीं हुई?
सूजी – फिरदौस मेरा इंग्लैंड जाना बहुत ही अच्छा रहा। मैं वहां जाकर नई जींदगी लेकर आई हूं। अब मैं पापा के साथ मिलकर काम कर रही हूं।
फिरदौस – बहुत अच्छा किया यह।
अखिलेश – सूजी मैं और फिरदौस तो यहां छुट्टी मनाने आए हैं लेकिन कुरुश आन ड्यूटी है। इसे यहां कुछ आॅफिशियल काम है इसलिए इसे हम नेवी आॅफिस पर ड्रॉप कर दे। वहीं कहीं इसके रूकने की व्यवस्था भी है। मैं तुम्हें तब बता नहीं पाया था।
सूजी – कोई बात नहीं आप यदि चाहे तो हमारे यहां रूक सकते हैं और आपको कार व ड्राइवर प्रोवाइड करवा दूंगी।
कुरुश – सूजी हमारे यहां यह पसंद नहीं किया जाता है। यदि किसी आॅफिसर ने इसपर आपत्ति ले ली तो जबरदस्ती मेरे ऊपर एक्शन हो जाएगी।
सूजी – लेकिन आप हमारे साथ डिनर तो कीजिए मैंने कुछ अलग ही व्यवस्था करवाई है।
अखिलेश – सूजी तुमने क्यों यह किया। मैं और फिरदौस तो कुछ साथ में रहना चाह रहे थे क्योंकि फिरदौस कुछ दिन बाद लंबी छुट्टी ले रही है। हम दोनों का प्रमोशन हो रहा है।
सूजी – ग्रेट। आप दोनों को बधाई हो। कब ड्यू है फिरदौस?
फिरदौस – अप्रैल फर्स्ट विक में है।
सूजी – यानि दिसंबर, जनवरी, फरवरी और मार्च बस चार महीने ही बचे हैं। आपको कुछ अलग से व्यवस्था चाहिए हो तो मुझे बताना क्योंकि मैं इन मामलों में ज्यादा समझदार नहीं हूं।
सूजी की बात सुनकर तीनों हंस दिए। फिर सूजी ने नेवी आॅफिस पर कार रोकी। कुरुश जब उतरा तो अखिलेश कार में आगे आकर बैठ गया। सूजी कार को सीधे अपने बंगले लेकर आई। बंगले पर सूजी की मम्मी मेहमानों को इंतजार कर रही थी। अखिलेश और फिरदौस मम्मी से मिले। मम्मी अखिलेश और फिरदौस दोनों को ही बड़े ध्यान से देख रही थी क्योंकि उन्हें पता था सूजी की पसंद अखिलेश था। बंगले पर ही सूजी की कंपनी का एक सीए आया था जिससे मिलने के लिए सूजी कुछ देर के लिए अपने बंगले वाले आॅफिस में बैठ गई।
कुछ देर बाद वह अखिलेश-फिरदौस के पास आई तब तक सूजी की मम्मी इन दोनों से बात करती रही।
फिरदौस – सूजी तुम्हारी मम्मी से बात करके बहुत अच्छा लगा। ये भी तुम्हारी तरह बहुत भोली हैं। फिर फिरदौस उठकर वॉशरूम चली गई और मम्मी मेहमानों के लिए कॉफी बनवाने किचन में चली गई। अखिलेश और सूजी हॉल में बैठे रहे लेकिन दोनों मौन थे। अखिलेश सूजी के तरफ देख रहा था लेकिन सूजी थी कि नीचे निगाह करके बैठी थी।
फिरदौस – (वॉशरूम से बाहर आकर) तुम दोनों चुपचाप क्यों बैठे हो?
