भूतपूर्व प्रेमिकाएं मानती नहीं है, ढूंढ ही लेती है आपको
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मुकेश नेमा की व्यंगात्मक कलम से
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दुनिया का नियम है ये। हर आज को कल हो जाना होता है । ऐसा जो भी दर्शनीय है, प्रिय है हमें , जिसे हम हमेशा बनाये रखना चाहते हैं , वो कभी ना कभी साथ छोड़कर विदा ले ही लेता है। हम ही दूसरी राह चुन लेते है बहुत बार। रंग रूप हो या रिश्ते । सब को बदलना ही है । वर्तमान की नियति है भूत हो जाना और इसी नियम के चलते प्रेमिकाएं भी भूतपूर्व हो ही जाती हैं ।
सबसे पहले यह बात साफ़ कर दी जाये , भूतपूर्व प्रेमिकाओं की मेरी परिभाषा थोड़ी वृहद है । बड़ी और छोटी बहन की ढेर सारी सहेलियों के साथ-साथ, स्कूल, कॉलेज में मिली, पड़ौस में, मौहल्ले और दोस्तों के मौहल्ले मे बसी वो तमाम लड़कियां शामिल हैं जो निकटता के सिद्धान्त के चलते कभी हमसे टकरा गई थी । पूर्व प्रेमिकाओं की लंबी चौड़ी फ़ेहरिस्त में ऐसी तमाम लड़कियां और महिलाओं को जगह दी जाती है जिनका हमने अपनी तरफ़ से मन वचन कर्म से अपनी प्रेमिका होना तय कर लिया होता है । किसी महिला को बतौर प्रेमिका मान्यता दिये जाने में उसको इसकी खबर हो यह क़तई ज़रूरी होता नहीं । पर आज की हमारी चर्चा मे केवल वही भूतपूर्व प्रेमिकायें शामिल है जिन्हें इस बाबत औपचारिक सूचना दे दी गई थी और जिन्होंने ऐसी सूचना प्राप्त होने के पश्चात अपने भाइयों और बाप को खबर किये बिना ऐसी भूमिका से एतराज ज़ाहिर नहीं किया था ।
चूंकि चाहने के बावजूद सभी प्रेमिकाओं को ज़िंदगी मे शामिल करना, शामिल बनाये रखना मुमकिन नहीं । ऐसे में एकाध को अभूतपूर्व होने का मौका मिलता है और बाकियों को भूतपूर्व हो ही जाना पड़ता है । जहां तक एक प्रेमिका को अभूतपूर्व होने का अवसर मिलने की बात है हम हिंदुस्तानियों के मामले में यह बात भी लागू नहीं होती ।
गैलिलियो बहुत पहले बता गये थे कि दुनिया गोल है । पर अब जाकर हमें यह पता चला है कि यह उतनी गोल और उतनी बड़ी भी नहीं जितना पहले समझी जाती थी । ऐसे में ऐसे बहुत से लोग दोबारा मिल जाते है जो भूले बिसरे गीत हो चुके थे । और इसी सिलसिले के चलते भूतपूर्व प्रेमिकाएं भी दोबारा टकरा जाती है । फ़ेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर ऐसे ही बिछुड़ो को मिलाने के केन्द्र है आजकल । ये भूतपूर्व प्रेमिकाओ के लिये लाईट हाऊस का काम करते है । समाज सेवा में जुटी रहने वाली इन परोपकारी ऐजेन्सियो की मदद से आपके बचपन में रहती पड़ौस की नाक बहाती वह लड़की, जिसे आप फ़ुरसत के वक्त तके रहते थे , आपको ढूंढ लेती है । आसपास रहती कॉलेज की वो लड़की जिस पर आप स्कूल जाने के दिनों मे जान न्योछावर किये पड़े थे , जिसके बारे मे आप सोचते थे कि आप क्या सोचते है उसे मालूम नहीं है वो आपको फ़ेसबुक पर फ़्रेंड रिक्वेस्ट भेज कर आपकी अच्छी भली चलती ज़िंदगी को पटरी से उतार जाती है ।
कभी किसी दिन आप पाते है कि कॉलेज में साथ पढ़ी उस लड़की को जिसने , उसकी डेस्क पर तीर निकले दिल के साथ उसका और अपना नाम गोद आने के बावजूद आपको घास तक नहीं डाली थी । जिसके लिये पेपर आउट करवाने की कोशिश के लिये आप जेल जाते जाते बचे थे और इस नेकी के बावजूद जिसने आपको एक रूखे थैंक्स के काबिल भी नहीं समझा था, उस घमंडी लड़की को फ़ेसबुक पर आपकी याद की हिचकियां आना शुरू हो गई है । ऐसे में आप भावनाओं में बह जाते है और अपना सिर ओखली में डाल कर निपट जाते है ।
भूतपूर्व प्रेमिकाओं का भूत बने रहना ही शुभ है पर भूतपूर्व प्रेमिकाये दिखे बिना भी मानती नहीं । कभी किसी मॉल में आपको चर्बी की कई कई परतो वाली वो महिला टकरा ही जाती है जो कभी पैंतालीस किलो की छरहरी कन्या हुआ करती थी , और जिसे एक बार ताड़ने के लिये आप उसकी मां के बताये अनुसार गेहूं पिसवा कर लाने जैसे दो कौड़ी के ढेर सारे काम किया करते थे । ज़िसके पीछे पीछे साईकल चलाकर स्कूल से घर छोड़ने जाना रूटीन था आपका । जिसे नक़ल करवाने के लिये आप जान पर खेलने के लिये राजी बने रहते थे कभी , उसे एक के बाद एक चाट की प्लेटें ठूंसते देख मन को धक्का तो लगता ही है पर आप उस वक्त पछाड़ खाकर गिर पड़ते है जब वो अपने बच्चों से मामा कहकर मिलवाती है आपको । और आप उसके खड़ूस पति की मौजूदगी के चलते कोई आपत्ति दर्ज नहीं करवा पाते ।
भूतपूर्व प्रेमिकायें मानती नहीं । ढूंढ ही लेती है वो आपको । बहुत बार आपका ही मन नहीं मानता । आप बुझे चूल्हे में अंगारे तलाशना चाहते है और हाथ जला बैठते हैं ।
याद रखिये । भूतपूर्व प्रेमिकाएं तब तक प्रिय और सुंदर बनी रहती है जब तक वो आपसे दोबारा ना मिलें । चौदहवीं के चांद को ग्रहण लगे हुए देखना बहुत भयंकर होता है । उनके रहने के लिये स्मृतियां सबसे सुरक्षित और निरापद जगह होती है । पर अफ़सोस, फ़ेसबुक और व्हाट्सएप हमारी छाती पर मूंग दलने चले आये है । उनके जरिये अपनी दाल भात जैसी ज़िंदगी में मिर्च के अचार की तरह घुसपैठ करने पर उतारू भूतपूर्व प्रेमिकाओं को भूत ही बनी रहने के लिये राज़ी रखना आसान नहीं रह गया है । वे अब उस उतावले, रोमांच तलाशते लड़के की भूमिका में है जैसे आप चौदह साल की उम्र में हुआ करते थे ।
ऐसी विकट परिस्थिति में क्या किया जाये । यह लंबा चौड़ा निबंध यही सलाह देने के लिये , आपके दूध को दही होने से बचाने की नियत से ही लिखा गया है । मेरी मानिये । मन में फुदकते कबूतरों को चिट्ठी ले जाने से रोक लें । जीवन में शांति और व्यवस्था बनाये रखने के लिहाज़ से अपनी भूतपूर्व प्रेमिकाओं से माता बहनों की ही तरह इज़्ज़त से पेश आने, अपने सफ़ेद होते बालों की चिंता खुद करने और सावधानी हटी दुर्घटना घटी जैसा अमर सूत्र वाक्य निरंतर याद रखने में ही समझदारी है।