अखिलेश – कुछ नहीं सूजी उसके काम में बहुत व्यस्त है हमने इसे डिस्टर्ब कर दिया।
सूजी – नहीं ऐसा कुछ नहीं है। मैं अकाउंट्स चेक कर रही हूं तो मुझे कहीं कुछ कमी लग रही है।
फिरदौस – थैंक्स गॉड। सूजी मैं तो तुम दोनों के चुपचाप बैठे होने पर तुम्हारे बारे में कुछ सोचने लग गई थी।
सूजी – फिरदौस मैंने कहा न मैं इंग्लैंड जाकर बदल गई हूं। मैं अब सिर्फ अपने काम पर फोकस कर रही हूं। मैंने इंग्लैंड में पढ़ते समय अपने पापा-मम्मी के बारे में काफी सोचा। मेरे पापा दिन-रात मेहनत करते रहे तब जाकर वे अपना एम्पायर खड़ा कर पाए।
अखिलेश – बहुत अच्छा लगा सूजी तुम्हारी यह बात सुनकर। मैं भी चाहता हूं तो बहुत अच्छी बिजनेसमैंन बनो तुम्हारे पापा जैसी।
रात में जब कुरुश अपने आॅफिस ले लौटा तो सभी ने साथ मिलकर डिनर किया। डिनर के बाद कुरुश वापस चला गया जहां उसे नेवी ने रूकवाया था। फिरसौद-अखिलेश भी गेस्ट हाउस में आ गए। रात में मम्मी ने सूजी से बात करना शुरू की।
मम्मी – सूजी तुम बहुत परेशान दिख रही हो? अखिलेश के यहां आने पर तुम्हें कुछ लग रहा है क्या?
सूजी – नहीं मम्मी..। मैं तो अकाउंट्स को लेकर परेशान हूं जो मुझे नहीं मिल रहा है। सीए तनुज शाह सही जवाब नहीं दे रहा है। कुछ मीसिंग है और यह दो अरब का ट्रांजेक्शन है।
मम्मी – सूजी तुम अपने पापा से बात क्यों नहीं करती?
सूजी – मम्मी तुम क्यों इसमें आ रही हो? मैैं पहले चेक तो कर लूं।
अगले चार दिन तक सूजी इस काम में दिन-रात लगी रही। कुछ देर के लिए ही वह अखिलेश-फिरदौस के पास आई लेकिन तब भी उसका मन आॅफिस पर ही था। फिरदौस-अखिलेश भी गोवा से वापस लौट गए लेकिन कुरुश को यहां रूकना पड़ा।
एक दिन सुबह 8 बजे डार्विन का फोन सूजी के पास आया। सूजी को उसने बताया वह गोवा लौट रहा है। उसे पोस्टिंग भी मडगांव में मिल गई है जो फिलहाल एसडीएम के पद पर ट्रेनिंग की है। सूजी ने बड़ी खुशी जताई। कुछ ही देर में कुरुश का भी फोन सूजी के पास आता है और वह बताता है उसे भी अगले आदेश तक गोवा में ही रूकने के लिए कहा गया है। उसे यहां बंगला भी अलॉट किया जा रहा है जो सूजी के बंगले से कुछ ही दूरी पर है। सूजी ने दोनों से बात की तो उसे लगा उसकी एक नई टीम यहां बन रही है। इनके साथ रहकर वह कुछ टेंशन फ्री हो पाएगी। सूजी जल्दी से तैयार होकर आॅफिस पहुंच जाती है। आॅफिस में उसने अपने एक पुराने अकाउंटेंट अशोक मुरमकर को बुलाया है जो कुछ समय पहले ही रिटायर हो गए थे। अब मुरमकर सूजी के सामने बैठे हैं।
सूजी – अशोक अंकल आप इतने साल से कंपनी में हैं और आप हमारी शराब की कंपनी का पूरा कामकाज देखते थे। आपको यहां से रिटायर हुए तीन साल हुए और इन तीन सालों में ही मुझे करीब दो अरब रुपयों का लेनदेन नहीं मिल रहा है। आप प्लीज मेरी हेल्प कीजिए।
अशोक – बेटा मुझे मेरे रिटायर होने से एक साल पहले तक की फाइलें दिलवा दो। मैं बहुत कुछ भूल गया हूं। इससे याद आ जाएगा।
सूजी ने सारी फाइलें बुलवा दी और अब अशोक मुरमकर हिसाब मिलाने बैठे। सूजी का कही भी दिल नहीं लग रहा और वह रिकॉर्ड में कहां चूक हो रही है बस इसी तरफ दिमाग लगाए हुए है। अशोक मुरमकर भी तीन दिन लगातार भीड़े और फिर जाकर उन्हें हिसाब पकड़ में आ गया। असल में सूजी के पापा ने दो अरब का डोनेशन किसी राजनीतिक पार्टी को दिया था जो हिसाब में नहीं लिखा था।
सूजी पापा को फोन लगाकर – पापा मुझे आपसे बात करना है।
पापा – मैं कुछ देर बाद बंगले पहुंच रहा हूं तुम चाहों तो वहीं आ जाना।
सूजी पापा से पहले ही बंगले पहुंच जाती है। पापा के आते ही वह तपाक से डोनेशन की बात रख देती है। पापा उसे समझाते हैं कि बिजनेस में राजनीतिक पार्टियों को भी संभालकर रखना पड़ता है। जब वह पूछती है कि हमें राजनीतिक पार्टियों से क्या लेना-देना तो पापा उसे बाद में समझाने की बात करते हैं। फिर दोनों साथ में लंच करते हैं और सूजी बंगले पर ही रूक जाती है। वह डार्विन को फोन लगाती है।
सूजी – डार्विन तुम कब लौट रहे हो?
डार्विन – मैं कल ज्वाइन कर रहा हूं। आज शाम को ही गोवा आ जाऊंगा।
सूजी – मैं आज टेंशन फ्री हो गई डार्विन। मैं चाहती हूं आज रात को हम साथ में डिनर करें।
डार्विन – तुम मेरे घर ही आ जाना मम्मी डिनर तैयार करके रखेगी।
सूजी ने डार्विन की बात मान ली। वह डार्विन को लेने एयरपोर्ट पहुंची और फिर वहां से दोनों डार्विन के घर पहुंच गए। डार्विन के घर ये डिनर कर ही रहे थे कि कुरुश का फोन सूजी के पास आया। वह बहुत घबराया हुआ था। उसने बताया फिरदौस का एक्सीडेंट हो गया है उसे जैसलमेर के अस्पताल में भर्ती कराया गया है। सूजी ने उसकी बात सुनकर तुरंत ही अखिलेश को फोन लगाया लेकिन अखिलेश ने फोन नहीं उठाया। सूजी ने तुरंत ही डार्विन के घर का टीवी आन करने को कहा। टीवी पर खबर चल रही थी कि पाकिस्तानी ड्रोन से भारत के एयरपोर्ट को निशाना बनाया गया जहां फिरदौस सहित तीन लोग घायल हुए। फिरदौस अकेली अफसर थी जबकि दो अन्य जवान थे। इस हमले के बाद बार्डर पर टेंशन हो गई है।
सूजी ने डार्विन को कहा वह घर जा रही है। डार्विन ने कहा वह जानकारी निकलवाता है तुम घर जाकर आराम करो। सूजी घर पहुंचती है और पापा को फोन लगाकर घटना की जानकारी देती है। पापा बताते हैं वे दिल्ली पहुंच रहे हैं जहां से पूरी जानकारी लेकर फिरदौस व अखिलेश की मदद करवाएंगे। सूजी कहती है वह जैसलमेर जाना चाहती है हालांकि पापा के मना करने पर उसने गोवा में ही रूकने का मन बना लिया। देर रात को अखिलेश का फोन सूजी के पास आता है। वह बहुत रो रहा था। उसने बताया हमले में फिरदौस की डेथ हो गई। उसकी बॉडी को सुबह उसे सौंपा जाएगा। सूजी ने कहा वह कल जैसलमेर पहुंच रही है। अपने पापा को फोन कर सूजी ने सारी बात बताई। फिर अपने चार्टर प्लेन से वह अगले दिन जैसलमेर पहुंची।
अखिलेश के बंगले के बाहर सेना के काफी अधिकारी व जवान उपस्थित थे। फिरदौस का शव भारतीय झंडे में लपेटकर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था। अखिलेश की आंखें लाल थी लेकिन आंसू नहीं आ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे आंसुओं को कोई आॅर्डर मिला हो और वे आंखों में उभरते तो सही लेकिन बाहर आने से पहले ही सूख जाते। सूजी को देखकर अखिलेश ने उसे गले लगाया। सूजी के साथ उसकी सेकेट्री भी आई थी। दोनों ही एक तरफ जाकर बैठ गए। फिरदौस को पूरे सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। अंतिम संस्कार के बाद जब अखिलेश घर लौटा तो उसके परिवार के भी कुछ सदस्य थे और फिरदौस के भी। अखिलेश ने सूजी को कहा मैं तुम्हारी यहां रूकने की व्यवस्था करवा रहा हूं तुम अभी वापस मत जाना। सूजी ने उसकी बात मान ली और अपनी सेकेट्री व चार्टर प्लेन को वापस गोवा भेज दिया।
अगले दिन सूजी को अखिलेश ने फोन लगाकर बंगले पर आने के लिए कहा। सूजी तैयार ही बैठी थी जिससे तुरंत ही वह बंगले पहुंच गई। फिरदौस के माता-पिता अखिलेश के बंगले से वापस लौट रहे थे जिससे उन्हें छोड़Þने अखिलेश बाहर ही आया था। अखिलेश ने सूजी से उन दोनों को मिलवाया तो दोनों सूजी को पहचान गए। उन्होंने बताया फिरदौस ने तुम्हारे बारे में सबकुछ बताया था। फिरदौस के पिता ने सूजी के सिर पर हाथ रखकर कहा तुम भी हमारी बेटी जैसी ही हो। यह समय नहीं है कुछ ऐसी बातें करने का लेकिन मैं दिल से तुमसे कुछ बोल रहा हूं। अखिलेश और फिरदौस दोनों ही बचपन के दोस्त थे और फिरदौस के जाने का गम हमें तो है ही अखिलेश को भी बहुत है। हम चाहते हैं तुम अखिलेश का ध्यान रखों। सूजी ने सिर झुका लिया और उसकी आंखें छलक आई। वह अखिलेश के घर में चली गई। वॉशरूम में जाकर वह जोर-जोर से रोने लगी। उसकी आंखों के सामने फिरदौस ही घूम रही थी। कभी उसका बच्चा सूजी की कल्पनाओं में आ रहा था। कुछ देर वह पॉट पर बैठकर रोती रही। दोनों हथेलियां उसके मुंह को ढंके हुए थी। अखिलेश भी अंदर आकर बैठ गया ताकि सूजी आए तो उससे मिल ले। सूजी मुंह धोकर बाहर आई। उसने अखिलेश के सामने वाले सोफे पर बैठना तय किया। अखिलेश की मम्मी भी वहां मौजूद थी। वे भी काफी रो रही थी। उन्हें अपने बेटे के बच्चे का बेसब्री से इंतजार था लेकिन यहां तो सबकुछ उल्टा ही हो गया था। अखिलेश चुप था। उसे मालूम था कि यदि वह रोया तो उसकी मम्मी और ज्यादा रोएगी। उसने अपने इमिजिएट बोस को फोन लगाकर कहा कि वह कल से ड्यूटी ज्वाइन करना चाहता है। उसके बोस ने कहा जैसी तुम्हारी इच्छा।
अखिलेश की अपने बोस से बात हुई ही थी कि कुछ देर बाद फिरदौस का बोस अखिलेश के बंगले पर आया। उसके साथ आए सिपाहियों के हाथ में कुछ सामान था। यह सामान फिरदौस का था जो उसके आॅफिस में था। इस सामान में वह तस्वीर भी थी जो सूजी और फिरदौस ने इंग्लैंड में साथ में खींचवाई थी। सूजी उस तस्वीर को देखकर फफक पड़ी। फिर उठकर बाहर चली आई। बाहर अंधेरा छा चुका था। कुछ देर बाद अखिलेश भी बाहर आया। उसने सूजी को समझाने का प्रयास किया। आखिरकार सूजी अखिलेश के गले लगकर जोर-जोर से रोने लग गई। अब अखिलेश के भी आंसू थे कि छलक ही पड़े। दोनों वहीं बगीचे में बैठ गए।
अखिलेश – सूजी मैं कल से वापस ज्वाइन कर रहा हूं। मैं यदि घर में रहूंगा तो मुझे बार-बार फिरदौस की याद आएगी। ..लेकिन मैं चाहता हूं तुम कुछ दिन यहीं रूक जाओ।
सूजी – नहीं अखिलेश सर मैं यहां नहीं रूक पाऊंगी। फिरदौस ने मेरे दिल में एक अलग ही जगह बना ली थी। वह बहुत ही प्यारी थीं और मैं चाहती हूं वह उनकी वह जगह हमेशा बनी रहे। मैं कल सुबह वापस गोवा जा रही हूं।
अगले दिन अखिलेश ने ड्यूटी ज्वाइन कर ली और सूजी भी गोवा आ गई। गोवा में डार्विन से उसकी मुलाकात हुई जिसने यहां ज्वाइन कर लिया था। फिरदौस के कजन कुरुश को तो छुट्टी ही नहीं मिली थी जिससे वह जैसलमेर नहीं जा सका था। वह सूजी से मिलने रात को बंगले आ गया था। दोनों ने काफी देर तक फिरदौस की बात की। कुरुश ने फिरदौस के साथ बचपन से बिताए वह लम्हें सूजी के साथ शेयर किए।
दिन बीतने लगे। सूजी ने अपने आॅफिस पर फिर से ध्यान देना शुरू कर दिया और साथ में ही उसे डार्विन व कुरुश का भी साथ मिलने लगा। ये तीनों ही कई बार साथ में पार्टी भी करने लगे। अभी छह माह ही गुजरे थे कि एक दिन अखिलेश की मम्मी का सूजी के पास फोन आया। उन्होंने अखिलेश की जींदगी में सूजी के शामिल हो जाने का आग्रह किया। सूजी उनकी बात सुनकर कुछ सेकंड तो मौन रही फिर लड़खड़ाती जुबान से कहने लगी आंटी मैं अखिलेश सर को बहुत पसंद करती थी। जब मैं मणिपुर आई थी तब शादी के इरादे से ही वहां आई थी लेकिन जब फिरदौस को देखा तो मैं सहम गई। मैं इन्हीं कारणों से इंग्लैंड पढ़ने चली गई थी और अब मैं वह सबकुछ भूल गई हूं। अखिलेश सर मेरे सीनियर हैं और मैं उन्हें एक सीनियर की तरह ही देखती हूं। अखिलेश की मम्मी ने सूजी को मनाने की काफी कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी। सूजी ने यह बात अपने दोस्त डार्विन को बताई।
डार्विन – सूजी तुम्हारी चाहत अखिलेश था तो अब क्या दिक्कत है?
सूजी – डार्विन मैं कभी फिरदौस की जगह नहीं ले सकती। मैं भी कोई गुड़िया थोड़े ही हूं जब जिसने जैसा चाहा वह मैं मान लूं। मेरे भी तो कोई सपने है न।
डार्विन – अब मैडम के क्या सपने आ गए, मैं भी तो जरा देखूं। (डार्विन सूजी का मूड ठीक करना चाहता है।)
सूजी – मैं पापा के बिजनेस को अब संभालने लग गई हूं। मुझे अब बिजनेस की तरफ से कोई दिक्कत नहीं है। अब रही बात अखिलेश सर की तो वह बात मैंने तुम्हें बता दी। अब आगे की बात मैं ही करूं?
डार्विन – मतलब?
सूजी – डार्विन, तुम एक होनहार लड़के हो जिसने अपनी इच्छाओं को पूरा किया। तुम आईएएस बनना चाहते थे और बन गए। तुम मेरा स्वभाव भी जानते हो।
डार्विन – हां-हां मैं सब जानता हूं। ..लेकिन तुम आज यह बात क्यों पूछ रही हो?
सूजी – मेरा मन हो रहा है आज फिर तुम्हारी सिगरेट से कश मारने का।
डार्विन जेब से सिगरेट निकालते हुए – यह लो सिगरेट। इतनी सी बात को तुम इतना घूमाकर कह रही हो।
सूजी – घूमाकर नहीं कह रही हूं सीधे-सीधे तुम समझ नहीं रहे हो। या शायद समझने की जानबूझकर कोशिश नहीं कर रहे हो? तुम्हारी भी कोई फिरदौस तो नहीं?
डार्विन (हंसते हुए) – मेरी कोई फिरदौस नहीं है। मेरी तो एक सूजी ही है जो मुझे लॉकडाउन में थाने पर मिली थी।
सूजी मुस्कुराते हुए सिगरेट का कश लेती है और डार्विन के गले लग जाती है। दोनों एक-दूसरे को किस करते हैं।
सूजी डार्विन से – तुम मुझे प्यार करते हो या फिर दिलासा देने के लिए गले लगा रहे हो?
डार्विन – दिलासा किस बात का? मैं तो तुमसे बहुत पहले ही प्यार करने लग गया था लेकिन तुम अखिलेश के पीछे जा रही थी। ..लेकिन तुम बताओं तुम्हें मुझसे प्यार कब हुआ?
सूजी – अरे नॉटी, मुझसे पूछ रहे हो? मैं तो तुम्हारी तभी कायल हो गई थी जब मैं अखिलेश और फिरदौस से मिलकर लौटी थी और तुमने मुझे संभाल लिया था। मेरे मन में तुम्हारे लिए इज्जत तो तभी बढ़ गई थी लेकिन मैं कुछ बनना चाहती थी और फिर तुम्हें भी डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी।
डार्विन – यदि मैं कहीं और शादी कर लेता तो?
सूजी – किस्मत भी तो कोई चीज होती है न। मैं यहीं सोचती की ऊपरवाले ने मुझे सबकुछ दिया है बस घर बसाने के लिए मनचाहा पति ही नहीं भेजा। इंतजार करती या फिर अपने को काम में इतना डूबों लेती कि कुछ याद नहीं आता।
डार्विन – छोड़ो अब ये फिलासाफी। घर चलकर मेरी मम्मी को बता दें वह काफी खुश होगी।
सूजी- तुम्हारी मम्मी-पापा से मिलकर मैं अपने घर तुम्हें ले चलूंगी। मेरी मम्मी-पापा को भी तो बताना है न।
दोनों एक-दूसरे के घर जाकर बताते हैं और दोनों के ही परिवार वाले काफी खुश होते हैं। शादी की तारीख तय होना है जिसके लिए दोनों के परिजन साथ बैठकर बात करने वाले हैं। आखिर शादी की तारीख भी तय हो जाती है। सूजी अप्रैल के पहले हफ्ते की तारीख चाह रही थी जिससे तय किया गया कि पहला रविवार शादी का होगा। असल में सूजी फिरदौस को मिस कर रही थी जो एक समय दुश्मन की तरह लगी थी लेकिन उसने सूजी को जीवन जीने की कला जो सीखाई थी। सूजी को उसकी शादी के दिन यह महसूस होता रहा कि फिरदौस उसके आसपास है और उसकी शादी से बहुत खुश है। अखिलेश शादी में नहीं आ सका क्योंकि उसे छुट्टी नहीं मिल सकी। शादी के बाद डार्विन और सूजी हनीमून के लिए यूरोप चले गए। दोनों बड़े खुश थे और दोनों के मम्मी-पापा भी काफी प्रसन्न थे।

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